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क्या बिहार की सियासत में पलटेगा पासा ? PM मोदी बनेंगे गेमचेंजर ! जानें प्रमुख मुद्दे और राजनीतिक गणित

बिहार में आगामी चुनावों को लेकर राजनीतिक माहौल गर्म है. महंगाई, बेरोजगारी, जातीय समीकरण और विकास जैसे मुद्दे चर्चा में हैं. प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता क्या इन समीकरणों को बदल पाएगी, यह बड़ा सवाल है. बिहार की जनता अब पुराने वादों और नए दावों के बीच फैसला करेगी कि सत्ता में कौन लौटेगा और किसे नकारा जाएगा.

Utsav Singh
Edited By: Utsav Singh

बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर तैयारियां तेज हो चुकी है. सभी राजनीतिक दल रैली और जनसभाएं करने में लगे हुए हैं.अक्टूबर-नवंबर में 243 सीटों पर वोट डाले जाएंगे. इस बार मुकाबला नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए (BJP + JDU) और तेजस्वी यादव की अगुवाई वाले महागठबंधन (RJD + कांग्रेस) के बीच है. इन दोनों धड़ों के अलावा, प्रशांत किशोर की नई पार्टी ‘जन सुराज’ भी मैदान में उतरकर नई राजनीति की शुरुआत कर रही है. राज्य की राजनीति में कई बड़े मुद्दे छाए हुए हैं, जो चुनाव की दिशा तय कर सकते हैं.

क्या बिहार में चलेगा मोदी मैजिक ?

आपको बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरे देश में एनडीए के सबसे लोकप्रिय नेता माने जाते हैं. बिहार में उनकी रैलियां, योजनाएं और भाषण आम जनता पर गहरा असर डालते हैं. बीजेपी और जेडीयू ने ओबीसी, सवर्ण और दलित वोटरों को लुभाने की योजना बनाई है. नीतीश सरकार ने 125 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने और किसानों के लिए रबी महाभियान शुरू किया है. ये योजनाएं मतदाताओं को प्रभावित कर सकती हैं, लेकिन विपक्ष भी पूरी ताकत से सरकार को घेरने की कोशिश में जुटा है.

ये हैं बिहार के बड़े मुद्दे...

कानून व्यवस्था बना बड़ा चुनावी मुद्दा

बिहार में पिछले कुछ महीनों में अपराध की घटनाएं बढ़ी हैं. पटना और दूसरे शहरों में हत्या, अपहरण, और लूटपाट की खबरें आम हो गई हैं. विपक्ष इसे नीतीश सरकार की विफलता बता रहा है. तेजस्वी यादव का आरोप है कि बिहार में फिर से 'जंगल राज' लौट आया है. नीतीश का दावा है कि उन्होंने 2005 के बाद बिहार को सुरक्षित बनाया, लेकिन हालात फिर बिगड़ते दिख रहे हैं. अगर ये सिलसिला रुका नहीं, तो एनडीए को नुकसान हो सकता है.

नीतीश कुमार की उम्र पर उठे सवाल

नीतीश कुमार अब 74 वर्ष के हो चुके हैं. हाल ही में उनकी तबीयत को लेकर कई खबरें आईं, और राष्ट्रगान के दौरान एक कार्यक्रम में उनका व्यवहार विपक्ष के निशाने पर आ गया. तेजस्वी ने उन्हें "थका हुआ नेता" कहा. नीतीश की "प्रगति यात्रा" भी सेहत कारणों से रोक दी गई है. अगर नीतीश सक्रिय नहीं रहे, तो बीजेपी को नया नेतृत्व तलाशना पड़ेगा, जो आसान नहीं होगा क्योंकि बिहार में बीजेपी के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं है जिसकी पकड़ सभी वर्गों में हो.

वोटर लिस्ट में बदलाव पर विवाद

चुनाव आयोग बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण के जरिए वोटर लिस्ट अपडेट कर रहा है. इस प्रक्रिया में अब तक 5 करोड़ से ज्यादा लोगों ने अपने फॉर्म भरे हैं. लेकिन विपक्ष का आरोप है कि जानबूझकर गरीब, दलित और मुस्लिम वोटरों के नाम सूची से हटाए जा रहे हैं. तेजस्वी यादव और कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे बीजेपी की साजिश बताया है. चुनाव आयोग ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि पूरी प्रक्रिया डिजिटल और पारदर्शी है, लेकिन यह मुद्दा अब चुनावी बहस का हिस्सा बन चुका है.

