सोशल मीडिया के लाभ और हानि!
इंटरनेट और सोशल मीडिया कच्ची उम्र के बच्चों को अपराधी बना रहा है। पिछले कुछ वर्षों में सोशल मीडिया में जो जानकारी प्रस्तुत हो रही है। वह बालपन और युवा अवस्था को क्रूर और अपराधिक घटनाओं की ओर ले जाने का काम कर रही है।
इंटरनेट और सोशल मीडिया कच्ची उम्र के बच्चों को अपराधी बना रहा है। पिछले कुछ वर्षों में सोशल मीडिया में जो जानकारी प्रस्तुत हो रही है। वह बालपन और युवा अवस्था को क्रूर और अपराधिक घटनाओं की ओर ले जाने का काम कर रही है। सबसे बड़ी बात यह है कि परिवार और समाज के लोग इस खतरे से आगाह नहीं हो पा रहे हैं। सरकार जिसकी जिम्मेदारी थी कि भारत में इंटरनेट के माध्यम से कौन सी जानकारी आएगी और कौनसी प्रतिबंधित रहेगी इस पर भारत सरकार ने रोक लगाने का कोई सही प्रयास नहीं किया। इसी तरीके से गेम के माध्यम से इंटरनेट मोबाइल फोन और सोशल मीडिया पर जिस तरह की गंदगी परोसी जा रही हैं। वह बच्चों और युवाओं को मानसिक रूप से विकृति की ओर ले जा रही है।
कोरोना काल के दौरान ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर गांव गांव में हर बच्चे को मोबाइल उपलब्ध करा दिए गए। इंटरनेट खोलते ही सेक्स, गेम्स से संबंधित जानकारी इंटरनेट एवं सोशल मीडिया के माध्यम से जो गलत जानकारी युवा और बच्चों तक भेजी जा रही है, वह उन्हें वास्तविकता से परे ले जाकर एक अलग दुनिया में विचरण करा रही है। पिछले कुछ वर्षों में नाबालिग बच्चे एवं युवा सेक्स और नशे के शिकार हो रहे हैं। युवा अश्लील वीडियो देखने के आदी हो गए हैं। जो बीमारी बड़े-बड़े शहरों में थी, वह अब गांव-गांव तक पहुंच रही है। बालपन और युवापन हर चीज को जानना चाहता है। हर नई चीज उसे आकर्षित करती है। कच्ची उम्र में ही बच्चे नशीले पदार्थों का सेवन करने लगे हैं। बहुत कम उम्र में सेक्स संबंधी अपराध उन्हीं के बीच हो रहे हैं। मानसिक रूप से वह मोबाइल एडिक्शन के शिकार हो रहे हैं। छोटे-छोटे बच्चे बिना मोबाइल में गेम देखते हुए दूध, नाश्ता और खाना-पीना करते हैं।
यदि मोबाइल नहीं रहता है तो वह खाते-पीते तक नहीं हैं। मोबाइल नहीं मिलने पर युवा और बच्चे आत्महत्या तक करने लगे हैं। अनियंत्रित इंटरनेट के उपयोग से अब हमने भारतीय समाज में बच्चों और युवाओं में मनमाने आचरण करने की छूट दे दी है। इन पर नियंत्रण लगा पाना किसी तरीके से संभव नहीं हो पा रहा है। भारत जैसे देश में 82 फीसदी युवा रोजाना 2 घंटे से ज्यादा सोशल मीडिया पर अपना समय बिता रहे हैं। व्हाट्सएप जैसे ऐप में बिना जुड़े सैकड़ों समूह मैसेज भेज देते हैं। मोबाइल से मैसेज को डिलीट करने में ही घंटों लग जाते हैं। सरकार, समाज और परिवार को यह सब पता है। इसके बाद कोई भी अपनी जिम्मेदारी को निभाने और मानने के लिए तैयार ही नहीं है।
भारत सरकार को इंटरनेट के ऊपर जो नियंत्रण लगाने चाहिए थे, भारत में वह आज तक नहीं लगाए गए। भारत के लिए तकनीकी के माध्यम से जो भारत के लिये लाभदायक है, उसके लिए कोई काम सरकार ने नहीं किया। उल्टे विदेशी कंपनियों की गोद में जाकर भारत सरकार बैठ गई। भारत के लाखों हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर और कम्युनिकेशन के इंजीनियर अंग्रेजी कंपनियों की गोद में जाकर बैठ गए हैं। भारत के युवा तकनीकी विशेषज्ञ गुगल, फेसबुक, ट्विटर, लिंकर, यूट्यूब इत्यादि में जाकर काम कर रहे हैं। भारत सरकार की नीतियां आज भी भारतीय संस्कृति, सामाजिक व्यवस्था और भारतीय जरूरतों को ध्यान में रखकर नहीं हो रही हैं। जिसके कारण हमारे करोड़ों बच्चे और युवा आज मानसिक बीमारी के शिकार होकर पूरी समाज और देश के लिए बोझ बनते चले जा रहे हैं। हमारे ज्ञान का लाभ विदेशी कंपनियां उठाकर आर्थिक शोषण कर रही है।
जापान और चीन जैसे देश से हमने पिछले 20 वर्षों से कोई सबक नहीं लिया। अभी भी हम सबक लेने के लिए तैयार नहीं है। सांप निकल जाने के बाद डंडा पीटकर हम सांप को मारने का प्रयास करते हैं। शायद यही हमारी नियति है। आधुनिकता की होड़ में बच्चे और युवा आज जिस तरह सोशल मीडिया की गिरफ्त में हैं, उससे समाज में बहुत बदलाव देखने को मिल रहा है। इंटरनेट की चकाचौंध ने किशोरों अौर युवाओं को पूरी तरह से अपनी गिरफ्त में ले रखा है। इसमें भी लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन क्लासेस की प्रक्रिया की मुख्य भूमिका रही है। बच्चों को पेरेंट्स ने मोबाइल फोन उपलब्ध कराए। आज के समय में अधिकांशतया सड़क हादसे मोबाइल फोन पर लोगों की व्यस्तता के कारण ही हो रहे हैं। एक तरफ मोबाइल फोन जहां लोगों को सुगमता प्रदान कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ इसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। बच्चे देर रात तक मोबाइल फोन पर इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं।