नई रिपोर्ट ने खोला राज, दिल्ली की जहरीली हवा का असली दोषी पराली नहीं ट्रैफिक है
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की ताज़ा रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि दिल्ली के प्रदूषण में पराली का योगदान 5% से भी कम रहा जबकि सबसे बड़ा जिम्मेदार ट्रैफिक और स्थानीय कारक रहे।

New Delhi: सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की रिपोर्ट के अनुसार इस बार दिल्ली की जहरीली हवा के लिए पराली जिम्मेदार नहीं, बल्कि ट्रैफिक और स्थानीय प्रदूषण सबसे बड़े कारण हैं। पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं कई सालों के निचले स्तर पर रहीं, फिर भी अक्टूबर और नवंबर में दिल्ली का AQI अधिकतर दिनों में ‘बेहद खराब’ से ‘गंभीर’ श्रेणी में दर्ज किया गया। रिपोर्ट बताती है कि हवा में जहर खेतों से नहीं, हमारी अपनी सड़कों और सांसों से फैला। यह निष्कर्ष लंबे समय से चली आ रही गलतफहमी को चुनौती देता है।
ट्रैफिक कब सबसे ज्यादा जानलेवा होता है?
अध्ययन में पाया गया कि सुबह 7 से 10 बजे और शाम 6 से 9 बजे ट्रैफिक बढ़ने के साथ ही हवा में PM2.5 और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂) का स्तर तेजी से बढ़ता है। रिसर्चर अनुमिता रॉय चौधरी के अनुसार सर्दियों में हवा नीचे बैठ जाती है और वाहनों का धुआं ऊपर नहीं उठ पाता, जिसके कारण हर सुबह और शाम लोग “जहरीला कॉकटेल” सांस में लेने को मजबूर होते हैं। यह स्थिति रोजाना की है न कि केवल मौसम या पराली के दौरान की। इससे साफ है कि समस्या घर के बाहर है, खेतों में नहीं।
दिल्ली के प्रदूषण हॉटस्पॉट कौन से हैं?
रिपोर्ट के मुताबिक जहांगीरपुरी इस सीज़न का सबसे प्रदूषित इलाका रहा, जहां PM2.5 का वार्षिक औसत 119 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर दर्ज किया गया। इसके बाद बवाना-वज़ीरपुर (113 µg/m³) और आनंद विहार (111 µg/m³) का स्थान रहा। द्वारका सेक्टर-8 में कार्बन मोनोऑक्साइड 55 दिन तय सीमा से ऊपर रही, जबकि जहांगीरपुरी और दिल्ली यूनिवर्सिटी नॉर्थ कैंपस में यह आंकड़ा 50 दिन का था। यह दर्शाता है कि प्रदूषण का मूल स्रोत शहर के भीतर है, बाहर नहीं।
पराली का असर कितना सीमित रहा?
इस सीज़न में केवल 12 और 13 नवंबर को पराली के धुएं का योगदान अधिकतम 22% पहुंचा, बाकी दिनों में यह 5% से भी कम रहा। इसके बावजूद दिल्ली की हवा में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ। विशेषज्ञों का कहना है कि लंबे समय से पराली को मुख्य दोषी बताया गया जबकि असल संकट लगातार बढ़ते शहरी प्रदूषण का है। यह तथ्य नीति निर्धारकों को ध्यान में रखना होगा कि समस्या मौसमी नहीं, स्थायी है।
क्या प्रदूषण नियंत्रण अब रुक गया है?
रिपोर्ट चेतावनी देती है कि 2018 से 2020 तक प्रदूषण में सुधार की प्रक्रिया अब ठहर गई है। वर्ष 2024 में PM2.5 का वार्षिक औसत फिर बढ़कर 104.7 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर हो गया, जो स्वास्थ्य मानकों के लगभग दोगुना है। यह स्थिति बताती है कि वर्तमान प्रयास पर्याप्त नहीं। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि ठोस कदम नहीं उठाए गए तो हवा और अधिक जहरीली हो सकती है।
रिपोर्ट में क्या समाधान सुझाए गए?
रिपोर्ट में पुरानी डीजल और पेट्रोल गाड़ियों को तेजी से हटाने, इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने, पब्लिक ट्रांसपोर्ट और लास्ट-माइल कनेक्टिविटी को मजबूत करने की सलाह दी गई है। इसके अलावा पार्किंग कैप, कंजेशन टैक्स, उद्योगों में स्वच्छ ईंधन का उपयोग, खुले में कचरा जलाने पर पूरी तरह रोक और हर घर तक साफ ईंधन पहुंचाने की सिफारिश की गई। विशेषज्ञ कहते हैं—सिर्फ हवा की शिकायत करने से नहीं, आदतों और प्रणाली दोनों में बदलाव से सुधार होगा।
क्या अब कार्रवाई टाला नहीं जा सकता?
विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली की हवा को सुधारने के लिए अब जल्द और कठोर कार्रवाई जरूरी है। रिपोर्ट के अनुसार प्रदूषण का स्रोत बाहरी नहीं बल्कि रोजमर्रा के जीवन में छिपा है। यदि इसी तरह शहर में गाड़ियां और ईंधन चलते रहे तो स्थिति और गंभीर हो सकती है। लोगों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। यह रिपोर्ट दिशा बदलती है-अब बातचीत खेतों की नहीं, सड़कों की होगी।


