वंदे मातरम् पर बीजेपी-कांग्रेस में क्यों छिड़ा विवाद? संसद में 10 घंटे तक होगी चर्चा
वंदे मातरम् गीत के 150 साल पूरे होने पर लोकसभा में सोमवार से विशेष बहस शुरू हो होगी. इस दौरान बीजेपी और कांग्रेस आमने-सामने होंगे. बहस की शुरुआत पीएम मोदी द्वारा किया जाएगा.

नई दिल्ली: वंदे मातरम् गीत के 150 साल पूरे होने पर लोकसभा में सोमवार से विशेष बहस शुरू हो रही है. यह सिर्फ जश्न नहीं, बल्कि राजनीतिक तनाव का केंद्र भी बन गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहस शुरू करेंगे, जबकि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह इसे समाप्त करेंगे. कुल 10 घंटे की चर्चा के बाद मंगलवार को राज्यसभा में भी डिबेट होगी, जहां गृह मंत्री अमित शाह शुरुआत करेंगे.
बहस की वजह क्या है?
पिछले महीने एक कार्यक्रम में पीएम मोदी ने आरोप लगाया कि 1937 में कांग्रेस ने गीत के महत्वपूर्ण हिस्सों को काट दिया, जो देश के बंटवारे की वजह बना. उन्होंने कहा कि इससे गीत की असली भावना कमजोर हुई. कांग्रेस ने पलटवार करते हुए कहा कि यह फैसला गांधी, नेहरू, पटेल, बोस, राजेंद्र प्रसाद, मौलाना आजाद और सरोजिनी नायडू जैसे नेताओं की समिति ने लिया था.
वजह थी कि बाकी हिस्सों में धार्मिक संकेत थे, जो सभी को स्वीकार्य नहीं थे. पार्टी का तर्क है कि यह फैसला सभी समुदायों की भावनाओं का सम्मान करने के लिए था, न कि बंटवारे के लिए. कांग्रेस ने पीएम पर इतिहास को गलत तरीके से पेश करने का आरोप लगाया.
वंदे मातरम् का इतिहास
यह गीत बैंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने 1875 के आसपास रचा था. 1881 में उनके उपन्यास आनंदमठ में छपा, जहां 'मां' को भारत माता के रूप में दिखाया गया, एक मजबूत धरती जो पीड़ा से गुजर रही है और फिर उठेगी. 1905 के बंगाल बंटवारे के दौरान यह आजादी का बड़ा नारा बना. स्वदेशी आंदोलन में हिंदू-मुस्लिम साथ गाते थे.
रवींद्रनाथ टैगोर, बिपिन चंद्र पाल और अरविंदो जैसे नेताओं ने इसे लोकप्रिय किया. ब्रिटिश सरकार ने इसे बोलने पर रोक लगाई. 1896 के कांग्रेस अधिवेशन में टैगोर ने इसे पहली बार गाया.
1937 का फैसला
कांग्रेस कार्यसमिति ने तय किया कि राष्ट्रीय कार्यक्रमों में सिर्फ पहले दो छंद गाए जाएंगे, क्योंकि वे विवादमुक्त और लोकप्रिय थे. बाकी में धार्मिक प्रतीक थे, जिन पर कुछ मुस्लिम नेता असहमत थे. टैगोर की राय थी कि राष्ट्रीय प्रतीक सबको अपनाने लायक हो. 1950 में संविधान सभा ने जन गण मन को राष्ट्रगान बनाया और वंदे मातरम् को सम्मान दिया.
आज का विवाद
बीजेपी का कहना है कि गीत सांस्कृतिक प्रतीक है और 1937 का कदम गलत था. कांग्रेस का जवाब है कि उन्होंने ही इसे राष्ट्रीय दर्जा दिया और फैसला समावेशी था. जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख महमूद मदनी ने कहा कि पहले दो छंद ठीक हैं, लेकिन बाकी इस्लाम के सिद्धांतों से मेल नहीं खाते, क्योंकि वहां मां को देवी दुर्गा जैसा बताया गया है.


