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दीपू को 1 किमी तक घसीटा, पेड़ से लटकाया...प्रत्यक्षदर्शी ने किया चौंकाने वाला खुलासा, हत्या की वजह भी बताई

बांग्लादेश के मयमनसिंह में हिंदू युवक दीपू चंद्र दास की हत्या ने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं. प्रत्यक्षदर्शियों और परिवार के अनुसार, हत्या ईर्ष्या और झूठे अफवाहों के कारण हुई थी. घटना ने भारत-बांग्लादेश संबंधों में तनाव बढ़ाया है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निंदा की गई है.

Utsav Singh
Edited By: Utsav Singh

नई दिल्ली : बांग्लादेश के मयमनसिंह शहर में हिंदू युवक दीपू चंद्र दास की हत्या ने न केवल देश के भीतर बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी गहरी चिंता पैदा कर दी है. कथित रूप से ईशनिंदा के आरोपों के बाद हुई इस घटना ने अल्पसंख्यक समुदाय की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. इस मामले के सामने आने के बाद भारत और बांग्लादेश के संबंधों में भी तनाव देखा जा रहा है.

हत्या केवल धार्मिक पहचान की वजह से नहीं

आपको बता दें कि घटना के कुछ दिनों बाद एक प्रत्यक्षदर्शी ने, अपनी पहचान गुप्त रखने की शर्त पर, दीपू दास की हत्या से जुड़ी परिस्थितियों पर रोशनी डाली. उसके अनुसार, यह हत्या केवल धार्मिक पहचान की वजह से नहीं हुई, बल्कि इसके पीछे कार्यस्थल से जुड़ी ईर्ष्या और षड्यंत्र भी शामिल थे. प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि दीपू मेहनती थे और उन्हें नौकरी में आगे बढ़ने के अवसर मिल रहे थे, जिससे कुछ लोग नाराज थे.

अफवाहों के जरिए बनाया गया निशाना
प्रत्यक्षदर्शी के मुताबिक, जिन लोगों को नौकरी नहीं मिली, उन्होंने बदले की भावना से दीपू पर ईशनिंदा का झूठा आरोप फैलाया. उसे फैक्ट्री के एचआर कार्यालय बुलाया गया, जहां दबाव बनाकर उससे इस्तीफा लिया गया. इसके बाद उसे बाहरी लोगों के हवाले कर दिया गया, जिसके बाद हालात बेकाबू हो गए.

हिंसा और डर का माहौल
प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि फैक्ट्री के बाहर पहले से मौजूद भीड़ ने दीपू के साथ गंभीर हिंसा की. कुछ लोगों ने बीच-बचाव की कोशिश भी की, लेकिन खुद पर हमला होने के डर से वे पीछे हट गए. इस पूरे घटनाक्रम ने यह दिखाया कि उस समय कानून व्यवस्था कितनी कमजोर स्थिति में थी.

प्रशासन और सरकार का रुख
बांग्लादेशी अधिकारियों का कहना है कि जांच में दीपू दास द्वारा ईशनिंदा किए जाने का कोई प्रमाण नहीं मिला है. इसके बावजूद, इस घटना ने देश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं. भारत के कई हिस्सों में इस हत्या के विरोध में प्रदर्शन भी हुए हैं.

बेटे की मौत एक सोची-समझी साजिश
दीपू दास के पिता ने अपने बेटे की मौत को एक सोची-समझी साजिश बताया. उनके अनुसार, दीपू को नौकरी मिलने के बाद से ही धमकियां मिल रही थीं. उन्होंने कहा कि कुछ लोग उससे नौकरी दिलवाने की मांग करते थे और इनकार करने पर उसे जान से मारने की धमकी दी गई थी. पिता का आरोप है कि झूठे आरोप लगाकर उनके बेटे को निशाना बनाया गया.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई घटना की निंदा 
इस घटना की निंदा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हुई है. अमेरिकी सांसद रो खन्ना ने इसे भयावह बताते हुए नफरत और कट्टरता के खिलाफ आवाज उठाने की अपील की. यह हत्या ऐसे समय हुई है, जब बांग्लादेश पहले से ही राजनीतिक अस्थिरता और हिंसा के दौर से गुजर रहा है. पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद सुरक्षा हालात नाजुक बने हुए हैं और अंतरिम सरकार ने फरवरी में चुनाव कराने की घोषणा की है.

दीपू चंद्र दास की हत्या केवल एक व्यक्ति की मौत नहीं, बल्कि यह घटना बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, अफवाहों की राजनीति और कमजोर कानून व्यवस्था की गंभीर तस्वीर पेश करती है. यह मामला आने वाले समय में क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर भी असर डाल सकता है.

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