ऊँ, सूर्य और कोविदार वृक्ष, राम मंदिर की धर्मध्वजा में क्या है इनका महत्व
अयोध्या में राम मंदिर के 161 फीट ऊंचे शिखर पर आज धर्म ध्वजारोहण होगा. केसरिया ध्वज पर अंकित सूर्य, ॐ और कोविदार वृक्ष रामायण परंपरा, ऊर्जा, आध्यात्मिकता और अयोध्या की विरासत का प्रतीक हैं, जो रामराज्य की पुनर्स्थापना का संदेश देते हैं.

अयोध्याः भगवान राम की पावन जन्मभूमि अयोध्या इन दिनों श्रद्धा, भक्ति और आध्यात्मिक उल्लास से सराबोर है. संपूर्ण श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र मंत्रोच्चारण, हवन और जयश्रीराम के उद्घोष से गूंज रहा है. कई दिनों से चल रही विशेष पूजा-अर्चना और वैदिक अनुष्ठानों के बाद वह क्षण आ गया है जिसका करोड़ों रामभक्त बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज भव्य राम मंदिर के शिखर पर धर्म ध्वजा फहराएंगे—एक ऐसा क्षण, जो इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो जाएगा.
धर्म ध्वज का पवित्र स्वरूप
राम मंदिर के 161 फीट ऊँचे शिखर पर फहराने वाली केसरिया धर्म ध्वजा विशेष रूप से तैयार की गई है. इसका रंग त्याग, वीरता और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक माना जाता है. इस ध्वज पर तीन दिव्य चिन्ह अंकित हैं, ॐ, सूर्यदेव और कोविदार वृक्ष. यह तीनों प्रतीक न केवल सनातन संस्कृति की आत्मा हैं, बल्कि रामायण काल की परंपराओं से गहरा संबंध भी रखते हैं.
सूर्यदेव: राम के कुलदेव और ऊर्जा के स्त्रोत
धर्म ध्वजा पर अंकित सूर्य का प्रतीक भगवान राम के सूर्यवंशीय होने का द्योतक है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार राम का जन्म सूर्यवंश में हुआ, जिसका प्रारंभ सूर्यदेव के पुत्र वैवस्वत मनु से माना जाता है. जनश्रुति है कि जब रामलला का जन्म हुआ, तब सूर्य का रथ थम गया था और एक महीने तक रात नहीं हुई.
रामायण में भी उल्लेख मिलता है कि लंका विजय से पूर्व भगवान राम ने महर्षि अगस्त्य की सलाह पर सूर्यदेव की उपासना की, जिससे उन्हें नई शक्ति और आत्मबल प्राप्त हुआ. इसलिए सूर्य का प्रतीक इस ध्वज को विशेष आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करता है.
ॐ: ब्रह्मांड का मूल नाद
धर्म ध्वजा पर अंकित दूसरा पवित्र चिन्ह ‘ॐ’ सनातन दर्शन का मूल आधार है. ॐ को ब्रह्मांड की प्रथम ध्वनि माना गया है, जिसमें समस्त सृष्टि का सार समाहित है. हर देवी-देवता के मंत्र की शुरुआत इसी ध्वनि से होती है, क्योंकि यह मन, शरीर और चेतना को दिव्यता से जोड़ने वाला पुल माना जाता है.
ॐ का उच्चारण वातावरण को पवित्र बनाता है और साधक को ईश्वर से जोड़ता है. यही कारण है कि इसे धर्म ध्वजा पर स्थान दिया गया है ताकि मंदिर परिसर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह लगातार बना रहे.
कोविदार वृक्ष: अयोध्या का राजचिन्ह और परंपरा का प्रतीक
ध्वजा पर बना कोविदार वृक्ष अयोध्या की प्राचीन पहचान से जुड़ा हुआ है. पौराणिक ग्रंथों में इसे त्रेतायुग का राजवृक्ष बताया गया है, जो अयोध्या के ध्वज पर अंकित किया जाता था. रामायण में वर्णन मिलता है कि जब भरत भगवान राम को वन से वापस लाने गए, तो सेना के ध्वज पर बने कोविदार वृक्ष को देख लक्ष्मण तुरंत समझ गए कि यह अयोध्या की सेना है.
मान्यता है कि यह वृक्ष पौराणिक काल में कश्यप ऋषि द्वारा पारिजात और मंदार को मिलाकर बनाया गया पहला ‘हाइब्रिड वृक्ष’ था. इसके बैंगनी फूल अत्यंत सुंदर माने जाते हैं और आयुर्वेद में इसके औषधीय गुणों का भी वर्णन मिलता है.
आस्था का अद्वितीय क्षण
धर्म ध्वजारोहण केवल एक रस्म नहीं, बल्कि अयोध्या में रामराज्य की मूल भावना की पुनर्स्थापना का प्रतीक है. यह सनातन परंपरा, सांस्कृतिक गौरव और आध्यात्मिक उन्नति का संदेश पूरी दुनिया तक पहुंचाएगा. जब केसरिया ध्वज मंदिर के शिखर पर लहराएगा, तो यह न सिर्फ रामभक्तों के हृदय को उत्साह से भर देगा, बल्कि अयोध्या की दिव्यता भी एक बार फिर साक्षात हो उठेगी.


