2 बौद्ध देश और 1 हिंदू मंदिर, थाईलैंड-कंबोडिया के बीच बार-बार क्यों छिड़ता है संघर्ष?
दक्षिण-पूर्व एशिया के दो बौद्ध राष्ट्र थाईलैंड और कंबोडिया एक बार फिर सीमा विवाद के चलते आमने-सामने हैं. दोनों देशों के बीच तनातनी की जड़ एक हजार साल पुराना हिंदू मंदिर 'प्रीह विहियर' है, जो ऐतिहासिक, धार्मिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से बेहद संवेदनशील मुद्दा बन चुका है.

ददिक्षिण पूर्व एशिया के दो बौद्ध राष्ट्र थाईलैंड और कंबोडिया के बीच एक बार फिर सीमा पर तनाव गहरा गया है. पिछले 15 वर्षों में यह पांचवीं बार है जब दोनों देशों के बीच सैन्य झड़प की नौबत आई है. इस बार फिर विवाद का केंद्र वही पुराना मंदिर – प्रीह विहियर – बन गया है, जो धार्मिक के साथ-साथ राजनीतिक और ऐतिहासिक रूप से दोनों देशों के लिए प्रतिष्ठा का प्रतीक है.
हालांकि दोनों देश बौद्ध बहुल हैं और एक-दूसरे से सांस्कृतिक तौर पर गहराई से जुड़े हैं, फिर भी हिंदू काल के एक मंदिर को लेकर चल रही यह तनातनी ASEAN जैसे साझा मंच की एकता को भी चुनौती देती दिखाई दे रही है. इस लेख में हम इस संघर्ष से जुड़े 10 अहम सवालों के ज़रिए इसकी जड़, मौजूदा हालात और इसके बड़े असर को समझने की कोशिश करेंगे.
हिंदू मंदिर को लेकर क्यों लड़ रहे हैं दो बौद्ध देश?
यह सुनने में अजीब लग सकता है, लेकिन थाईलैंड और कंबोडिया के बीच यह तनाव 1,000 साल पुराने एक हिंदू मंदिर प्रीह विहियर को लेकर है. हालांकि आज दोनों देश बौद्ध धर्म को मानते हैं, लेकिन इस क्षेत्र में कभी हिंदू खमेर साम्राज्य का प्रभुत्व था, जिसने इन मंदिरों का निर्माण कराया था. प्रीह विहियर जैसे कई मंदिर आज की आधुनिक सीमाओं के पास स्थित हैं और दोनों ही देश इन्हें अपनी विरासत और संप्रभुता से जोड़कर देखते हैं.
प्रीह विहियर मंदिर ही क्यों बना विवाद की जड़?
प्रीह विहियर मंदिर का निर्माण करीब एक हज़ार साल पहले खमेर साम्राज्य ने कराया था. 1962 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने मंदिर को कंबोडिया के अधिकार क्षेत्र में माना, लेकिन यह फ़ैसला केवल मंदिर के ढांचे तक सीमित था, मंदिर के आसपास के 4.6 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कुछ नहीं कहा गया. यही "ग्रे जोन" बार-बार विवाद को जन्म देता है क्योंकि थाईलैंड इस भूमि पर अपना दावा करता है.
कंबोडिया क्यों दावा करता है?
कंबोडिया का दावा एक पुराने फ्रांसीसी नक्शे पर आधारित है जो उस समय बनाया गया था जब वह फ्रांस का उपनिवेश था.
1962 में ICJ ने भी इसी नक्शे को आधार बनाकर मंदिर को कंबोडिया को सौंपा. हालांकि थाईलैंड से मंदिर तक पहुंचना आसान है, लेकिन कंबोडिया मानता है कि पहुंच की सरलता से स्वामित्व तय नहीं होता. थाईलैंड इस नक्शे को गलत मानता है और कहता है कि जमीन का भूगोल उसके दावे को मजबूत करता है.
कोर्ट के फैसले के बावजूद विवाद क्यों जारी है?
ICJ ने मंदिर के ढांचे को लेकर फैसला दिया था, लेकिन सीमा रेखा की स्पष्टता नहीं की. यह अस्पष्टता ही वो जगह है जिसे दोनों देश अपने-अपने हिसाब से व्याख्यायित करते हैं. 2008 में जब UNESCO ने मंदिर को विश्व धरोहर घोषित किया और उसे कंबोडिया के नाम से सूचीबद्ध किया, तो थाईलैंड ने इसे चुनौती के रूप में लिया और सेना भेज दी. 2011 में विवाद चरम पर पहुंचा और भारी गोलीबारी हुई.
