उम्मीदों की कप्तान, मोगा की धरती से उठी वो आवाज जो अब इतिहास रचने के करीब : हरमनप्रीत कौर
हरमनप्रीत कौर की कहानी संघर्ष, साहस और सपनों की मिसाल है. मोगा की गलियों से उठकर उन्होंने भारतीय महिला क्रिकेट को नई पहचान दी. 2017 की ऐतिहासिक पारी से लेकर 2025 विश्व कप फाइनल तक, उन्होंने हर हार को हिम्मत में बदला.

स्पोर्ट्स : नवी मुंबई के डी.वाई. पाटिल स्टेडियम में सूरज ढल रहा था, आसमान सुनहरी रोशनी में नहाया था और उसी पल हरमनप्रीत कौर कैमरों के सामने खड़ी थीं शांत, दृढ़ और भावनाओं से भरी हुई. उनके शब्दों में सिर्फ़ कप्तानी नहीं, बल्कि संघर्ष, उम्मीद और वर्षों की मेहनत की झलक थी. भारत की महिला टीम पहली बार वनडे विश्व कप खिताब के इतने करीब थी, और उस पल हरमनप्रीत सिर्फ़ एक कप्तान नहीं, बल्कि करोड़ों सपनों की प्रतीक था.
मोगा की गलियों से विश्व मंच तक
कोच ने लड़कियों की टीम बनाई
उनके कोच कमलदीश सिंह सोढी ने पहली बार देखा कि यह लड़की गेंद को कितनी ताकत से मारती है. उन्होंने मोगा में लड़कियों की टीम बनाई, हरमन को पहला किट दिलाया और उसके भीतर एक सपना बो दिया. यही से शुरू हुआ वो सफर जिसने भारतीय महिला क्रिकेट को नई दिशा दी.
2017 की वह पारी जिसने सब कुछ बदल दिया
हरमनप्रीत की 171 रन की ऐतिहासिक पारी, जो उन्होंने 2017 विश्व कप के सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेली थी, भारतीय महिला क्रिकेट के इतिहास में मील का पत्थर बन गई. उस दिन दुनिया ने जाना कि भारतीय महिलाएं सिर्फ़ सुंदर बल्लेबाज़ी नहीं करतीं वे मैच पलटने का हौसला भी रखती हैं. उस पारी ने उन्हें एक प्रतीक बना दिया साहस, शक्ति और आत्मविश्वास का.
संघर्षों में निखरी कप्तान हरमन
हर जीत के बाद सवाल उठे, हर हार के बाद आलोचना हुई. कप्तानी, स्वभाव और टीम के प्रदर्शन पर चर्चाएं होती रहीं. पर हरमनप्रीत ने हर दबाव को अपने संकल्प में बदला. 340 से ज़्यादा मैच, 8,000 से ज़्यादा रन और कई बड़े खिताबों के साथ उन्होंने बार-बार साबित किया कि वह सिर्फ़ कप्तान नहीं, बल्कि भारत की महिला क्रिकेट की धड़कन हैं.
2020 में टीम को टी20 विश्व कप फाइनल तक ले जाना, राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीतना, एशियाई खेलों में स्वर्ण दिलाना और इंग्लैंड में 23 साल बाद सीरीज़ जीतना यह सब उनकी नेतृत्व क्षमता का प्रमाण है. लेकिन इस चमक के पीछे ऐसे कई रातें भी थीं जब वह टूटने के करीब थीं, पर हारी नहीं.
भावनाओं की कप्तान जो जीतकर भी रो पड़ती है
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सेमीफाइनल जीत के बाद कैमरे ने जब उन्हें आंखें पोंछते हुए पकड़ा, तो हर किसी ने उनकी सच्चाई देखी एक कप्तान जो जीत में भी भावुक हो जाती है. उन्होंने कहा, “मैं बहुत इमोशनल इंसान हूं, मैं जीतने के बाद भी रोती हूं, हारने के बाद भी. मेरे लिए ये पल बहुत अहम होते हैं.” यही मानवीयता उन्हें बाकी खिलाड़ियों से अलग बनाती है.
नई पीढ़ी की प्रेरणा
हरमनप्रीत ने वो पुल बनाया है जो भारतीय महिला क्रिकेट को गुमनामी से पहचान की ओर लेकर गया. 2017 के बाद अनगिनत लड़कियां क्रिकेट को करियर मानने लगीं क्योंकि उन्होंने हरमन में खुद को देखा. रेलवे की सादगी से लेकर विमेंस प्रीमियर लीग की चमक तक, हरमन ने दिखाया कि जज़्बा और मेहनत से कोई भी दीवार पार की जा सकती है.
महानता से एक कदम दूर
2 नवंबर इतिहास रचने का दिन. जब वह डी.वाई. पाटिल स्टेडियम में टॉस के लिए उतरेंगी, पूरा भारत उनके साथ सांस लेगा. यह पल 1983 की याद दिलाता है जब कपिल देव की टीम ने वेस्टइंडीज को हराकर भारतीय क्रिकेट को अमर कर दिया था. अब वही मौका हरमनप्रीत के सामने है. अगर वह इस बार ट्रॉफी उठाती हैं, तो यह सिर्फ़ एक जीत नहीं होगी यह न्याय होगा उन सभी सपनों का जो वर्षों से इंतज़ार कर रहे हैं.


