बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, याचिकाकर्ता को कोर्ट ने सुनाया यह अहम निर्णय
Bombay HC: यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक रूप से भी महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की दिशा में एक कदम है। कोर्ट ने यह संदेश दिया है कि आर्थिक आत्मनिर्भरता के बावजूद, एक महिला को अपने वैवाहिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता।

Bombay HC: बॉम्बे हाई कोर्ट ने हाल ही में एक मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसमें एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देने से इनकार करते हुए याचिका दायर की थी। व्यक्ति का तर्क था कि उसकी पत्नी प्रति माह 25 हजार रुपये से अधिक कमाती है, इसलिए उसे गुजारा भत्ता देने की आवश्यकता नहीं है। हालांकि, कोर्ट ने इस मामले में पत्नी के पक्ष में फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि केवल कमाई के आधार पर पत्नी को गुजारा भत्ते से वंचित नहीं किया जा सकता।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला एक व्यक्ती से संबंधित है. जो 2009 से अलग रह रहे हैं। पति ने फैमिली कोर्ट के अगस्त 2023 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे अपनी पत्नी को प्रति माह 15,000 रुपये गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया था। पति ने दावा किया कि उसकी पत्नी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर है और वह 25,000 रुपये प्रति माह कमाती है। इसके अलावा, उसने अपनी कम आय और बीमार माता-पिता की देखभाल की जिम्मेदारी का हवाला दिया।
कोर्ट का फैसला
जस्टिस मंजुषा देशपांडे की एकल पीठ ने 18 जून 2025 को इस मामले में सुनवाई की। कोर्ट ने कहा कि भले ही पत्नी कामकाजी हो, लेकिन उसकी आय उस जीवन स्तर को बनाए रखने के लिए पर्याप्त नहीं है, जो वह अपने वैवाहिक जीवन के दौरान जी रही थी। कोर्ट ने यह भी ध्यान दिया कि पत्नी को अपनी नौकरी के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है, जिससे उसका खर्च बढ़ जाता है। इसके अलावा, वह अपने माता-पिता और भाई के साथ रह रही है, जिससे लम्बे समय तक समाधान नहीं हो सकता। कोर्ट ने पति की दलील को खारिज करते हुए कहा कि उसकी आय पत्नी से काफी अधिक है और उसके माता-पिता आर्थिक रूप से उस पर निर्भर नहीं हैं. क्योंकि उनके पास 28,000 रुपये की मासिक पेंशन मीलता है। कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए पति को 15,000 रुपये प्रति माह गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया।
सामाजिक और कानूनी प्रभाव
बॉम्बे हाई कोर्ट का यह फैसला महिलाओं के अधिकारों को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि गुजारा भत्ता न केवल आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए है. बल्कि यह भी सुनिश्चित करने के लिए है कि पत्नी उसी जीवन स्तर को बनाए रख सके जो वह शादी के दौरान जी रही थी। यह फैसला उन मामलों में मिसाल कायम करेगा. जहां पति अपनी पत्नी की कमाई का हवाला देकर गुजारा भत्ता देने से बचने की कोशिश करते हैं।


