सिद्धांत चतुर्वेदी ने ‘धड़क 2’ का खोला राज,बोले-क्लाइमैक्स उड़ा देगा होश, बताया इंडस्ट्री का कौन है असली गॉडफादर
एक्टर सिद्धांत चतुर्वेदी जल्द ही फिल्म 'धड़क 2' में नजर आने वाले हैं, जो 1 अगस्त को रिलीज होने जा रही है. इस फिल्म को लेकर सिद्धांत ने मीडिया से बातचीत के दौरान इसके क्लाइमैक्स पर कुछ दिलचस्प बातें साझा की हैं.

Siddhant Chaturvedi: अभिनेता सिद्धांत चतुर्वेदी, जो ‘गली बॉय’ और ‘गहराइयां’ जैसी फिल्मों में अपनी अदाकारी का लोहा मंवा चुके हैं, अब अपनी अगली फिल्म ‘धड़क 2’ के साथ दर्शकों के सामने आने को तैयार हैं. इस फिल्म में वह एक नए और गहरे किरदार में नजर आएंगे, जो दर्शकों को भावनात्मक रूप से जुड़ने का एक अलग अनुभव देगा. मीडिया से खास बातचीत में उन्होंने अपने किरदार, फिल्म और जीवन के कुछ अहम अनुभवों पर विस्तार से बात की. इसके अलावा, उन्होंने जात-पात जैसे सामाजिक मुद्दों को लेकर एक ऐसा अनुभव साझा किया, जो दिल को छूने वाला है. वहीं, जब उनसे ‘गॉडफादर’ के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने अपने पिता को अपना गॉडफादर बताते हुए एक बेहद भावुक जवाब दिया.
‘धड़क 2’ और सिद्धांत चतुर्वेदी
सिद्धांत चतुर्वेदी ने फिल्म ‘धड़क 2’ को एक आत्मिक सीक्वल बताया. उनके अनुसार, "आत्मा वही है, लेकिन शरीर, जगह और हालात बिल्कुल अलग हैं." उन्होंने कहा कि जहां पहले फिल्म ‘धड़क’ में कॉलेज का मासूम प्यार दिखाया गया था, वहीं इस बार की कहानी गहरी और सच्ची है. “यह प्यार ऐसा है, जो केवल देखा या कहा नहीं जा सकता, उसे जीकर ही समझा जा सकता है. इस फिल्म में खामोशी का महत्व बहुत है, और यही खामोशी फिल्म की सबसे बड़ी ताकत है.” सिद्धांत ने यह भी बताया कि इस फिल्म में दर्शकों को बहुत कुछ महसूस करने और सोचना पड़ेगा.
सिद्धांत चतुर्वेदी का अनुभव
इस फिल्म में सिद्धांत का किरदार एक शांत और सहनशील व्यक्ति का है, जो खुद को नहीं जताता. सिद्धांत ने इस पर बात करते हुए कहा, 'जो किरदार मैं निभा रहा हूं, वह बहुत कुछ सहता है, लेकिन ज्यादा बोलता नहीं.' उन्होंने यह भी कहा कि आजकल के समाज में लोग अक्सर मानते हैं कि जो चुप है, वह दबा हुआ है, लेकिन सिद्धांत के अनुसार चुप रहना भी एक ताकत होती है. "कई बार चुप रहकर सहना ही सबसे बड़ा जवाब होता है."
जात-पात का भेदभाव
सिद्धांत चतुर्वेदी ने जात-पात के भेदभाव को लेकर अपने अनुभवों को साझा किया. उन्होंने बताया, 'मैं ब्राह्मण परिवार से हूं, मेरे दादाजी बलिया में पंडित थे. लेकिन मेरे पापा की सोच हमेशा बहुत खुली रही, और बचपन में मैंने कभी भेदभाव महसूस नहीं किया.' हालांकि, एक सीन में उन्हें जात-पात के भेदभाव का दर्द महसूस हुआ. 'इस फिल्म में एक सीन था, जिसमें एक आदमी केवल अपनी जाति के कारण जमीन पर बैठ गया था. उस सीन ने मुझे अंदर से झकझोर दिया और मुझे महसूस हुआ कि ये जख्म अब भी जिंदा हैं.'
किरदार को सिर्फ निभाना नहीं, जीना पड़ता है
सिद्धांत ने यह भी बताया कि किसी किरदार को निभाना सिर्फ मेकअप और एक्टिंग से नहीं होता, बल्कि उसकी सोच को महसूस करना जरूरी है. "चेहरा मेकअप से बदल सकता है, लेकिन किरदार की सोच को अपनाना सबसे कठिन होता है. मैं डायरेक्टर की हर बात ध्यान से सुनता हूं और स्क्रिप्ट को सिर्फ पढ़ता नहीं, उसे महसूस करता हूं. फिर अपने अनुभवों से उसमें जान डालता हूं. तभी जाकर वह किरदार सच्चा लगता है."
सिद्धांत ने फिल्म के एक सीन को लेकर अपनी भावनाओं को साझा किया. 'एक सीन था, जिसमें विपिन शर्मा सर मेरे पापा का रोल कर रहे थे. सीन इतना असली था कि कट होने के बाद भी हम दोनों (मैं और त्रिप्ती डिमरी) रोते रहे. हम करीब आधे घंटे तक चुपचाप एक-दूसरे को पकड़कर बैठे रहे. वह पल हमारे लिए एक्टिंग नहीं, सच्चाई बन गया था.'
फिल्म का क्लाइमैक्स
सिद्धांत ने फिल्म के क्लाइमैक्स को लेकर भी बात की. उनका कहना था कि जब लोग फिल्म का अंत देखेंगे, तो वह चौंक जाएंगे. 'यह वह क्लाइमैक्स नहीं है, जिसकी आमतौर पर उम्मीद की जाती है. मुझे लगता है कि थिएटर में कुछ देर के लिए सब शांत हो जाएंगे. क्योंकि तब समझ में आएगा कि यह केवल दो लोगों की नहीं, बल्कि पूरे समाज की कहानी है.'
सिद्धांत का दर्द
सिद्धांत ने फिल्म के दौरान अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा, 'इस फिल्म को करते हुए कई बार ऐसा लगा कि अगर मैं उस किरदार की जगह होता, तो शायद इतना सह नहीं पाता. लेकिन जब आप किसी को जीते हो, तो उसका दर्द समझ में आता है. कुछ आंसू ऐसे होते हैं जो आंखों से नहीं गिरते, लेकिन मन के अंदर बहुत कुछ बह जाता है.'
मेरे पापा ही मेरे गॉडफादर हैं
जब सिद्धांत से पूछा गया कि उनका गॉडफादर कौन है, तो उन्होंने साफ और सच्चाई से कहा, "मेरे पापा ही मेरे गॉडफादर हैं.' उन्होंने आगे बताया कि उनके पिता ही उनके सबसे बड़े सपोर्टर और सच्चे आलोचक रहे हैं. 'उन्होंने मुझे हमेशा वही करने दिया जो मेरा दिल चाहता था. मुझे लगता है कि किसी पिता का अपने बेटे में ऐसा भरोसा रखना ही सबसे बड़ी बात होती है. अगर मैं उन्हें और मम्मी को वह सब दे सकूं, जिसके वे हकदार हैं, तो वही मेरी सबसे बड़ी जीत होगी.'


