भारत की ताकत देख कांपेंगे दुश्मन! 9 नई पनडुब्बियों से हिंद महासागर में मचेगा तहलका
भारतीय नौसेना के बेड़े में यह आधुनिक पनडुब्बियां शामिल होने से न केवल भारत की समुद्री सुरक्षा को बल मिलेगा, बल्कि भारत अपने पड़ोसी देशों की चालबाजियों का भी मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम होगा. कैबिनेट की मंजूरी मिलते ही यह डील भारतीय रक्षा इतिहास की सबसे बड़ी परियोजनाओं में से एक बन सकती है.

भारत की समुद्री सुरक्षा को और मजबूत करने की दिशा में बड़ा कदम उठाने की तैयारी है. नौसेना को जल्द ही 9 नई अत्याधुनिक पनडुब्बियों से लैस किया जा सकता है. यह पनडुब्बियां प्रोजेक्ट-75 (I) के तहत बनाई जाएंगी, जिसका उद्देश्य भारतीय जलक्षेत्र में चीन और पाकिस्तान जैसी चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटना है. अब सिर्फ कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) की अंतिम मंजूरी का इंतजार है.
इन पनडुब्बियों की तैनाती न सिर्फ भारत की समुद्री ताकत को कई गुना बढ़ाएगी, बल्कि दुश्मनों की हरकतों पर पैनी नजर रखेगी. इस परियोजना की लागत 90,000 करोड़ रुपये से अधिक आंकी जा रही है और अगर सब कुछ योजना के अनुसार हुआ तो अगले साल की पहली तिमाही में यह डील फाइनल हो सकती है.
चीन-पाकिस्तान की बढ़ती गतिविधियों का जवाब
सूत्रों के अनुसार, यह प्रोजेक्ट मौजूदा समय की सबसे अहम जरूरतों में से एक है. चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (PLAN) लगातार हिंद महासागर में अपनी मौजूदगी बढ़ा रही है, वहीं पाकिस्तान भी अपनी पनडुब्बी क्षमता में विस्तार कर रहा है. ऐसे में भारत को भी रणनीतिक रूप से अपनी ताकत बढ़ाने की आवश्यकता है. "इसकी यथाशीघ्र आवश्यकता है, खासकर के हिंद महासागर के क्षेत्र में, क्योंकि जिस तरह से चीनी नौसेना की मौजूदगी बढ़ रही है और पाकिस्तान भी और पनडुब्बियां खरीद रहा है."
छह पनडुब्बियां पहले बैच में होंगी शामिल
रिपोर्ट्स के मुताबिक, कुल 9 पनडुब्बियों में से पहले चरण में 6 को नौसेना में शामिल किया जाएगा. शेष तीन पनडुब्बियों का निर्माण 2020 की डिफेंस एक्विजिशन प्रोसिड्योर (DAP) की गाइडलाइंस के अनुसार, मुख्य करार पर हस्ताक्षर के एक साल बाद किया जाएगा.
पानी के भीतर लंबी तैनाती
इन पनडुब्बियों में एयर इंडिपेंडेंट प्रपल्शन (AIP) तकनीक का इस्तेमाल होगा, जिससे ये पानी के नीचे लंबे समय तक बिना सतह पर आए ऑपरेशन को अंजाम दे सकेंगी. इससे ये दुश्मन की निगाहों से बचकर टारगेट तक पहुंच सकेंगी और प्रभावशाली हमला कर सकेंगी.
तकनीकी और वैश्विक कारण
प्रोजेक्ट की लागत में वृद्धि का मुख्य कारण इसकी जटिल डिजाइन, स्थानीय निर्माण की चुनौती, तकनीकी ट्रांसफर और कोविड के बाद भारत और यूरोप में बढ़ी महंगाई है. इस वजह से यह डील अब पहले से अधिक महंगी हो गई है, लेकिन सामरिक दृष्टि से यह निवेश बेहद जरूरी माना जा रहा है.
फ्रांस से हटकर अब जर्मनी बनेगा साझेदार?
मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स और जर्मनी की थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स की साझेदारी इस प्रोजेक्ट की प्रमुख दावेदार बनी है. पहले फ्रांस के साथ स्कॉर्पीन क्लास पनडुब्बियों पर काम किया गया था, लेकिन इस डील के फाइनल होते ही भारत की रणनीतिक साझेदारी फ्रांस से हटकर जर्मनी की ओर शिफ्ट हो सकती है. “जैसा कि पी75(आई) पूरी तरह से नया प्रोजेक्ट है, बातचीत में एक साल तक लग सकते हैं. तब सीसीएस के सामने प्रस्ताव को मंजूरी के लिए रखा जाएगा...इसके बाद करार पर हस्ताक्षर किए.


