अदाणी के हाथ से फिसली यमुना एक्सप्रेसवे वाली कंपनी, वेदांता ने ऐसे मारी बाजी जिसे देखकर सब दंग!
देश के सबसे बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में शामिल यमुना एक्सप्रेसवे बनाने वाली कंपनी जेपी एसोसिएट्स दिवालिया होकर बिक गई. इस कंपनी को खरीदने की दौड़ में गौतम अदाणी सबसे आगे थे, लेकिन अंतिम समय में अनिल अग्रवाल की वेदांता ने ₹17,000 करोड़ में बाजी मार ली.

JP Associates: देश के सबसे बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में शुमार यमुना एक्सप्रेसवे को बनाने वाली कंपनी जेपी एसोसिएट्स (JP Associates) बिक गई है. दिलचस्प बात यह है कि जिस कंपनी को खरीदने के लिए अरबपति उद्योगपति गौतम अदाणी ने हाथ-पांव मारे थे, उसे अंतिम समय में वेदांता समूह (Vedanta Group) के मालिक अनिल अग्रवाल ने खरीद लिया.
दिवालिया हो चुकी इस कंपनी की नीलामी अदालत के आदेश पर कराई गई थी. रेस में सबसे आगे अदाणी थे, लेकिन अंतिम समय में वेदांता ने ₹17,000 करोड़ में इसे खरीदकर सबको चौंका दिया. यह वही कंपनी है जिसने ₹13,000 करोड़ की लागत में दिल्ली-आगरा को जोड़ने वाला यमुना एक्सप्रेसवे बनाया था.
यमुना एक्सप्रेसवे परियोजना
यमुना एक्सप्रेसवे परियोजना की परिकल्पना उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2001 में की थी. इसी के लिए 20 अप्रैल 2001 को ताज एक्सप्रेसवे प्राधिकरण (TEA) का गठन किया गया, जिसे बाद में बदलकर यमुना एक्सप्रेसवे प्राधिकरण (YEA) कर दिया गया.
165 किलोमीटर लंबे इस एक्सप्रेसवे का विकास सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP Model) के तहत जेपी ग्रुप ने किया. 7 फरवरी 2003 को TEA और जेपी इंडस्ट्रीज लिमिटेड (JIL) के बीच रियायत समझौता हुआ. लगभग नौ साल बाद, 2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इसका उद्घाटन किया.
यमुना एक्सप्रेसवे की लागत
जेपी एसोसिएट्स ने यमुना एक्सप्रेसवे बनाने में करीब ₹13,000 करोड़ खर्च किए थे. इसकी रियायत अवधि 36 वर्ष तय हुई थी. लेकिन आज की स्थिति देखें तो निर्माण लागत ₹20,000 करोड़ से भी अधिक आंकी जाती है.
इसके बावजूद, पूरी कंपनी को वेदांता ने केवल ₹17,000 करोड़ में खरीद लिया. यानी जिस राशि में यह मेगा प्रोजेक्ट बना था, उससे महज ₹4,000 करोड़ अधिक में पूरी कंपनी बिक गई.
अदाणी के हाथ से फिसली डील
जेपी एसोसिएट्स दिवालिया होने के बाद बिक्री के लिए रखी गई थी. इसमें कई कंपनियां रुचि दिखा रही थीं, लेकिन सबसे आगे अदाणी समूह का नाम चल रहा था. हालांकि, अचानक अनिल अग्रवाल की एंट्री ने पूरा खेल पलट दिया और वेदांता ने 17 हजार करोड़ की बोली लगाकर सौदा पक्का कर लिया.


