क्या है हीमोफीलिया?, जानें लक्षण और उपचार
हर साल 17 अप्रैल को विश्व हीमोफीलिया दिवस के रूप में मनाया जाता है। हीमोफीलिया एक ब्लीडिंग डिसऑर्डर है। इससे ग्रसित व्यक्ति में रक्त का थक्का नहीं बनता और चोट लगने पर लगातार खून बहता रहता है जिससे कई बार व्यक्ति की मौत भी हो सकती है।

हर साल 17 अप्रैल को विश्व हीमोफीलिया दिवस के रूप में मनाया जाता है। हीमोफीलिया एक ब्लीडिंग डिसऑर्डर है। इससे ग्रसित व्यक्ति में रक्त का थक्का नहीं बनता और चोट लगने पर लगातार खून बहता रहता है जिससे कई बार व्यक्ति की मौत भी हो सकती है। वर्ल्ड हीमोफीलिया डे की शुरुआत वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ हीमोफीलिया द्वारा 17 अप्रैल 1989 को हुई थी। इसे वर्ल्ड फेडरेशन हीमोफीलिया के संस्थापक फ्रैंक श्नाबेल के जन्मदिन के सम्मान में मनाने के लिए चुना गया।
इस बीमारी की खोज 10वीं शताब्दी में हुई थी, जब लोगों ने इस बीमारी को गंभीरता से लेना शुरू किया। ये रोग ज्यादातर यूरोपीय शाही परिवारों में होता था और एस्पिरिन के साथ इलाज किया जाता था जिससे खून पतला हो जाता था। फिर, 1803 में फिलाडेल्फिया के डॉ० जॉन कॉनराड ओटो ने ब्लीडर्स नाम के लोगों का अध्ययन करना शुरू किया और कहा कि ये एक हेरेडिटरी बीमारी है जो मां से बच्चों में होती है।
अब समझते हैं कि आखिर ये बीमारी है क्या? हीमोफीलिया रक्तस्राव से संबंधित एक डिसऑर्डर है। जिसमें गंभीर या हल्की चोट लगने से भी खून बहने लगे तो शरीर से खून का बहना जल्दी नहीं रुकता। ये एक गंभीर स्थिति होती है और इसमें अधिक खून बहने से व्यक्ति की जान भी जा सकती है। इस रक्त संबंधित विकार में ब्लड क्लॉटिंग नहीं होती है।


