अदालतों में 33 प्रतिशत पद खाली लेकिन....संसद में दो जजों के खिलाफ आया महाभियोग प्रस्ताव
इलाहाबाद हाईकोर्ट के दो न्यायाधीशों के खिलाफ महाभियोग की तैयारी राजनीतिक रणनीति मानी जा रही है. जस्टिस यशवंत वर्मा पर नकदी घोटाले और जस्टिस शेखर यादव पर विवादास्पद टिप्पणी के आरोप हैं. इस बीच हाईकोर्ट में 33% पद खाली हैं, नियुक्ति प्रक्रिया की जटिलता न्यायपालिका की कार्यक्षमता को प्रभावित कर रही है.

सरकार और विपक्ष दोनों मिलकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के दो न्यायाधीशों के खिलाफ महाभियोग चलाने की तैयारी में जुटे हैं. यह कदम बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले खुद को 'भ्रष्टाचार विरोधी' साबित करने की एक रणनीति के रूप में देखा जा रहा है. इस मामले ने न्यायपालिका की निष्पक्षता और कार्यक्षमता पर बहस छेड़ दी है.
दो न्यायाधीश, दो गंभीर आरोप
पहले मामले में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा, जो उस समय दिल्ली हाईकोर्ट में सेवारत थे, के सरकारी आवास से जली हुई नकदी मिलने के बाद उनके खिलाफ महाभियोग की मांग उठी. इस संबंध में लोकसभा में प्रस्ताव भी पेश किया गया है. हालांकि, जस्टिस वर्मा ने इस कार्रवाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिसमें न्यायपालिका की आंतरिक जांच रिपोर्ट को भी प्रश्नों के घेरे में रखा गया है.
दूसरे मामले में जस्टिस शेखर यादव की विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यक्रम में दी गई विवादास्पद टिप्पणी ने उन्हें आलोचना के केंद्र में ला दिया है. इसके चलते दिसंबर में 55 सांसदों ने राज्यसभा को पत्र लिखकर उनके खिलाफ महाभियोग की मांग की थी.
33 प्रतिशत पद खाली
महाभियोग की कार्यवाही जहां सुर्खियों में है, वहीं देश की न्यायिक व्यवस्था एक और गंभीर संकट से जूझ रही है—न्यायाधीशों की भारी कमी. विधि मंत्रालय द्वारा राज्यसभा में दिए गए जवाब के अनुसार, उच्च न्यायालयों में 33 प्रतिशत यानी 371 न्यायाधीशों के पद रिक्त हैं.
देशभर के हाईकोर्ट में कुल स्वीकृत पद 1,122 हैं, जिनमें से केवल 751 पर ही वर्तमान में नियुक्तियां हैं. 178 पदों पर नियुक्तियों के प्रस्ताव पर सरकार और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम विचार कर रहे हैं, जबकि 193 पदों के लिए सिफारिशें अब भी संबंधित उच्च न्यायालय कॉलेजियमों से लंबित हैं.
न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया में जटिलताएं
इस देरी के पीछे संविधान के अनुच्छेद 217 और 224 में उल्लिखित जटिल प्रक्रिया को मुख्य कारण बताया गया है. न्यायाधीशों की नियुक्ति में राज्य सरकार से परामर्श, उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीशों द्वारा नामों की सूची बनाना और फिर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को प्रस्ताव भेजना शामिल होता है.


