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दिल्ली ब्लास्ट में लश्कर-जैश की जॉइंट साजिश उजागर, सफेद कोट में छुपा आतंकी नेटवर्क बेनकाब

दिल्ली के लाल किले के पास हुए धमाके की जांच लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के संयुक्त आतंकी मॉड्यूल तक पहुँच रही है, जहाँ डॉक्टरों की भूमिका पर एजेंसियों सुराग मिले हैं।

Lalit Sharma
Edited By: Lalit Sharma

नई दिल्ली. दिल्ली में हुए धमाके की जांच में सुरक्षा एजेंसियों को सबसे पहले लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद की गतिविधियों के संकेत मिले। दोनों संगठनों ने पहले भी संयुक्त ऑपरेशन चलाए हैं और भारत को निशाना बनाया है। इस बार उन्होंने अपने पुराने ढांचे से हटकर नया तरीका अपनाया। उन्होंने सीधे ग्राउंड लेवल आतंकियों की बजाय शिक्षित और प्रशिक्षित लोगों का उपयोग किया। यह तरीका इसलिए चुना गया ताकि सिस्टम को शक न हो। यह मॉड्यूल लंबे समय से सक्रिय था और धीरे-धीरे अपने कदम बढ़ा रहा था।

डॉक्टर नेटवर्क की भूमिका? 

जांच में जो बात सबसे चौंकाने वाली थी, वह डॉक्टरों की भूमिका थी। ये वही डॉक्टर थे जिनके पास डिग्री, प्रतिष्ठा और समाज में भरोसा था। लेकिन इन्हीं में से कुछ लोग कट्टरपंथी संपर्कों के ज़रिए आतंक की सोच तक पहुँच गए। पुलिस को उनके फोन रिकॉर्ड, मीटिंग्स और लेन-देन के सुबूत मिले। पता चला कि ये लोग सिर्फ इलाज नहीं, बल्कि उपकरण, केमिकल और सुरक्षित जगह उपलब्ध कराने में शामिल थे। यह खुलासा दिखाता है कि अब आतंकवाद पढ़े-लिखे वर्ग में भी फैल चुका है। यह बदलाव समाज और सुरक्षा दोनों के लिए खतरा है।

यह नेटवर्क कैसे चलता था?

इस नेटवर्क को छोटे-छोटे हिस्सों में बाँट कर चलाया गया। हर सदस्य का अलग काम तय था ताकि पूरी साजिश किसी एक व्यक्ति को पता न हो। डॉक्टरों की पहचान का फायदा उठाकर सामान और बातें आसानी से स्थानांतरित की जाती थीं। अस्पताल और मेडिकल क्लिनिक बातचीत और मुलाकात के सुरक्षित केंद्र बने। संपर्क ऑनलाइन एन्क्रिप्टेड माध्यम से होता था, जिससे ट्रैक करना मुश्किल हो गया। यह ऑपरेशन महीनों तक बिना पकड़े चलता रहा। यह दिखाता है कि योजना बेहद ठंडी और सुनियोजित थी।

धमाके के पीछे क्या मकसद था?

सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार यह हमला सिर्फ डर पैदा करने के लिए नहीं, बल्कि अपनी ताकत दिखाने के लिए था। लश्कर और जैश भारत की सुरक्षा एजेंसियों को चुनौती देना चाहते थे। उन्होंने भीड़भाड़ वाली जगह इसलिए चुनी ताकि असर बड़ा दिखे। लेकिन यह हमला उनके नए भर्ती मॉडल को भी उजागर करता है। अब वे गरीबों या अनपढ़ों को नहीं, बल्कि समाज में स्थापित लोगों को निशाना बना रहे हैं। यह रणनीति भारत के लिए नई कठिन चुनौती है। इसे नजरअंदाज करना देश के लिए भारी खतरा होगा।

जांच में क्या-क्या मिला?

जब छापे पड़े तो कई मोबाइल फोन, लैपटॉप, नोट्स और संदिग्ध लेन-देन का हिसाब मिला। कुछ रसायन और उपकरण भी बरामद किए गए। यह सब सीधे धमाके में इस्तेमाल हुई सामग्री से मेल खाते थे। बातचीत के रिकॉर्ड में कोडवर्ड और निर्देश मिले। एजेंसियों ने नेटवर्क के कई हिस्सों की पहचान की है। अब पूछताछ के आधार पर और गिरफ्तारियाँ संभव हैं। हर नई जानकारी इस साजिश का दायरा और बड़ा कर रही है।

खतरा अब सिर्फ सीमाओं पर नहीं

यह मामला बताता है कि खतरा अब सिर्फ सीमाओं पर नहीं, बल्कि घरों, अस्पतालों और शिक्षण संस्थानों के अंदर भी है। हमें यह मानकर चलना होगा कि कट्टर विचारधारा किसी भी वर्ग में प्रवेश कर सकती है। डॉक्टर जैसे भरोसेमंद पेशे के लोग भी इसका शिकार हो सकते हैं। इसलिए, सुरक्षा सिर्फ हथियारों और सैनिकों से नहीं, बल्कि सोच और संवाद से भी आती है। यह समय सचेत और समझदार रहने का है।

नेटवर्क की पूरी मैपिंग कर रही हैं सुरक्षा एजंसियां

सरकार और सुरक्षा एजेंसियों ने इस मामले को उच्च प्राथमिकता में रखा है। संबंधित लोगों के नेटवर्क की पूरी मैपिंग की जा रही है। डॉक्टरों की भूमिका की तह तक जाँच जारी है। कई राज्यों की एजेंसियाँ भी अब जांच में शामिल हो चुकी हैं। आने वाले दिनों में और खुलासे संभव हैं। यह घटना भारत में आतंकी रणनीति के बदलते चेहरे को दिखाती है। इस बार दुश्मन नकाब में था और वह नकाब सफेद कोट वाला था।

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11 November 2025, 12:01 PM IST

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