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झालावाड़ हादसे से दहला गांव, शिक्षकों ने की बेशर्मी की हद पार, बोले- दो-दो सौ रुपये इकट्ठा करो तो डलवा देंगे नई छत

झालावाड़ के सरकारी स्कूल में छत गिरने से कई बच्चे घायल हुए और कई बच्चों की मौत हो गई. हादसे से पहले ग्रामीणों ने मरम्मत की मांग की थी लेकिन प्रशासन ने अनदेखी की. ग्रामीणों ने खुद बच्चों को मलबे से निकाला. वहीं, एंबुलेंस 45 मिनट देरी से पहुंची.

Suraj Mishra
Edited By: Suraj Mishra

राजस्थान के झालावाड़ जिले के पिपलोदी गांव में शुक्रवार को एक सरकारी स्कूल की छत ढह गई, जिससे पूरा गांव सदमे में है. हादसे के पीछे अधिकारियों और स्कूल प्रशासन की लापरवाही उजागर हो रही है. ग्रामीणों ने पहले से ही स्कूल की जर्जर स्थिति के बारे में कई बार शिकायत की थी और मरम्मत की गुहार भी लगाई थी, लेकिन न तो प्रशासन ने ध्यान दिया और न ही शिक्षकों ने कोई पहल की.

लापरवाही की इंतहा

ग्रामीणों का कहना है कि वे तहसीलदार और सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट तक को हालात से अवगत करा चुके थे. शिक्षकों ने ग्रामीणों से प्रति परिवार ₹200 जमा कर छत बदलवाने की बात कही थी. ग्राम विकास अधिकारी दौलत गुर्जर ने दावा किया कि स्कूल की मरम्मत चार साल पहले कराई गई थी और तब से छत सही हालत में थी, लेकिन ग्रामीणों का अनुभव कुछ और ही कहता है.

हादसे का मंजर

गांव के ही निवासी बालकिशन ने बताया कि जब वह पास की सड़क पर बैठे थे, तभी एक तेज आवाज सुनाई दी. स्कूल की छत ढह गई थी और बच्चे चीख-पुकार कर रहे थे. ग्रामीण तुरंत दौड़कर स्कूल पहुंचे और मलबा हटाकर बच्चों को निकालना शुरू कर दिया. निजी वाहनों से घायल बच्चों को अस्पताल पहुंचाया गया, क्योंकि एंबुलेंस करीब 45 मिनट बाद पहुंची.

गांव में मातम

इस हादसे ने गांव को झकझोर कर रख दिया है. शुक्रवार को गांव के किसी भी घर में चूल्हा नहीं जला. ग्रामीणों ने खाना नहीं खाया. बच्चों के लिए स्थानीय प्रशासन ने भोजन की व्यवस्था की. गांव में गमगीन माहौल है और लोग प्रशासन पर आक्रोश व्यक्त कर रहे हैं.

नेताओं का दौरा और सरपंच की भूमिका

शाम को पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और उनके बेटे सांसद दुष्यंत सिंह गांव पहुंचे. वसुंधरा ने कहा कि अगर स्कूल की इमारत को पहले चिह्नित किया गया होता, तो यह हादसा टाला जा सकता था. वहीं, गांव के सरपंच रामप्रसाद लोढ़ा ने बताया कि हादसे के बाद वह खुद जेसीबी लेकर पहुंचे और तुरंत राहत कार्य शुरू किया. करीब 13 बच्चों को मलबे से निकाला गया और अधिकांश को ग्रामीणों ने ही अपने दोपहिया वाहनों से अस्पताल पहुंचाया.

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26 July 2025, 07:00 AM IST

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