पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने सिंधु जल समझौते को बताया Dead Document, LoC को लेकर दिया बड़ा बयान
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने शिमला समझौते को अप्रासंगिक बताते हुए इसे "मृत दस्तावेज़" करार दिया. उन्होंने नियंत्रण रेखा को केवल युद्धविराम रेखा बताया और नेहरू की नीतियों पर निशाना साधा. यह बयान भारत-पाक संबंधों में नई बहस छेड़ता है और पाकिस्तान की कूटनीतिक मंशा पर सवाल उठाता है.

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने भारत-पाकिस्तान संबंधों को लेकर एक बड़ा बयान देते हुए शिमला समझौते को अप्रासंगिक और निष्प्रभावी करार दिया है. उन्होंने इस ऐतिहासिक समझौते को एक "मृत दस्तावेज" बताया और कहा कि अब इसका कोई महत्व नहीं रह गया है. यह बयान ऐसे समय में आया है जब दक्षिण एशिया में भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण रिश्तों को लेकर चर्चा जारी है.
नियंत्रण रेखा को बताया केवल 'युद्ध विराम रेखा'
ख्वाजा आसिफ ने नियंत्रण रेखा (LoC) पर भी तीखी टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि नियंत्रण रेखा अब केवल एक युद्धविराम रेखा मात्र रह गई है, जो भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते घोषित की गई थी. उनके अनुसार, नेहरू द्वारा उठाया गया यह कदम न केवल रणनीतिक रूप से कमजोर था, बल्कि इसका खामियाजा पाकिस्तान आज तक भुगत रहा है.
नेहरू की नीति पर तीखा प्रहार
आसिफ का कहना है कि नेहरू की कूटनीति ने न केवल भारत-पाकिस्तान विवाद को और उलझाया, बल्कि जम्मू-कश्मीर मुद्दे को भी जटिल बना दिया. उन्होंने आरोप लगाया कि नेहरू की तत्कालीन नीति एकतरफा और दबाव में लिया गया निर्णय थी, जिसने पाकिस्तान के हितों को नुकसान पहुंचाया. उनका मानना है कि यदि उस समय भारत ने कड़े रुख अपनाए होते, तो आज की स्थिति शायद कुछ और होती.
Pakistan’s Defence Minister Khawaja Asif says the Simla Agreement is now a dead document, no longer relevant.
— Political Kida (@PoliticalKida) June 5, 2025
“The LoC is now just a ceasefire line on which Nehru declared a ceasefire under international pressure.”
Nehru’s mistake continues to cost us to this day. pic.twitter.com/cqnxR3BcqR
शिमला समझौते की पृष्ठभूमि
1972 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच शिमला समझौता हुआ था. इसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करना और द्विपक्षीय बातचीत के माध्यम से सभी मुद्दों का हल निकालना था. इस समझौते के तहत नियंत्रण रेखा की पुष्टि की गई थी और यह तय हुआ था कि भारत और पाकिस्तान आपसी मुद्दों को शांतिपूर्ण तरीके से हल करेंगे.
पाकिस्तान की रणनीति पर सवाल
ख्वाजा आसिफ के इस बयान से यह स्पष्ट हो गया है कि पाकिस्तान अब शिमला समझौते की शर्तों को मानने के पक्ष में नहीं है. यह रुख अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की नीयत पर सवाल खड़े करता है, खासकर तब जब वह कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर बार-बार उठाता है, जबकि शिमला समझौते के तहत दोनों देशों ने तय किया था कि ऐसे सभी मुद्दे आपसी बातचीत से सुलझाए जाएंगे.


