3 साल की बच्ची ने लिया संथारा और 10 मिनट में त्याग दिए प्राण, मौत के बाद धार्मिक और कानूनी विवाद शुरू
तीन साल की वियाना जैन ने ब्रेन ट्यूमर से जूझते हुए 'संथारा' व्रत के तहत जीवन त्याग दिया, जिससे धार्मिक स्वतंत्रता और बाल अधिकारों के टकराव पर गहरा विवाद खड़ा हो गया है.

इंदौर से एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जिसने पूरे देश में धार्मिक स्वतंत्रता बनाम बाल अधिकारों की बहस को फिर से तेज कर दिया है. ये तीन साल की वियाना जैन, जो एक लाइलाज ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित थी, उसने जैन धर्म की परंपरा 'संथारा' (स्वेच्छा से मृत्यु तक उपवास) के तहत जीवन त्याग दिया. इस घटना के बाद Golden Book of World Records द्वारा उसे संथारा लेने वाली दुनिया की सबसे कम उम्र की व्यक्ति घोषित किया गया, जिसने मामले को और सुर्खियों में ला दिया.
वियाना के माता-पिता ने बताया कि बच्ची की हालत मार्च 2025 तक बेहद नाजुक हो चुकी थी. 21 मार्च को उन्होंने इंदौर में जैन मुनि राजेश मुनि महाराज से आध्यात्मिक मार्गदर्शन लिया, जहां संथारा का सुझाव मिला और पूरे परिवार की सहमति से बच्ची को ये व्रत दिलाया गया. केवल 10 मिनट बाद ही उसकी मृत्यु हो गई.
संथारा लेने का फैसला क्यों?
बच्ची के पिता पियूष जैन ने कहा कि हम संथारा करवाने नहीं गए थे, लेकिन महाराज जी ने जब उसकी हालत देखी तो ये सलाह दी. परिवार ने सहमति जताई. वहीं मां वर्षा जैन ने अपनी पीड़ा साझा करते हुए कहा कि ये बहुत ही दर्दनाक फैसला था, लेकिन उसकी तकलीफ अब देखी नहीं जा रही थी. हालांकि इस फैसले पर अब सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या कोई नाबालिग ऐसा फैसला ले सकता है? क्या माता-पिता को भी ऐसा फैसला लेने का अधिकार है?
बाल अधिकारों पर उठे सवाल
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि किसी भी नाबालिग को मृत्यु के महत्व की समझ नहीं हो सकती और उसकी ओर से इस प्रकार का फैसला माता-पिता भी नहीं ले सकते. सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता ऋतेश अग्रवाल का कहना है कि अनुच्छेद 25 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता दी गई है, लेकिन ये बच्चे के जीवन के मूलभूत अधिकार पर हावी नहीं हो सकती.
संथारा: आस्था बनाम आत्महत्या
संथारा या सल्लेखना, जैन धर्म में एक प्राचीन परंपरा है जिसमें मौत समीप होने पर व्यक्ति धीरे-धीरे भोजन और जल त्याग कर आत्मिक शुद्धि की ओर अग्रसर होता है. अनुयायी इसे एक आध्यात्मिक साधना मानते हैं. वहीं आलोचक इसे आत्महत्या की श्रेणी में रखते हैं. 2015 में राजस्थान हाई कोर्ट ने संथारा को आत्महत्या के समान माना था और इसे गैरकानूनी घोषित किया था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को बाद में स्थगित कर दिया था, लेकिन नाबालिगों पर कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश अब तक नहीं दिए गए हैं.
इस घटना की सबसे गंभीर बात ये रही कि ना तो पुलिस और ना ही स्थानीय प्रशासन को इसकी जानकारी थी. इंदौर के अतिरिक्त डीसीपी राजेश डंडोतिया ने कहा कि हमें इस बारे में किसी ने सूचित नहीं किया. वियाना की दर्दनाक मौत और उसके पीछे लिए गए फैसले ने भारत में धार्मिक परंपराओं और कानूनी दायरे के टकराव को उजागर कर दिया है. जब फैसला किसी मासूम बच्चे के जीवन से जुड़ा हो, तो समाज, कानून और धर्म के बीच संतुलन बनाना पहले से कहीं ज्यादा जरूरी हो जाता है.


