संयम की राजनीति जरूरी
भारतीय राजनीति में विभिन्न दलों के नेता अपनी जुबान पर कंट्रोल करना नहीं जानते। यही कारण है कि पिछले कुछ दिनों से एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते समय राजनेता अपनी मर्यादा भूल जाते हैं।

भारतीय राजनीति में विभिन्न दलों के नेता अपनी जुबान पर कंट्रोल करना नहीं जानते। यही कारण है कि पिछले कुछ दिनों से एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते समय राजनेता अपनी मर्यादा भूल जाते हैं। ऐसा ही एक बयान राहुल गांधी के मुख से निकला। 2 साल पहले दिए गए एक बयान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर की गई कथित टिप्पणी आज भारी पड़ी। गुजरात में एक स्थानीय अदालत ने सुनवाई के दौरान गुरुवार को सुबह उन्हें 2 साल की सजा सुनाई। 2 साल की सजा सुनाई जाने पर मीडिया में यह खबर काफी ट्रेंड करने लगी।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में यह चलाया गया कि प्रधानमंत्री पर टिप्पणी करने के एक मामले में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को 2 साल की सजा हो गई है। राजनीतिक विश्लेषक विभिन्न न्यूज़ प्लेटफार्म पर आकर इसका विश्लेषण भी करने लगे। कई न्यूज़ चैनलों ने तो यहां तक भी खबरें चला दीं कि इस मामले में राहुल गांधी की संसद सदस्यता भी जा सकती है। बहर हाल दोपहर होते-होते एक राहत की खबर राहुल गांधी के लिए यह आई कि उन्हें अदालत में ही इस मामले में जमानत मिल गई। इसके बाद विभिन्न न्यूज़ चैनल उनकी जमानत की खबर प्रमुखता से चलाने लगे। जैसे-जैसे दिन चढ़ता गया यह खबर विभिन्न न्यूज चैनलों में आने लगी।
बताया यह गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर टिप्पणी करने के मामले में पहले राहुल गांधी को 2 वर्ष की सजा हुई उसके बाद उन्हें अदालत से जमानत मिल गई। इस मामले में आगे भी अदालती कार्यवाही चलती रहेगी। चाहे जो भी हो लेकिन इस प्रकरण में एक प्रमुख बात यह है कि राजनीतिक दलों द्वारा अपने बयान में संयम लगातार खोया जा रहा है। इसकी वजह से ऊटपटांग बातें की जा रही हैं, जिनका जनता से कोई सरोकार नहीं होता। इसका नतीजा यह होता है कि आम जनता, विकास और कानून से संबंधित बातें रखी रह जाती है। जबकि ऊटपटांग बातें मीडिया में प्रमुख खबरें बनकर दूसरों के सामने आती हैं। यह राजनीतिक दलों और लोकतंत्र दोनों के लिए खतरनाक स्थिति है। आने वाले दिनों में इन मुद्दों से सबक लेने की जरूरत है। इसके लिए जरूरी है कि राजनेता एक दूसरे पर टिप्पणी करने से पहले मर्यादित भाषा का प्रयोग करें ताकि जनता में इसका नकारात्मक असर न जाए।
अमर्यादित टिप्पणी न करने से एक तरफ राजनेता की छवि अच्छी होगी दूसरी तरफ आम जनता का फोकस भी देश के प्रमुख मुद्दों पर होगा। यह अधिक पुरानी बात नहीं है लगभग चार-पांच दशक पहले तक राजनीति में नेता टिप्पणी करने से पहले शब्दों को कई बार तोलते थे। इसकी प्रमुख वजह थी वह चाहते थे कि उनके मुंह से कोई ऐसी वैसी बात नहीं निकले जिसका कोई अर्थ निकाला जाए। इसके पीछे उनकी दोहरी मानसिकता होती थी। मर्यादित टिप्पणी से एक तो टिप्पणी करने वाले नेता की छवि आम समाज में अच्छी बनती थी दूसरे नेताओं पर टिप्पणी की जाती थी उन तक बात पहुंचा दी जाती थी। लेकिन तरीका काफी संयमित होता था। ऐसे में वर्तमान राजनेताओं को एक दूसरे पर टिप्पणी करने से पहले कई बार जरूर सोच लेना चाहिए क्योंकि एक बार मुंह से निकली बात दोबारा लौट के नहीं आती।


