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गांव में नेताओं की नो एंट्री... बिहार के इस जिले में ग्रामीणों के सहयोग से बन रहा पूल

तीन दशक से धोबौली गांव के ग्रामीण बागमती नदी पर पुल नहीं बन पाने से परेशान थे. सरकार की उपेक्षा के कारण उन्होंने खुद चंदा इकट्ठा कर दस लाख रुपये की लागत से पुल का निर्माण शुरू किया. उन्होंने नेताओं के पुल उपयोग और गांव में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया है. यह कदम स्थानीय प्रशासन और राजनीतिक नेतृत्व की निष्क्रियता के खिलाफ ग्रामीणों की एकता और स्वावलंबन को दर्शाता है.

Utsav Singh
Edited By: Utsav Singh

Baghmati River Bridge : बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के धोबौली गांव में बागमती नदी पर पुल की मांग करते हुए तीन दशक बीत गए, लेकिन नतीजा सिर्फ खोखले वादे और आश्वासन ही रहा. सरकार और जनप्रतिनिधियों की लगातार अनदेखी से त्रस्त होकर ग्रामीणों ने खुद चंदा इकट्ठा कर पुल निर्माण शुरू कर दिया है. अब वे सरकार की प्रतीक्षा नहीं कर रहे, बल्कि स्वाभिमान और एकजुटता से खुद समाधान निकाल रहे हैं.

चंदे से बन रहा है दस लाख का पुल

आपको बता दें कि धोबौली घाट पर बन रहा यह पुल सिर्फ एक निर्माण परियोजना नहीं, बल्कि ग्रामीणों की इच्छाशक्ति और संगठन का प्रतीक है. धोबौली, ब्रह्मोतरा और ककरिया गांवों के लोगों ने मिलकर लगभग दस लाख रुपये की लागत से इसका निर्माण शुरू किया है. इसमें विमल सहनी, अजय सहनी, प्रकाश सहनी, प्रमोद सहनी, और जोग नारायण सहनी जैसे दर्जनों ग्रामीण सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं.

नेताओं की एंट्री पर लगी रोक
दरअसल, सरकार की उपेक्षा और नेताओं की वादा-खिलाफी से आहत ग्रामीणों ने बड़ा फैसला लिया है: जब तक सरकार इस पुल को आधिकारिक मान्यता नहीं देती, किसी भी नेता को इस पुल से गुजरने की अनुमति नहीं दी जाएगी. साथ ही गांव में भी नेताओं के प्रवेश पर अस्थायी प्रतिबंध लगाया गया है. ग्रामीणों का कहना है कि यह सामूहिक निर्णय है और पूरे गांव की सहमति से लिया गया है.

हर बार मिला सिर्फ आश्वासन
वहीं, ग्रामीणों ने बताया कि सबसे पहले स्व. कैप्टन जय नारायण निषाद ने सांसद रहते हुए पुल निर्माण का वादा किया था. उनके बाद उनके बेटे अजय निषाद दो बार सांसद बने, लेकिन काम शुरू नहीं हुआ. इसी तरह, विधानसभा चुनावों में महेश्वर प्रसाद यादव, वीणा देवी और निरंजन राय ने भी पुल बनवाने का वादा किया, जो केवल भाषणों और घोषणाओं तक सीमित रहा.

शासन व्यवस्था पर सवाल
धोबौली गांव का यह उदाहरण न सिर्फ शासन व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि अगर जनता ठान ले, तो संसाधनों की कमी उन्हें रोक नहीं सकती. यह पुल सिर्फ ईंट-पत्थर का ढांचा नहीं, बल्कि जनप्रतिनिधियों के खोखले वादों के खिलाफ एक सशक्त संदेश है.

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17 August 2025, 10:00 PM IST

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