कश्मीर को कैसे मिला उसका नाम? जानें इसके पीछे की रोचक दास्तान
Kashmir history: कश्मीर की पहचान सिर्फ उसकी खूबसूरती से नहीं बल्कि उसके नाम से भी जुड़ी है. एक ऐसा नाम, जिसकी जड़ें पौराणिक कथाओं, ऐतिहासिक दस्तावेजों और सांस्कृतिक धरोहरों में गहराई से जुड़ी हैं. आइए जानते हैं कि कश्मीर को उसका नाम कैसे मिला?

Kashmir history: धरती का स्वर्ग कहे जाने वाला कश्मीर आज एक राजनीतिक बफर जोन बन गया है. इतिहास ने इस हसीन वादी के साथ हमेशा न्याय नहीं किया, लेकिन इसके बावजूद, यहां रहने वाले लोग आज भी शांति की वापसी की उम्मीद पाले हुए हैं. वहीं कुछ लोग जो अब इस धरती से दूर हो गए हैं, वे अपनी जड़ों की याद में जी रहे हैं. लेकिन इन दोनों के बीच एक साझा धरोहर है कश्मीर का नाम और उसकी पहचान.
कश्मीर आखिर क्या है? इसका नाम कैसे पड़ा? इस कहानी की जड़ें लोककथाओं में हैं, लेकिन इनकी गूंज इतिहास के दस्तावेजों में भी सुनाई देती है. इस रिपोर्ट में हम समझेंगे कि कश्मीर नाम कहां से आया, इसके पीछे कौन-सी कहानियां हैं, और आज भी यह नाम लोगों के लिए क्या मायने रखता है.
पहले कहलाया 'कश्यपामार'
लोककथा के अनुसार, आज जहां कश्मीर की खूबसूरत वादी है, कभी वहां सिर्फ एक विशाल झील हुआ करती थी. फिर संत कश्यप ने बारामूला की पहाड़ियों में एक रास्ता काटकर उस झील को सुखा दिया. इसके बाद उन्होंने ब्राह्मणों को यहां बसने को कहा. वादी के मुख्य नगर का नाम कश्यपपुर पड़ा और यह क्षेत्र 'कश्यपामार' कहलाया, जो बाद में 'कश्मीर' बन गया.
कल्हण की राजतरंगिणी और झील की पुष्टि
बारहवीं सदी के महान लेखक कल्हण ने अपनी प्रसिद्ध रचना 'राजतरंगिणी' में इस कथा का समर्थन किया है कि कश्मीर एक विशाल झील था, जिसे संत कश्यप ने सूखा दिया था.
कश्मीर नाम के विभिन्न भाषाई अर्थ
संस्कृत में ‘का’ का अर्थ होता है जल और ‘शिमीरा’ का मतलब होता है सूखना. इस तरह 'कश्मीर' का अर्थ होता है "सूखा हुआ क्षेत्र". एक अन्य व्याख्या में 'कस' का मतलब है चैनल और 'मीर' का अर्थ है पर्वत.
प्राचीन लेखकों की नजर में कश्मीर
हेकाटियस (550 ई.पू. - 476 ई.पू.), एक यूनानी भूगोलवेत्ता और इतिहासकार, ने कश्मीर को 'कसपप्यरोस' कहा था. इसके बाद, रोम के गणितज्ञ और खगोलशास्त्री टॉलेमी (150 ई.) ने इसे 'कास्पेरिया' नाम दिया. हालांकि, उनके द्वारा दर्शाई गई सीमाएं वास्तविकता से काफी बढ़ी-चढ़ी थीं.
चीनी अभिलेखों में भी कश्मीर को 'की-पिन' और तांग वंश के दौरान 'किया-शी-मी-लो' नामों से संदर्भित किया गया है. ये संदर्भ केवल भौगोलिक विवरणों तक सीमित हैं.
अलबेरूनी की दृष्टि में कश्मीर
ईरानी विद्वान अलबेरूनी ने 1017 से 1030 के बीच कश्मीर में रहते हुए अपनी प्रसिद्ध कृति 'किताब-उल-हिंद' में इस क्षेत्र का विस्तार से वर्णन किया है. उन्होंने सिर्फ भौगोलिक ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक, भाषाई और सामाजिक दृष्टिकोण से भी कश्मीर का चित्रण किया है.
मार्को पोलो और बाबर की यात्रा में कश्मीर
तेरहवीं सदी में विनीशियन व्यापारी मार्को पोलो ने कश्मीर को 'काशिमुर' कहकर संबोधित किया था और यहां के लोगों को 'कश्मीरी' कहा था. वहीं बाबर की आत्मकथा 'बाबरनामा' में 'कस' नामक एक जनजाति का जिक्र मिलता है जो सिंध और सिंधु नदी के ऊपरी इलाकों में निवास करती थी.
यहूदी मूल और कश्मीर
प्रोफेसर फिदा एम हसनैन की रचना Kashmiris With Jewish Roots में यह सिद्धांत प्रस्तुत किया गया है कि कश्मीरियों की उत्पत्ति एक यहूदी जनजाति से हुई, जो बगदाद के पास स्थित 'काश' नामक गांव से आई थी. यह जनजाति बाद में अफगानिस्तान और फिर हिंदूकुश के दक्षिण में आकर 'काशमोर' बस्ती में बस गई और फिर धीरे-धीरे वादी कश्मीर तक पहुंची.
स्थानीय जनश्रुतियों में ऐसा भी माना जाता है कि कश्मीर का नामकरण राजा जम्बूलोचन ने 9वीं सदी में किया था, जिन्होंने इस क्षेत्र पर शासन किया.


