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Expainer: 'डॉलर बढ़ा, रुपया गिरा... आखिर क्यों? जानिए 77 साल की कहानी और क्या है इसका खतरनाक असर!'

रुपया क्यों गिर रहा है? ये सवाल हर किसी के मन में है, क्योंकि डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की कीमत 87 तक पहुंच चुकी है और ये गिरावट लगातार बढ़ रही है। क्या है इसके पीछे की वजहें? क्या इतिहास में भी कभी ऐसा हुआ था? जानिए 77 सालों की सफर में किस तरह रुपये की कीमत में उतार-चढ़ाव आया और आज के हालात क्यों हैं चिंता का कारण? पूरी जानकारी जानने के लिए पढ़ें खबर!

Aprajita
Edited By: Aprajita

Explainer: क्या आपने कभी सोचा है की ऐसा क्या हुआ जो रुपया का भाव गिर गया और डॉलर का बढ़ गया? आपको जानकर ये हैरानी होगी कि किसी समय में 1 रुपया = 1 डॉलर हुआ करता था, फिर धीरे-धीर डॉलर का भाव बढ़ता चला गया.

हाल के दिनों में भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले लगातार गिर रहा है और अब यह 86.46 के आसपास पहुंच चुका है। कुछ दिन पहले, रुपया 87 तक भी गिर चुका था। यह गिरावट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का कारण बन चुकी है, लेकिन इसके पीछे कई कारण और इतिहास छुपा हुआ है, जिन्हें जानना ज़रूरी है. चलिए इसको थोड़ा विस्तार से समझते है.

रुपया: 77 सालों में कैसी रही है इसकी कहानी

दरअसल जब भारत ने 15 अगस्त 1947 को आज़ादी प्राप्त की तो उस वक्त भारतीय रुपया और अमेरिकी डॉलर की कीमत बराबर थी। उस वक्त भारत पर कोई विदेशी कर्ज भी नहीं था। लेकिन जैसे-जैसे देश ने विकास योजनाएं शुरू की और बाहरी कर्ज लेना शुरू किया, रुपया कमजोर होना शुरू हुआ। 1948 से 1966 तक रुपया 4.79 प्रति डॉलर की दर पर स्थिर रहा। फिर 1962 और 1965 के युद्धों के बाद, सरकार को मुद्रा अवमूल्यन करना पड़ा और रुपया 7.57 प्रति डॉलर तक गिर गया। 1971 में रुपये का संबंध ब्रिटिश मुद्रा से खत्म होकर अमेरिकी डॉलर से जुड़ गया और 1975 में रुपये की कीमत 8.39 प्रति डॉलर थी।

1991 में बड़ा संकट और रुपया गिरा

1991 में भारत को गंभीर भुगतान संकट का सामना करना पड़ा। उस वक्त देश में उच्च मुद्रास्फीति और विकास दर में कमी थी। इस स्थिति में, रुपये को अवमूल्यन किया गया और इसकी कीमत 17.90 प्रति डॉलर हो गई।

रुपया क्यों गिर रहा है अब?

आज की स्थिति में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 86.46 रुपये प्रति डॉलर के स्तर पर है। इसके गिरने के कई कारण हैं:

विदेशी पूंजी का बाहर जाना: हाल के महीनों में विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) भारतीय बाजार से धन निकाल रहे हैं, जिससे रुपया कमजोर हो रहा है।

➛ डॉलर की मजबूती: वैश्विक बाजार में अमेरिकी डॉलर की मजबूती के कारण रुपया और अन्य मुद्राएं कमजोर हो रही हैं।

➛ निर्यात में कमी: भारत का निर्यात अपेक्षाकृत कम है, और इस वजह से विदेशी मुद्रा की आमदनी घट रही है, जो रुपये पर दबाव डाल रही है।

मुद्रा अवमूल्यन क्यों होता है?

मुद्रा का मूल्य उसके बाजार में मांग और आपूर्ति के आधार पर तय होता है। जब किसी देश की मुद्रा की मांग घटती है, तो उसकी कीमत गिर जाती है। इसके अलावा, जब किसी देश की मुद्रास्फीति बढ़ती है और केंद्रीय बैंक का मौद्रिक नीति ढीला होता है, तो भी मुद्रा की कीमत गिर सकती है।

क्या इसका असर विदेशी मुद्रा भंडार पर भी पड़ा है?

हाँ, इसका असर भारत के विदेशी मुद्रा भंडार पर भी पड़ा है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार सितंबर में 700 बिलियन डॉलर था, जो अब घटकर दिसंबर के अंत तक 640 बिलियन डॉलर पर आ गया है। हालांकि, अगर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने डॉलर के मुकाबले रुपया को सहारा देने के लिए हस्तक्षेप नहीं किया होता, तो यह गिरावट और भी अधिक हो सकती थी।

क्यों बढ़ी है चिंता?

अर्थशास्त्रियों के अनुसार, भारत की मुद्रा में गिरावट के पीछे एक बड़ी वजह आयात पर बढ़ी निर्भरता है, जैसे कच्चा तेल और सोने की बढ़ती मांग, जो डॉलर की मांग बढ़ाती है और रुपये को कमजोर करती है। साथ ही, भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति अमेरिकी फेडरल रिजर्व की तुलना में ज्यादा ढीली है, जिससे रुपये पर दबाव बनता है। इसकी वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था और मुद्रा के सामने कई चुनौतियां हैं, लेकिन समय रहते उचित कदम उठाए जाएं तो इसका समाधान संभव है।

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15 January 2025, 05:14 PM IST

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