आज सफला एकादशी पर पूजा में जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, भगवान विष्णु की कृपा से पूरी होंगी सभी मनोकामनाएं
सफला एकादशी का व्रत रखते समय पूजा के दौरान व्रत कथा का पाठ या श्रवण जरूर करें. अगर आप खुद कथा नहीं पढ़ पाएं, तो इसे किसी से सुन लें या ऑडियो के माध्यम से सुनें. ऐसी मान्यता है कि इस पवित्र दिन व्रत कथा पढ़ने या सुनने मात्र से भगवान विष्णु बहुत प्रसन्न होते हैं और भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं.

नई दिल्ली: हर वर्ष पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को सफला एकादशी का पावन व्रत रखा जाता है. वर्ष 2025 में यह पुण्यतिथि आज मनाई जा रही है. इस अवसर पर श्रद्धालु विधि-विधान से जगत के पालनहार भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा-अर्चना करते हैं और व्रत रखकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.
मान्यता है कि सफला एकादशी के दिन व्रत और पूजा करने से भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं. उनके आशीर्वाद से जीवन के हर क्षेत्र में सफलता मिलती है, रुके हुए कार्य पूरे होते हैं और व्यक्ति का जीवन सुख-समृद्धि से भर जाता है.
सफला एकादशी का धार्मिक महत्व
सफला एकादशी के दिन व्रत के साथ भगवान विष्णु की पूजा करना विशेष फलदायी माना गया है. इस दिन व्रत रखने वाले भक्तों पर श्रीहरि की विशेष कृपा होती है और सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह व्रत जीवन की बाधाओं को दूर कर खुशहाली का मार्ग प्रशस्त करता है.
व्रत कथा का पाठ है अनिवार्य
सफला एकादशी की पूजा के दौरान व्रत कथा का पाठ करना अत्यंत आवश्यक माना गया है. जो लोग कथा का पाठ स्वयं नहीं कर पाते, उन्हें इसे श्रद्धापूर्वक सुनना चाहिए. मान्यता है कि बिना व्रत कथा पढ़े या सुने यह व्रत और पूजा पूर्ण नहीं माने जाते. कहा जाता है कि इस दिन व्रत कथा के श्रवण मात्र से भगवान विष्णु सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.
सफला एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में चम्पावती नाम की एक नगरी थी, जहां महिष्मान नामक राजा का शासन था. राजा के चार पुत्र थे, जिनमें सबसे बड़ा पुत्र लुम्पक अत्यंत दुष्ट और महापापी था. उसके कुकर्मों से राज्य की प्रजा अत्यधिक दुखी थी, लेकिन कोई भी उसकी शिकायत राजा तक पहुंचाने का साहस नहीं करता था.
एक दिन राजा महिष्मान को अपने पुत्र के दुष्कर्मों का पता चल गया. इससे क्रोधित होकर उन्होंने लुम्पक को राज्य से बाहर निकाल दिया. राज्य से निष्कासित होने के बाद लुम्पक एक वन में रहने लगा. वह वन देवी-देवताओं को प्रिय था और वहां एक प्राचीन पीपल का वृक्ष स्थित था, जिसके नीचे लुम्पक विश्राम किया करता था. मान्यता है कि पीपल के वृक्ष में देवताओं का वास होता है.
अनजाने में पूर्ण हुआ एकादशी व्रत
एक दिन वन में तेज ठंडी हवाएं चलने लगीं, जिससे लुम्पक बेहोश होकर गिर पड़ा. वह अगले दिन तक वहीं पड़ा रहा. सूर्य की गर्मी से उसे होश आया और वह भोजन की तलाश में निकल पड़ा. उस दिन उसमें शिकार करने की शक्ति नहीं थी, इसलिए वह पेड़ से कुछ फल तोड़कर ले आया.
हालांकि, भूख लगने के बावजूद वह फल नहीं खा सका, क्योंकि वह केवल मांसाहार करता था. अंततः उसने वे फल पीपल के वृक्ष की जड़ों में रख दिए और दुखी मन से भगवान को अर्पित कर दिए. इसके बाद वह रोते हुए पूरी रात वहीं जागता रहा. इस प्रकार 24 घंटे से अधिक समय तक उसने कुछ भी ग्रहण नहीं किया और अनजाने में उसका एकादशी व्रत पूर्ण हो गया. वास्तव में, वह दिन एकादशी का ही था.
भगवान विष्णु की कृपा और जीवन में परिवर्तन
लुम्पक के इस उपवास और रात्रि जागरण से भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने उसके समस्त पापों का नाश कर दिया. अगले प्रातःकाल लुम्पक के समक्ष एक दिव्य रथ प्रकट हुआ और आकाश से आकाशवाणी हुई. आकाशवाणी में कहा गया कि भगवान नारायण की कृपा से उसके सभी पाप नष्ट हो चुके हैं और उसे अपने पिता के पास लौटकर राज्य प्राप्त करना चाहिए.
यह सुनकर लुम्पक प्रसन्न हुआ और अपने पिता राजा महिष्मान के पास पहुंचकर सारी कथा सुनाई. पुत्र की बात सुनकर राजा अत्यंत आनंदित हुए और उन्होंने पुनः उसे अपना राज्य सौंप दिया. तभी से सफला एकादशी व्रत रखने की परंपरा का आरंभ माना जाता है.
व्रत करने से मिलती है सिद्धि और पुण्य
धार्मिक विश्वास है कि जो भी भक्त श्रद्धा और भक्ति के साथ सफला एकादशी व्रत की कथा पढ़ता या सुनता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उसके पापों का नाश होता है. यह व्रत जीवन को सफल और सार्थक बनाने का मार्ग दिखाता है.
Disclaimer: ये धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है, JBT इसकी पुष्टि नहीं करता.


