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मुगलों के टाइम पर कैसे बनता था बजट, जानें किस तरह वसूलते थे टैक्स?

Mughal Empire Budget: मुगल साम्राज्य के दौरान अकबर के शासनकाल में भारतीय अर्थव्यवस्था ने महत्वपूर्ण सुधारों का अनुभव किया. इस समय में कृषि, व्यापार और उद्योगों से होने वाली आय ने मुगलों के बजट और कर व्यवस्था को मजबूत किया. आइए जानते हैं कि मुगलों के समय में बजट कैसे तैयार होता था और कर वसूली की प्रक्रिया किस प्रकार काम करती थी.

Shivani Mishra
Edited By: Shivani Mishra

Mughal Empire Budget: मुगल साम्राज्य की स्थापना ने भारतीय उपमहाद्वीप की राजनीति और समाज के विभिन्न पहलुओं को बदल दिया था. खासकर अकबर के शासनकाल में मुगलों ने न केवल राजकाज के तरीके को सुव्यवस्थित किया, बल्कि अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण सुधार किए. अकबर के समय में कृषि उत्पादन में इजाफा हुआ और नए-नए कृषि उत्पादों की खेती शुरू हुई. इस दौरान, शासन के आर्थिक ढांचे और बजट निर्माण की प्रक्रिया में कर वसूली और भूमि सर्वेक्षण का अहम योगदान था. इस आलेख में हम जानेंगे कि मुगलों के समय में बजट कैसे बनता था और किस प्रकार कर वसूला जाता था.

मुगल शासन में आर्थिक गतिविधियाँ मुख्य रूप से कृषि पर आधारित थीं, लेकिन समय के साथ व्यापार और उद्योगों से भी राजस्व प्राप्त होने लगा था. कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के साथ-साथ मुगलों ने व्यापारिक मार्गों और आयात-निर्यात की व्यवस्था को भी सुदृढ़ किया, जिससे उनकी अर्थव्यवस्था और समृद्ध हुई. आइए जानते हैं कि कैसे मुगलों ने टैक्स वसूली की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया और अपने बजट को संतुलित किया.

मुगलों का आर्थिक ढांचा और कर वसूली

अकबर के शासनकाल में मुगल साम्राज्य ने कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में सुधार किया. जमीन पर होने वाले उत्पादन की जानकारी इकट्ठा कर टैक्स तय किया जाता था. इसे 'जमा' और 'हासिल' के रूप में जाना जाता था. कृषि योग्य भूमि के प्रकार के अनुसार टैक्स की दरें तय की जाती थीं. पोलज (सिंचित) भूमि पर ज्यादा कर लिया जाता था, जबकि परती (अस्थायी) भूमि पर कम कर लगाया जाता था. बंजर भूमि पर भी अलग तरह से कर वसूला जाता था.

भूमि सर्वेक्षण और टैक्स का निर्धारण

अकबर के शासन में भूमि सर्वेक्षण को एक महत्वपूर्ण कदम माना जाता है. इस सर्वेक्षण के दौरान, भूमि की गुणवत्ता और उत्पादन क्षमता को ध्यान में रखते हुए टैक्स निर्धारित किया जाता था. अबुल फजल ने अपनी काव्यात्मक रचनाओं में भूमि के आंकड़े दर्ज किए थे. यह व्यवस्था बेहद सटीक थी और टैक्स की वसूली को पारदर्शी बनाने में मदद करती थी. इसी सर्वेक्षण के आधार पर मुगलों ने अपना बजट तैयार किया था, जिससे उनकी राजस्व वसूली में सुधार हुआ था.

मुगलों के दौरान व्यापार और उद्योग

मुगलकाल में भारत का व्यापारिक परिदृश्य काफी व्यापक हुआ था. मुगलों ने विदेशी व्यापार को बढ़ावा दिया और सूरत, कोचीन, मसूलीपट्टनम जैसे व्यापारिक केंद्रों में यूरोपीय कारखानों की स्थापना की. इसके चलते, मुगलों को चांदी, सोने, तांबा और अन्य कीमती धातुओं से राजस्व प्राप्त होता था. भारत से निर्यात होने वाले प्रमुख सामानों में सूती कपड़े, रेशम, मसाले, और नमक थे, जो मुगलों के राजस्व में अहम योगदान देते थे.

जजिया कर और उसका प्रभाव

मुगलकाल में जजिया नामक कर भी वसूला जाता था, जो विशेष रूप से गैर-मुसलमानों से लिया जाता था. हालांकि, अकबर ने इस कर को खत्म कर दिया था और उसके बाद कई शासकों ने इसे लागू नहीं किया. लेकिन, औरंगजेब के शासनकाल में 1679 में जजिया को फिर से लागू किया गया. इस कर से होने वाली आय को शासन के अन्य खर्चों के लिए इस्तेमाल किया जाता था.

शाही खर्च और साम्राज्य की रक्षा

मुगल साम्राज्य के खर्चों में बड़ी राशि शाही ऐशोआराम, युद्ध और साम्राज्य की रक्षा पर खर्च होती थी. शाहजहां के समय में इमारतों के निर्माण पर भारी खर्च हुआ, जिसमें ताजमहल जैसे विशाल और भव्य निर्माण शामिल थे. साम्राज्य को स्थिर रखने और बगावतों को दबाने के लिए भी युद्धों पर काफी धन खर्च किया जाता था. शाही परिवार के सदस्य, सेना के सिपाही और प्रशासनिक अधिकारी सभी इस धन से वंचित नहीं रहते थे.

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31 January 2025, 07:30 PM IST

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