नोएडा में मिस्ट स्प्रे से नहीं घटा प्रदूषण, पायलट प्रोजेक्ट फेल – अब नए विकल्पों की तलाश
नोएडा में धूल हटाने की कोशिश हुई फेल! 50 लाख खर्च करके मिस्ट स्प्रे लगाए गए लेकिन न धूल बैठी, न हवा साफ हुई. अब प्राधिकरण पीछे हट गया है और नए तरीकों की तलाश में है. आखिर क्यों नहीं चला इतना महंगा सिस्टम? जानिए पूरी कहानी अंदर…

Noida: वायु प्रदूषण से लड़ने के लिए नोएडा प्राधिकरण ने बड़े जोश के साथ सेक्टर-15 मेट्रो स्टेशन से सेक्टर-16 तक के 700 मीटर स्ट्रेच पर मिस्ट स्प्रे सिस्टम लगाया था. उम्मीद थी कि यह सिस्टम हवा में उड़ती धूल और पार्टिकुलेट मैटर को जमीन पर बैठा देगा और लोगों को कुछ हद तक राहत मिलेगी. लेकिन महज 15-20 दिनों के इस्तेमाल के बाद ही सामने आ गया कि यह तरीका कारगर साबित नहीं हो रहा है.
प्राधिकरण के सीईओ लोकेश एम. ने खुद माना कि मिस्ट स्प्रे से वैसा असर नहीं दिखा जैसा सोचा गया था. हवा में घुली धूल जस की तस बनी हुई है और स्प्रे का असर बहुत सीमित रहा है.
कैसे काम करता है मिस्ट स्प्रे सिस्टम?
इस सिस्टम में एक पोल पर 6 नोजल लगाए गए हैं, जो प्रेशर के साथ पानी की फुहार छोड़ते हैं. इनका मकसद यह था कि हवा में मौजूद धूल के बारीक कण इन फुहारों के संपर्क में आकर नीचे जमीन पर बैठ जाएं. पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर यह सिस्टम सुबह 8 से 11 और शाम को 6 से 9 बजे तक, हर 10 मिनट के अंतराल पर चलाया गया.
लेकिन सच्चाई यह रही कि ऊंचाई पर लगे इन नोजल से छोड़ी गई फुहारें तेज हवा और भारी ट्रैफिक के बीच अपना असर ही नहीं दिखा पाईं. धूल न सिर्फ हवा में बनी रही, बल्कि कई बार ज्यादा नमी के चलते सड़कें गीली होकर और ज्यादा गंदगी फैलाती नजर आईं.
50 लाख खर्च लेकिन परिणाम शून्य के बराबर
इस प्रोजेक्ट पर करीब 50 लाख रुपये खर्च किए गए थे. पहले इसे एक स्ट्रेच पर लगाने के बाद बाकी सड़कों पर भी विस्तार करने की योजना थी. लेकिन अब प्राधिकरण ने साफ कर दिया है कि इस सिस्टम को किसी और जगह नहीं लगाया जाएगा. इसके बजाय अब कोई नया और असरदार तरीका तलाशा जाएगा, जिससे धूल और प्रदूषण को वाकई में कंट्रोल किया जा सके.
तेज हवा और ट्रैफिक बना सबसे बड़ी बाधा
नोएडा की डीएससी रोड पर ट्रैफिक बहुत ज्यादा है और हवा की रफ्तार भी तेज रहती है. ऐसे में मिस्ट स्प्रे से निकलने वाली पानी की बारीक बूंदें धूल के कणों तक पहुंच ही नहीं पा रहीं. हवा में तैरते ये कण ज्यों के त्यों बने रहते हैं और लोगों की सेहत पर असर डालते हैं. यही वजह रही कि इस पूरे प्रयोग को सफल नहीं माना गया.
अब क्या होगा अगला कदम?
अब जब मिस्ट स्प्रे का प्रयोग सफल नहीं रहा, तो प्राधिकरण वैकल्पिक उपायों की तलाश में है. कोई ऐसा तरीका ढूंढा जाएगा जिससे वाकई में धूल और प्रदूषण को कंट्रोल किया जा सके. यह देखा जा रहा है कि सड़कों की नियमित सफाई, वैक्यूम मशीनों से क्लीनिंग और ग्रीन बेल्ट को मजबूत करने जैसे उपाय ज्यादा असरदार साबित हो सकते हैं.
टेक्नोलॉजी से पहले जरूरी है जमीनी हकीकत को समझना
इस पूरी कवायद से एक बात साफ होती है कि सिर्फ टेक्नोलॉजी लाकर प्रदूषण से नहीं लड़ा जा सकता, जब तक कि उसका इस्तेमाल ज़मीनी हालात के हिसाब से ना किया जाए. मिस्ट स्प्रे का आइडिया भले ही अच्छा था लेकिन हवा की दिशा, ट्रैफिक की मात्रा और नोजल की ऊंचाई जैसे बुनियादी पहलुओं को नजरअंदाज कर दिया गया.


