सजा पूरी होने के बाद भी जेल में रखा...SC मे राज्य सरकार को लगाई फटकार, कहा- 25 लाख दें मुआवजा
सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार को आदेश दिया कि सोहन सिंह को तय सजा से अधिक जेल में रखने के लिए 25 लाख मुआवजा दिया जाए. हाईकोर्ट द्वारा सजा घटाने के बावजूद वह चार साल सात महीने अतिरिक्त जेल में रहा. अदालत ने इसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया और राज्य की लापरवाही को अस्वीकार्य कहा. कोर्ट ने भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए जेलों में सर्वेक्षण का निर्देश भी दिया.

Supreme Court compensation Judgment : सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक और संवेदनशील फैसले में स्पष्ट किया कि यदि किसी दोषी को उसकी तय सजा से अधिक अवधि तक जेल में रखा जाता है, तो यह केवल कानून की अनदेखी नहीं है, बल्कि व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का गम्भीर उल्लंघन है. कोर्ट ने इसे "गंभीर प्रशासनिक चूक" करार देते हुए मध्य प्रदेश सरकार को आदेश दिया कि वह पीड़ित व्यक्ति को 25 लाख रुपये का मुआवजा प्रदान करे.
सजा पूरी होने के बाद भी वर्षों तक जेल में कैद
चार साल सात महीने अधिक जेल में बिताए
हैरान करने वाली बात यह है कि इसके बावजूद भी सोहन सिंह 6 जून 2025 तक जेल में ही रहा. इस प्रकार उसने निर्धारित सजा से लगभग चार साल सात महीने अधिक जेल में बिताए. यह त्रासदी तब सामने आई जब पीड़ित ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की.
लापरवाही किसी भी परिस्थिति में स्वीकार नहीं
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की खंडपीठ ने इस मामले को अत्यंत गंभीर मानते हुए कहा कि यह केवल एक व्यक्ति के साथ अन्याय नहीं है, बल्कि यह पूरे आपराधिक न्याय तंत्र की जवाबदेही पर सवाल उठाता है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस तरह की लापरवाही को किसी भी परिस्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता.
कैसे हुई इतनी बड़ी चूक ?
अदालत ने राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि उसे बताना होगा कि निगरानी और प्रशासनिक जवाबदेही में इतनी बड़ी चूक कैसे हुई. कोर्ट ने इस मामले को संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार) के उल्लंघन का उदाहरण बताया.
विधिक सेवा प्राधिकरण को जेल सर्वे का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश भी जारी किया कि मध्य प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (MPSLSA) राज्य की सभी जेलों का व्यापक सर्वेक्षण करे, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भविष्य में कोई भी कैदी निर्धारित सजा पूरी करने या जमानत मिलने के बाद भी अनावश्यक रूप से जेल में न रहे. यह कदम भविष्य में ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति को रोकने और व्यवस्था में पारदर्शिता बनाए रखने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण पहल माना जा रहा है.
स्वतंत्रता का हनन होना एक गंभीर मसला
राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नचिकेता जोशी ने अदालत को बताया कि सोहन सिंह कुछ समय के लिए जमानत पर भी बाहर था, इसलिए उसकी जेल में बिताई गई अतिरिक्त अवधि आठ वर्ष नहीं, बल्कि लगभग साढ़े चार वर्ष है. इसके बावजूद, पीड़ित के वकील महफूज अहसन नाजकी ने अदालत के सामने यह तथ्य रखा कि किसी भी नागरिक की स्वतंत्रता का गैर-कानूनी रूप से हनन होना एक गंभीर मसला है और इसके लिए राज्य को उत्तरदायी ठहराया जाना जरूरी है.
मौलिक अधिकारों की रक्षा सर्वोपरि
अंततः, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यदि न्याय व्यवस्था से ऐसे मामलों को गंभीरता से नहीं लिया गया तो नागरिकों का भरोसा बुरी तरह डगमगा जाएगा. कोर्ट का यह आदेश न केवल सोहन सिंह जैसे पीड़ितों के लिए राहत की सांस है, बल्कि देश भर की जेलों में कैदियों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक सशक्त संदेश भी है.


