Jaishankar Prasad Birth Anniversary: रामचरित मानस के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण महाकाव्य लिखने वाले साहित्यकार हैं जयशंकर प्रसाद, जानिए उनकी रचना 'कामायनी' के बारे में
Jaishankar Prasad Birth Anniversary: जयशंकर प्रसाद एक ऐसे महान कवि है जिन्होंने अपने 48 साल के जीवन में कई अमूल्य रत्न हिन्दी साहित्य को प्रदान किए हैं. आज हम आपको उनके सबसे महत्वपूर्ण रचना कामायनी के बारे में बताने जा रहे हैं जो रामचरितमानस के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण महाकाव्य मानी जाती है तो चलिए जानते हैं.
Jaishankar Prasad Birth Anniversary: जयशंकर प्रसाद आधुनिक हिन्दी साहित्य के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे. वे एक महान कवि, कथाकार और नाटकार के साथ-साथ प्रसिद्ध साहित्यकार भी थे. उनकी कलम से लिखी गई रचनाएं न केवल पढ़ने में सरल होती है बल्कि ज्ञान और प्रेरणा भी देती है. प्रसाद जी रचना को अपनी साधना मानते थे वह उपन्यास ऐसे लिखते थे मानों जैसे वह उसे पूजते थे. आज उनके बर्थ एनिवर्सरी है तो चलिए इस खास मौके पर उनके सबसे सबसे महत्वपूर्ण महाकाव्य और रामचरितमानस के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण महाकाव्य कामायनी के बारे में जानते हैं, जिसके लिए उन्हें मंगलाप्रसाद पारितोषिक पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया था तो चलिए जानते हैं.
दूसरा सबसे महत्वपूर्ण महाकाव्य है प्रसाद जी की कामायनी-
कामायनी हिंदी भाषा का एक महाकाव्य है जिसके रचयिता जयशंकर प्रसाद है. यह महाकाव्य आधुनिक छायावादी युग का सबसे अच्छा और प्रतिनिधि हिंदी महाकाव्य है. यह रचना प्रसाद जी अंतिम काव्य रचना है जो साल 1936 में प्रकाशित हुई. चिंता से शुरू होकर आनंद तक 15 सर्गों का यह महाकाव्य प्रसाद जी के गहन चिंतन एंव मनन का परिणाम है. कामायनी हिंदी साहित्य का इकलौता भाव प्रधान महाकाव्य है जो हिंदी साहित्य में रामचरितमानस के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण महाकाव्य माना जाता है.
15 सर्गों में विभाजित है कामायनी-
काव्य रूप की दृष्टि से कामायनी चितंनप्रधान है जिसमें कवि ने मानव को एक महान संदेश दिया है. इसके अलावा कवि ने इस महाकाव्य से ये भी बताने की कोशिश की है कि, तप नहीं, केवल जीवन सत्य के रूप में मानव जीवन में प्रेम की महत्ता घोषित की है. यह जग कल्याण भूमि है और यही श्रद्धा की मूल स्थापना है. इस कल्याणभूमि में बस प्रेम ही एकमात्र श्रेय और प्रेय है जिसका संदेश देने के लिए कामायनी की रचना की गई है. इसमें 15सर्ग है, चिन्ता, आशा, श्रद्धा, काम, वासना, लज्जा, कर्म, ईर्ष्या, ईड़ा (तर्क, बुद्धि), स्वप्न, संघर्ष, निर्वेद (त्याग), दर्शन, रहस्य, आनन्द है. जिसके मूल पात्र मनु, श्रद्धा और इड़ा है. कहानी के बीच बीच में श्रद्धा के पुत्र मानव की भी चर्चा है. इसके अलावा 2 राक्षसों आकुलि-क़िलात का भी जिक्र है.