पानीपत से बलूचिस्तान तक: बुगती मराठाओं की संघर्ष और पहचान की गाथा
1761 की पानीपत की तीसरी लड़ाई के बाद बलूचिस्तान ले जाए गए मराठा कैदियों ने खुद को वहां की संस्कृति में ढाल लिया, लेकिन अपनी मराठी विरासत को नहीं भूले. बुगती मराठा आज भी त्योहारों और परंपराओं के ज़रिए अपनी पहचान बनाए हुए हैं, जो उनके लचीलेपन और सांस्कृतिक जीवटता को दर्शाती है.

1761 में पानीपत की तीसरी लड़ाई मराठा साम्राज्य के लिए एक गंभीर धक्का साबित हुई. अहमद शाह अब्दाली की सेना से हारने के बाद बड़ी संख्या में मराठा सैनिक और नागरिक बंदी बनाकर अफगानिस्तान और बलूचिस्तान के विभिन्न इलाकों में ले जाए गए. इन बंदियों में से कई को गुलाम बना लिया गया, जबकि कुछ को स्थानीय जनजातियों के साथ बसा दिया गया. बलूचिस्तान में ले जाए गए मराठाओं का एक हिस्सा बुगती जनजाति के इलाके में बस गया, और समय के साथ यह लोग 'बुगती मराठा' के रूप में पहचाने जाने लगे.
बुगती मराठाओं ने अपनी मराठी पहचान को बलूच संस्कृति के बीच सुरक्षित रखा. उनके घरों में आज भी मराठी भाषा का प्रचलन है और लोकगीतों की गूंज सुनाई देती है. वे पारंपरिक मराठी त्यौहार जैसे गणपति उत्सव, होली, और दीवाली बड़े धूमधाम से मनाते हैं. इसके अलावा, उनकी शादियों और पारिवारिक आयोजनों में भी मराठी रीति-रिवाज देखने को मिलते हैं. हालांकि, वे बलूच समाज में पूरी तरह से घुल-मिल गए हैं, अपनी मराठी जड़ों को कभी भी नहीं भुलाए. उनकी सांस्कृतिक धरोहर और परंपराएँ आज भी जीवित हैं, जो उनकी पहचान को बनाए रखने में मदद करती हैं.
समय के साथ परिवर्तन:
समय के साथ, बुगती मराठाओं की संख्या में गिरावट आई और बाहरी दुनिया से उनका संपर्क भी सीमित हो गया. पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में रहने के कारण वे एक उपेक्षित अल्पसंख्यक समुदाय बन गए. हालांकि, उनकी मराठी पहचान अब भी जीवित है, लेकिन धीरे-धीरे उनकी संस्कृति और परंपराएँ लुप्त हो रही हैं. इसके बावजूद, नई पीढ़ी अपनी मराठी धरोहर को बचाए रखने के लिए प्रयासरत है और स्थानीय सांस्कृतिक आयोजनों में भाग लेती है.
आधुनिक चुनौतियां:
आज के समय में बुगती मराठा समुदाय को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. इनमें मुख्य रूप से पहचान संकट, आर्थिक पिछड़ा होना, और सांस्कृतिक विलुप्ति जैसी समस्याएँ शामिल हैं. इसके अलावा, वे पाकिस्तान के मुख्यधारा समाज से अलग-थलग रहते हुए अपनी पहचान को बचाए रखने की कोशिश कर रहे हैं. बावजूद इसके, उनकी संघर्षशीलता और परंपरा को बचाने का प्रयास एक प्रेरणा है, जो भारतीय उपमहाद्वीप में सांस्कृतिक जीवटता और पहचान के महत्व को दर्शाता है.


