'दशकों से चल रहे मुकदमे', CJI बीआर गवई ने कहा, भारतीय न्याय व्यवस्था को 'सुधार की सख्त जरूरत'
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने न्यायिक देरी और विचाराधीन कैदियों की दशकों लंबी पीड़ा को भारत की न्याय प्रणाली की बड़ी चुनौती बताया. उन्होंने कानूनी पेशेवरों से सुधार में भागीदारी की अपील करते हुए नई पीढ़ी को नैतिकता और ईमानदारी से काम करने का संदेश दिया.

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई ने कहा है कि देश की न्यायिक प्रणाली अनेक जटिल और विशेष किस्म की चुनौतियों का सामना कर रही है और इसमें गहरे स्तर पर सुधार की आवश्यकता है. उन्होंने न्यायिक मामलों में देरी और विचाराधीन कैदियों की दशकों लंबी पीड़ा को न्याय प्रणाली की सबसे बड़ी समस्या करार दिया.
'देरी दशकों तक चल सकती है'
हैदराबाद के निकट मेडचल में नालसार यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ के दीक्षांत समारोह के दौरान छात्रों को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति गवई ने कहा, “हमारी कानूनी प्रक्रिया में देरी एक पुरानी समस्या है, और यह कभी-कभी दशकों तक खिंच सकती है.” उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया की सबसे बड़ी मानवीय कीमत उन लोगों को चुकानी पड़ती है, जो सालों तक जेल में रहते हैं और बाद में निर्दोष साबित होते हैं.
हालांकि समस्याएं गंभीर हैं, लेकिन CJI गवई ने यह भी कहा कि वह न्याय प्रणाली के भविष्य को लेकर “सतर्कतापूर्वक आशावादी” हैं. उन्होंने यह विश्वास जताया कि भारत की होनहार युवा पीढ़ी और आने वाले कानूनविद इन समस्याओं का समाधान ढूंढ़ने में सक्षम हैं.
कानूनी पेशेवरों से ईमानदारी की अपील
न्यायमूर्ति गवई ने नए स्नातक कानून छात्रों से अपील की कि वे अपने करियर की शुरुआत प्रभावशाली नामों के पीछे न भागकर, ईमानदारी और सिद्धांतों को प्राथमिकता दें. उन्होंने कहा, “आप अपने गुरु ऐसे चुनें जो नैतिक मूल्यों पर खरे उतरते हों, सिर्फ प्रसिद्धि पर न जाएं.” उन्होंने छात्रों को विदेश में पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति का सहारा लेने की सलाह दी ताकि वे अपने परिवार पर आर्थिक बोझ न डालें.
कौन-कौन हुए कार्यक्रम में शामिल
इस दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता तेलंगाना हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति सुजॉय पॉल ने की. इसके अलावा तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश पी.एस. नरसिम्हा भी इस कार्यक्रम में शामिल हुए.
सुधार की दिशा में अगला कदम
सीजेआई गवई का यह बयान ऐसे समय आया है जब देश भर में न्यायिक मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है और अदालतों में लंबित मुकदमों की संख्या लाखों में है. उन्होंने संकेत दिया कि अब वक्त आ गया है कि युवा और जागरूक वकील इस व्यवस्था को अधिक प्रभावी और मानवीय बनाने की दिशा में काम करें.