रोजगार की तलाश में लोग बाहर

बिहार के गांवों से बड़ी संख्या में लोग आज भी रोजगार की तलाश में दिल्ली, मुंबई और पंजाब जैसे राज्यों की ओर पलायन कर रहे हैं. राज्य में गरीबी और महंगाई के कारण युवाओं को स्थानीय स्तर पर नौकरी नहीं मिल पा रही है. विपक्ष इस मुद्दे को बार-बार उठाकर नीतीश सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा है. तेजस्वी यादव युवाओं को रोजगार का भरोसा दिलाकर उनकी पहली पसंद बनने की कोशिश कर रहे हैं.

बेरोजगारी, चुनावी बहस का केंद्र

बेरोजगारी बिहार की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक बनी हुई है. नीतीश कुमार ने कई बार वादा किया कि राज्य में लाखों युवाओं को नौकरी दी जाएगी. हाल में 55 हजार पुलिसकर्मियों की भर्ती का ऐलान हुआ है, लेकिन विपक्ष इसे सिर्फ चुनावी जुमला बता रहा है. तेजस्वी ने अपनी पिछली सरकार में शिक्षक भर्ती को लेकर युवाओं में लोकप्रियता हासिल की थी. प्रशांत किशोर भी युवाओं और महिलाओं को अपने पक्ष में लाने की कोशिश कर रहे हैं.

जाति जनगणना और आरक्षण की राजनीति

2023 की जाति जनगणना के बाद राज्य में राजनीतिक गर्मी बढ़ गई है. इस जनगणना में यादव, कुर्मी, कोइरी जैसी जातियों की आबादी सामने आई. नीतीश सरकार ने अति पिछड़ा वर्ग को 18% आरक्षण देने का ऐलान किया था, लेकिन अब लोग 50% की आरक्षण सीमा तोड़ने की मांग कर रहे हैं. अगर यह मांग और तेज हुई, तो एनडीए को इसे संभालना मुश्किल हो सकता है.

विपक्षी दलों की बढ़ती लोकप्रियता

तेजस्वी यादव लगातार युवाओं, मुस्लिम और पिछड़े वर्गों में अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं. शिक्षक भर्ती, जातिगत सर्वे और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर वे चर्चा में हैं. दूसरी ओर, प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने 40 सीटों पर महिलाओं को टिकट देने का ऐलान कर सियासत में नया मोड़ ला दिया है. पीके खुद को पारंपरिक राजनीति से अलग रखकर एक 'विकल्प' के तौर पर पेश कर रहे हैं.

एंटी-इनकंबेंसी यानी सत्ता विरोधी लहर

नीतीश कुमार 2005 से सत्ता में हैं. इतने लंबे समय तक सरकार चलाने के बाद अब जनता में नाराजगी देखी जा रही है. कुछ सर्वे में तेजस्वी को सीएम पद के लिए पहली पसंद बताया गया है. अगर जनता बदलाव चाहेगी, तो एनडीए के लिए यह बड़ा खतरा साबित हो सकता है.

जनता के असली मुद्दे होंगे निर्णायक

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सिर्फ दलों और चेहरों की टक्कर नहीं होगी, बल्कि असली लड़ाई जनता के मुद्दों की होगी, जैसे अपराध, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, आरक्षण और पलायन. जो दल इन मुद्दों पर ठोस समाधान देगा, जनता का वोट उसी के पक्ष में जाएगा. चुनाव दिलचस्प होने वाला है और हर पार्टी को अपनी रणनीति पर गहराई से काम करना होगा.

वोट केवल जनता के मुद्दों पर...

बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव में सिर्फ राजनीतिक दलों और चेहरों की टक्कर नहीं होगी, बल्कि इस बार यह लड़ाई जनता के मुद्दों पर होगी, जैसे बिहार में बढ़ते अपराध, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, पलायन और आरक्षण. जो भी राजनीतिक दल इन मुद्दों का समाधान देगा, बिहार की जनता उसे ही अपना कीमती वोट देगी. इस बार का बिहार विधानसभा चुनाव काफी दिलचस्प होने वाला है, सभी दल अपने रणनीति पर गहराई से काम करने में लेग है.

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18 July 2025, 03:51 PM IST

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