Garuda Purana: अंतिम संस्कार के 3 दिन बाद ही क्यों होती है अस्थि इकट्ठा करने की प्रक्रिया, क्या कहता है गरुड़ पुराण?
सनातन परंपराओं में मृत्यु के बाद भी कई महत्वपूर्ण रीतियां निभाई जाती हैं, जिनमें अंतिम संस्कार के बाद के 13 दिनों तक की परंपराएं विशेष महत्व रखती हैं. ऐसे में सनातन धर्म में अंतिम संस्कार के 3 दिन बाद अस्थियों को इकट्ठा करने की परंपरा का महत्व भी गरुण पुराण में बताया गया है.

सनातन धर्म में जन्म से लेकर मृत्यु तक कई प्रकार की परंपराएं और रीति-रिवाज निभाए जाते हैं, जिन्हें 16 संस्कार कहा जाता है. इन संस्कारों में से अंतिम संस्कार सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. अंतिम संस्कार के दौरान मृत्यु के बाद शरीर को अग्नि दी जाती है. इसके बाद कुछ विशिष्ट रस्में निभाई जाती हैं, जैसे अस्थियां इकट्ठी करना और उनका विसर्जन.
अस्थि इकट्ठा करने का महत्व
अंतिम संस्कार के बाद तीसरे दिन अस्थियां इकट्ठी की जाती हैं. यह परंपरा क्यों है, इसका जवाब गरुण पुराण में मिलता है. गरुण पुराण के मुताबिक, अंतिम संस्कार के दौरान कुछ विशेष मंत्रों का जाप किया जाता है, जिससे अस्थियों में ऊर्जा उत्पन्न होती है. चूंकि, इन अस्थियों में उत्पन्न तत्वों और तरंगों का प्रभाव तीन दिनों तक रहता है. इसलिए, 3 दिन बाद ही अस्थियों को एकत्रित किया जाता है.
गरुण पुराण में अस्थि विसर्जन के रहस्य
गरुण पुराण के अनुसार, हमारे शरीर का निर्माण पांच तत्वों से हुआ है – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश. अंतिम संस्कार के बाद यह शरीर इन पांच तत्वों में विलीन हो जाता है. अस्थियां इकट्ठा करने और उनका विसर्जन करने से मृतक की आत्मा को शांति मिलती है और उसे मुक्ति मिलती है. गीता में भी कहा गया है कि आत्मा अमर होती है और मृत्यु के बाद वह नई यात्रा पर निकलती है.
अस्थि विसर्जन का धार्मिक महत्व
अस्थि विसर्जन की परंपरा को धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है. गंगा नदी में अस्थियों का विसर्जन करना विशेष रूप से पुण्यकारी माना जाता है. यह माना जाता है कि गंगा में अस्थियां विसर्जित करने से मृतक की आत्मा को शांति मिलती है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.
समाप्ति और मुक्ति की यात्रा
अंतिम संस्कार के बाद, मृतक की आत्मा अगली यात्रा की ओर बढ़ती है, जो कि एक नई शुरुआत होती है. यह यात्रा आत्मा के लिए मुक्ति और शांति का रास्ता खोलती है, जैसा कि गीता में कहा गया है.
डिस्क्लेमर- यह जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित है. इस परंपरा के पीछे के रहस्यों को समझने के लिए किसी विशेषज्ञ की सलाह लेना जरूरी है. JBT News इस जानकारी की पुष्टि नहीं करता है.


