दिल्ली के यूईआर-2 टोल से ग़ुस्सा उबाल पर, दस किलोमीटर सफर के लिए 235 रुपये देना जनता को नागवार
दिल्ली में यूईआर-2 टोल प्लाज़ा ने लोगों का जीना मुश्किल कर दिया है। महज़ दस किलोमीटर सफर पर 235 रुपये वसूले जा रहे हैं। जनता इसे ज़ुल्म और नाइंसाफ़ी बता रही है, जिसके खिलाफ़ ग़ुस्सा तेज़ हो रहा है।

National News: दिल्ली में मुंडका-बक्करवाला के पास बने यूईआर-2 टोल प्लाज़ा को लेकर बवाल मचा हुआ है। आसपास के गांवों के लोग इस रास्ते पर चलने से कतरा रहे हैं। वजह साफ़ है—सिर्फ़ दस किलोमीटर की दूरी पर भारी भरकम टैक्स। लोग कह रहे हैं यह बोझ उनकी जेब पर नाइंसाफ़ी जैसा है। टोल से बचने के लिए लोग अब गांवों के कच्चे और छोटे संपर्क मार्गों पर निकलने लगे हैं। इससे वहां गाड़ियों का जमावड़ा बढ़ गया है। जहां पहले सुकून और आसानी से लोग चलते थे, अब वहां जाम और भीड़ देखने को मिल रही है। गांववालों का कहना है कि सरकार ने बिना सोचे समझे फैसला लिया है।
इलाके के लोगों का कहना है कि सिर्फ़ पांच से सात किलोमीटर की दूरी नापने के लिए 235 रुपये देना बेइंसाफ़ी है। उनके मुताबिक़ इतनी महंगी क़ीमत सिर्फ़ दिल्ली जैसे शहर में ही ली जा सकती है। ग़रीब और मध्यमवर्गीय लोग इस बोझ को उठा ही नहीं सकते। यही वजह है कि ग़ुस्सा उबाल पर है।
टोल को लेकर बहस
दिल्ली के यूईआर-2 को राजधानी का पहला और सबसे महंगा टोल कहा जा रहा है। इसे शुरू हुए अभी ग्यारह दिन ही हुए हैं और विवाद बढ़ गया है। लोग सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक अपनी नाराज़गी जाहिर कर रहे हैं। उनके मुताबिक यह टोल सड़क सुधार नहीं बल्कि जेब काटने का ज़रिया है।
रोज़मर्रा की मुश्किलें
जो लोग रोज़ाना दफ़्तर या काम के लिए यूईआर-2 का इस्तेमाल करते हैं, उनके लिए यह और बड़ा मसला है। हर दिन कई सौ रुपये देना उनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर बोझ डाल रहा है। यही वजह है कि लोग मजबूर होकर वैकल्पिक रास्ते ढूंढ रहे हैं।
स्थानीय आवाज़ें बुलंद
गांवों और मोहल्लों में बैठकों का दौर शुरू हो गया है। लोग एकजुट होकर टोल हटाने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह इलाक़ा पहले ही महंगाई और बेरोज़गारी से परेशान है। अब इस नए टैक्स ने आग में घी डालने का काम किया है।
सरकार पर सवाल
लोग पूछ रहे हैं कि जब सड़कें पहले ही जनता के टैक्स से बनी हैं तो फिर अलग से टोल क्यों? यह सवाल हर गली मोहल्ले में उठ रहा है। सरकार की नीयत पर शक जताते हुए लोग कह रहे हैं कि यह सिर्फ़ कमाई का धंधा है, राहत देने की कोई नीयत नज़र नहीं आती।