विवाद में अब तक सैनिक क्यों मारे गए?
2008 से 2011 के बीच कई बार दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने आए और भारी हथियारों से फायरिंग हुई. फरवरी 2011 की झड़प सबसे घातक रही, जिसमें दो दर्जन से ज्यादा सैनिक और आम नागरिक मारे गए. प्रभावित इलाकों में घर तबाह हुए, लोगों को पलायन करना पड़ा और मंदिर तक क्षतिग्रस्त हो गया. बॉर्डर की स्पष्टता न होने से दोनों देश सैनिक तैनात करते हैं, जिससे छोटे विवाद भी जानलेवा बन जाते हैं.
नक्शे आज भी क्यों विवाद की वजह हैं?
थाईलैंड-कंबोडिया सीमा का बड़ा हिस्सा फ्रांसीसी औपनिवेशिक काल में तय किया गया था. कंबोडिया 1907 के एक फ्रांसीसी नक्शे पर भरोसा करता है, जबकि थाईलैंड कहता है कि यह नक्शा कभी आधिकारिक रूप से स्वीकार नहीं किया गया.
ICJ ने इस नक्शे को आधार बनाया, लेकिन थाईलैंड आज भी उसे गलत मानता है. जमीन पर सीमा रेखाएं स्पष्ट रूप से चिन्हित न होने से पुराने नक्शों की व्याख्या विवाद को जन्म देती है.
कंबोडिया क्यों चुनौती दे रहा है?
थाईलैंड की सेना कंबोडिया से कहीं ज्यादा ताकतवर है जवानों की संख्या ज़्यादा है, हथियार बेहतर हैं और वायुसेना तक है.
कंबोडिया के पास कोई लड़ाकू विमान नहीं हैं, फिर भी वह अंतरराष्ट्रीय कानून और न्यायिक फैसले के बल पर अपने दावे को सही ठहराता है. यह विवाद सिर्फ सैन्य ताकत का नहीं, बल्कि राष्ट्रीय गर्व और ऐतिहासिक न्याय का है. कंबोडिया अंतरराष्ट्रीय मंचों से सहानुभूति और समर्थन हासिल करने की रणनीति अपनाता है.
सीमा पर रहने वाले लोगों पर क्या असर पड़ा है?
सीमा पर बसे गांवों के लोग इस तनाव की सबसे बड़ी कीमत चुकाते हैं. जब हालात सामान्य होते हैं, तो लोग खेती, व्यापार और त्योहारों के लिए एक-दूसरे के यहां जाते हैं. लेकिन तनाव बढ़ते ही स्कूल बंद, सड़कें सील और लोगों का पलायन शुरू हो जाता है. 2011 की झड़पों में दोनों देशों के 50,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए थे. आज भी सैनिक मूवमेंट या आक्रामक बयान डर पैदा कर देते हैं.
इस विवाद पर पड़ोसी देशों की क्या प्रतिक्रिया है?
ASEAN ने कई बार इस विवाद को सुलझाने की कोशिश की, लेकिन कोई स्थायी समाधान नहीं निकला. 2011 में इंडोनेशिया ने निगरानी दल भेजा, लेकिन प्रभाव सीमित रहा. चीन दोनों देशों से संबंध बनाए रखता है, हथियार बेचता है और निवेश करता है.
अमेरिका खासकर थाईलैंड के साथ कूटनीतिक और सैन्य सहयोग करता है. लेकिन अधिकांश देश इसमें प्रत्यक्ष रूप से शामिल होने से बचते हैं.
भारत को क्यों चिंता करनी चाहिए?
भारत का दक्षिण-पूर्व एशिया से गहरा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रिश्ता है, खासकर हिंदू और बौद्ध विरासत के जरिए.
प्रीह विहियर जैसे मंदिर भारत की सांस्कृतिक पहुंच का प्रतीक हैं. "एक्ट ईस्ट" पॉलिसी के तहत भारत इन देशों के साथ व्यापार, पर्यटन और कनेक्टिविटी बढ़ाना चाहता है. अगर इस क्षेत्र में अस्थिरता आती है, तो भारत की रणनीतिक योजना पर असर पड़ सकता है, खासकर जब चीन इस मौके का फायदा उठाकर कंबोडिया पर प्रभाव बढ़ाए. इसलिए यह विवाद भारत के लिए भी अहम है.


