50,000 कर्मचारियों को छह महीने से नहीं मिला वेतन, मध्य प्रदेश में बड़ा वेतन घोटाला
रिपोर्ट के मुताबिक, एक पत्र सामने आया है. आधिकारिक दस्तावेजों में 50,000 कर्मचारी मौजूद हैं, लेकिन दिसंबर 2024 से उनके वेतन का भुगतान नहीं किया गया है.

मध्य प्रदेश में सरकारी तंत्र से जुड़ा एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां राज्य सरकार के करीब 50,000 कर्मचारियों को पिछले छह महीनों से वेतन नहीं मिला है. यह संख्या राज्य के कुल सरकारी कर्मचारियों का लगभग 9 प्रतिशत है. यह मामला अब राज्य के इतिहास में सबसे बड़े वेतन घोटालों में से एक के रूप में देखा जा रहा है, जो लंबे समय तक फाइलों में दबा रहा.
प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार, इन कर्मचारियों के नाम और कर्मचारी कोड तो दर्ज हैं, लेकिन अज्ञात कारणों से इनका वेतन दिसंबर 2024 से बंद है. अब सवाल उठ रहे हैं क्या ये कर्मचारी छुट्टी पर हैं? क्या इन्हें निलंबित किया गया है? या फिर ये महज 'भूत' कर्मचारी हैं?
घोटाले का खुलासा
रिपोर्ट के अनुसार, 23 मई को एक पत्र सामने आया, जो कोषागार और लेखा विभाग के आयुक्त द्वारा राज्य भर के 6,000 से अधिक डीडीओ (Drawing and Disbursing Officers) को भेजा गया था. इसमें कहा गया है कि IFMIS सिस्टम में जिन कर्मचारियों का वेतन महीनों से रुका है, उनका सत्यापन अधूरा है और न ही उनकी सेवा समाप्ति की प्रक्रिया की गई है. इनसे 15 दिनों के भीतर जवाब मांगा गया है. इस मामले में लगभग 230 करोड़ रुपये की संभावित अनियमितता की जांच हो रही है.
कोषागार आयुक्त भास्कर लक्षकार ने बताया कि यह विसंगति डेटा विश्लेषण के दौरान उजागर हुई और इस जांच का मुख्य उद्देश्य किसी भी संभावित वित्तीय गड़बड़ी को समय रहते रोकना है. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इन खातों से फिलहाल वेतन निकाला नहीं गया है.
इस जांच के तहत, राज्यव्यापी स्तर पर डीडीओ को यह प्रमाणित करने को कहा गया है कि कहीं उनके अधीन किसी अनधिकृत व्यक्ति को नौकरी तो नहीं दी जा रही. एक वरिष्ठ वित्त अधिकारी के अनुसार, कुछ मामले ट्रांसफर या सस्पेंशन के कारण हो सकते हैं, लेकिन छह महीने तक वेतन न मिलना और न ही सेवा समाप्ति की प्रक्रिया होना गंभीर सवाल खड़े करता है.
वित्त मंत्री की प्रतिक्रिया
जब इस मुद्दे पर वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा से सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा कि “हर प्रक्रिया नियमों के अनुसार होती है” और ज्यादा जानकारी देने से कतराते हुए बातचीत बीच में ही छोड़ दी. अब सवाल यह है कि अगर ये कर्मचारी असल में काम नहीं कर रहे, तो उनका वेतन कहां जा रहा है? और यदि वे मौजूद हैं, तो छह महीने से बिना वेतन के काम कैसे कर रहे हैं? यह घोटाला सिर्फ वित्तीय ही नहीं, बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही का भी बड़ा सवाल है.


