SIR पर संसद में बहस से क्यों घबरा रही है सरकार? तीन कारणों ने खड़े किए बड़े सवाल
संसद का मानसून सत्र जारी है, लेकिन एक अहम मुद्दा ऐसा है जिस पर सरकार लगातार चुप्पी साधे बैठी है वो है SIR.विपक्ष लगातार मांग कर रहा है कि इस पर संसद में खुलकर बहस हो, लेकिन सरकार इससे बचती नजर आ रही है. सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्या है SIR में, जो सत्ता पक्ष को असहज कर रहा है?

संसद के मानसून सत्र के दौरान एक ओर जहां ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर जोरदार बहस हुई, वहीं बिहार में चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) अभियान को लेकर विपक्ष ने जोरदार हंगामा किया. विपक्ष लगातार इस मुद्दे को संसद में उठाने की मांग कर रहा है, लेकिन सरकार की ओर से अब तक इस पर कोई स्पष्ट रुख नहीं दिखा. सोमवार को लोकसभा में जब विपक्ष ने SIR पर बहस की मांग रखी, तो सरकार ने नियमों का हवाला देकर इसे टालने की कोशिश की.
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि यदि संसदीय नियम इसकी अनुमति देते हैं, तो स्पीकर इस पर विचार करने को तैयार हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, सरकारी सूत्रों का कहना है कि इस मुद्दे पर संसद में बहस संभव नहीं है. इसके पीछे तीन अहम वजहें बताई जा रही हैं.
यह प्रशासनिक प्रक्रिया, न कि चुनाव सुधार
सरकारी सूत्रों के अनुसार, बिहार में चल रहा SIR अभियान कोई नया चुनाव सुधार नहीं, बल्कि निर्वाचन आयोग द्वारा समय-समय पर किया जाने वाला एक नियमित प्रशासनिक कदम है. यह एक प्रक्रिया है जो मतदाता सूची को अद्यतन करने के लिए की जाती है और इसमें किसी नीतिगत बदलाव का पहलू नहीं जुड़ा है. इसी कारण इसे संसद में बहस का विषय नहीं माना जा सकता.
संसद में जवाबदेही का सवाल
दूसरा बड़ा कारण यह है कि अगर संसद में इस मुद्दे पर बहस होती है, तो विपक्ष के सवालों का जवाब कौन देगा? चुनाव आयोग, एक स्वतंत्र संस्था होने के नाते, संसद में आकर अपनी बात नहीं रख सकता. ऐसे में किसी भी चर्चा के दौरान तथ्यात्मक और अधिकारिक जवाब देने वाला कोई नहीं होगा, जिससे चर्चा का उद्देश्य ही अधूरा रह जाएगा.
कानून मंत्रालय की सीमित भूमिका
तीसरी वजह यह है कि कानून मंत्रालय, जो चुनाव आयोग का नोडल मंत्रालय होता है, वह सिर्फ प्रशासनिक सहायता देता है, न कि चुनाव आयोग के नीतिगत फैसलों पर कोई दखल करता है. यानी कानून मंत्रालय भी SIR जैसे मामलों पर संसद में सरकार की ओर से जवाबदेही नहीं निभा सकता.
विपक्ष के तीखे सवाल और मांग
बिहार में SIR अभियान को लेकर विपक्ष हमलावर है. कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि अदालत इस प्रक्रिया के विभिन्न पहलुओं पर गौर करेगी. लेकिन अगर निर्वाचन आयोग में संस्थागत अहंकार या राजनीतिक हठधर्मिता नहीं है तो वह इसे अभी आसानी से रोक सकता है. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि यह प्रक्रिया अब नागरिकता की परीक्षा बन गई है और इससे राज्य के लोगों में भय और संदेह का माहौल पैदा हो रहा है.
विपक्षी नेताओं की संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस
भाकपा (माले) लिबरेशन के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य, राजद सांसद मनोज झा और माकपा नेता नीलोत्पल बसु ने एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में निर्वाचन आयोग के फैसले पर सवाल उठाते हुए इसे तत्काल रोकने की मांग की. उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया की वैधता को लेकर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं और विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इस तरह की कवायद चुनावी निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न लगाती है.


