एक्सिओम-4 मिशन पर फिर लगा ब्रेक, अब 11 जून को लॉन्च होगा ड्रैगन यान
भारतीय गगनयात्री शुभांशु शुक्ला को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन ले जाने वाला एक्सिओम-4 मिशन खराब मौसम के चलते 11 जून तक टाल दिया गया है. यह तीसरी बार है जब इस ऐतिहासिक प्रक्षेपण में देरी हुई है, जिससे वैज्ञानिकों और अंतरिक्ष प्रेमियों की उत्सुकता और बढ़ गई है.

भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला की बहुप्रतीक्षित अंतरिक्ष यात्रा को एक बार फिर टाल दिया गया है. उन्हें स्पेसएक्स के ड्रैगन अंतरिक्ष यान से अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) भेजा जाना था, लेकिन अब यह मिशन 10 जून की बजाय 11 जून 2025 को शाम 5:30 बजे (भारतीय समयानुसार) लॉन्च किया जाएगा. इसकी पुष्टि इसरो के चेयरमैन वी. नारायणन ने की है.
स्पेसएक्स की ओर से जारी बयान में बताया गया कि आरोहण गलियारे में तेज हवाओं की वजह से प्रक्षेपण संभव नहीं हो सका. यह लगातार तीसरी बार है जब एक्सिओम-4 (Ax-4) मिशन को स्थगित किया गया है.
तीसरी बार बदली तारीख
पहले इस मिशन को 29 मई को लॉन्च किया जाना था, जिसे तकनीकी कारणों से 8 जून तक के लिए टाल दिया गया. इसके बाद इसे 10 जून के लिए निर्धारित किया गया, लेकिन मौसम ने एक बार फिर बाधा डाल दी. अब लॉन्च की अगली संभावित खिड़की 11 जून की तय की गई है, जबकि वैकल्पिक तारीख 12 जून है.
भारत समेत चार देशों की ऐतिहासिक साझेदारी
एक्स-4 मिशन अमेरिका की एक्सिओम स्पेस, स्पेसएक्स और नासा के बीच एक साझा प्रयास है. इसमें भारत, पोलैंड, हंगरी और अमेरिका के चार अंतरिक्षयात्री शामिल हैं. यह मिशन भारत, हंगरी और पोलैंड के लिए दशकों बाद मानव अंतरिक्ष यात्रा की वापसी को चिह्नित करता है. यह चारों यात्री दो सप्ताह के मिशन के लिए अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन जाएंगे.
मिशन की चुनौतियाँ और तकनीकी दिक्कतें
20 मई को हुई एक वर्चुअल प्रेस कांफ्रेंस में स्पेसएक्स की ड्रैगन मिशन मैनेजमेंट की निदेशक सारा वॉकर ने बताया कि मिशन की तैयारी में कई तकनीकी चुनौतियाँ आईं. उदाहरण के लिए पैराशूट परीक्षण में नमी के कारण बाधा आई, जिसकी वजह से बैग बदले गए. इसके अलावा, एक वायर हार्नेस में भी दिक्कत आई जिसे फिर से बदला गया.
अंतरिक्ष उड़ान से पहले बढ़ा रोमांच
हालांकि मिशन के बार-बार स्थगन से उत्साह को थोड़ी निराशा मिली है, लेकिन शुभांशु शुक्ला की उड़ान को लेकर भारत में रोमांच चरम पर है. यह मिशन न केवल अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत की बढ़ती भूमिका को दिखाता है, बल्कि भारतीय गगनयात्रियों के लिए एक नई दिशा भी खोलता है.