राम मंदिर पर 25 नवंबर को होगा भव्य ध्वजारोहण, जानें इससे जुड़ी खास बातें
राम मंदिर में पूरे परिसर का रस्मी समापन 25 नवंबर को होगा, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्य मंदिर पर पताकारोहन करेंगे. इस दिन 22 फीट लंबा और 11 फीट चौड़ा केसरिया ध्वज फहराया जाएगा.

अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर परिसर का सौंदर्य अब और भव्य हो गया है. भले ही मुख्य मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी 2024 को हो चुकी थी, लेकिन अब परिसर में बने अन्य मंदिरों और टीलों का निर्माण पूरा होने की दिशा में है. इस पूरे परिसर का रस्मी समापन 25 नवंबर को होगा, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्य मंदिर पर पताकारोहन करेंगे. उस दिन 22 फीट लंबा और 11 फीट चौड़ा केसरिया ध्वज फहराया जाएगा.
केसरिया रंग का ध्वज
यह ध्वज केसरिया रंग का होगा, जिस पर रामायणकालीन कोविदार वृक्ष, इक्ष्वाकु वंश का सूर्यदेव, ओंकार और अन्य धार्मिक प्रतीकों का चित्र अंकित किया जाएगा. इसके अलावा, परिसर में स्थित सात अन्य मंदिरों के ध्वज भी केसरिया होंगे, जिनके केंद्र में सूर्यदेव और ओंकार का चिन्ह होगा.
यह विशाल धार्मिक परिसर लगभग पांच वर्षों में तैयार हुआ है. इसकी आधारशिला 5 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री मोदी और RSS प्रमुख मोहन भागवत ने विधिपूर्वक रखी थी. निर्माण के लिए राजस्थान के बंसी पहाड़पुर से गुलाबी सैंडस्टोन लगभग 5 लाख 20 हजार घनफुट लाया गया, जिसने मंदिर को राजसी और द्रव्यमानयुक्त स्वरूप दिया.
मंदिर के गर्भगृह में सफेद संगमरमर की शिलाओं पर चंद्रधारी गंगा‑यमुना की अलंकृत मूर्तियां नजर आती हैं. वहीं मंडप में गणेश जी, हनुमान जी, अंगद, सुग्रीव और जामवंत की विभूतियां शांति और भक्ति के भाव जगाती हैं. गर्भगृह के द्वार के ऊपर विष्णु जी की विस्तृत मुद्रा, लक्ष्मी देवी, ब्रह्मा और शिव की मूर्तियों के साथ, भव्यता को चरम पर ले जाती है.
मंदिर परिसर के उत्तर-पूर्वी भाग में एक बड़ा यज्ञ मंडप तैयार किया गया है और उसके नजदीक सीता कूप का निर्माण भी हुआ है. इसके अतिरिक्त, गणेश, शंकर, सूर्य, हनुमान, दुर्गा और अन्नपूर्णा देवी को समर्पित मंदिर बने हैं.
मंदिर परिसर में सात ऋषियों‑मुनियों को समर्पित सप्त मंडप
परिसर में सात ऋषियों‑मुनियों को समर्पित सप्त मंडप भी तैयार किया गया है- वाल्मीकि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, अगस्त्य, निषादराज गुफा, शबरी और अहिल्या के नाम पर. इनके मूर्तिकार जयपुर स्थित स्थान से मूर्तियां लाकर परिसर में स्थापित की गई हैं.
मंदिर के चारों दरवाजे वैष्णव परंपरा के प्रमुख संतों- रामानंदाचार्य, माध्वाचार्य, आद्य शंकराचार्य और रामानुजाचार्य के नाम पर रखे गए हैं. प्रमुख दीवारों पर वाल्मीकि रामायण की विभिन्न कथाओं को चित्रित किया गया है, जबकि एक स्मृति स्तंभ उन अनसुने नायकों को सम्मान देता है जिन्होंने इस मंदिर के लिए अपना जीवन समर्पित किया.
मंदिर परिसर में तीन मुख्य टीले- कुबेर टीला, शेषनाग टीला और अन्य को नए स्वरूप में सजाया गया है. खास बात यह है कि पवित्र गिलहरी की प्रतिमा भी यहां स्थापित की गई है, जो यह संदेश देती है कि नन्हे जीव भी बड़े लक्ष्य में योगदान कर सकते हैं.


