वोटर लिस्ट रिवीजन पर सियासी संग्राम: मनोज झा सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, चुनाव आयोग को 11 मोर्चों पर घेरा
बिहार में चल रही वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया के खिलाफ मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. आरजेडी सांसद मनोज झा और टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने याचिका दायर कर इसे मताधिकार का उल्लंघन बताया है. याचिका में प्रक्रिया की पारदर्शिता और समय को लेकर भी सवाल उठाए गए हैं.

बिहार विधानसभा चुनावों से पहले वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) को लेकर सियासत तेज हो गई है. मुख्य विपक्षी पार्टी राजद (RJD) के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने चुनाव आयोग के इस आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. झा ने याचिका में कहा है कि यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 325 और 326 का उल्लंघन करती है और इसका उद्देश्य बड़ी संख्या में वोटर्स को मताधिकार से वंचित करना है.
मनोज झा का आरोप है कि चुनाव आयोग का यह कदम विशेष रूप से मुस्लिम, दलित और प्रवासी मजदूरों को टारगेट करने के लिए लाया गया है. उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया पारदर्शिता से दूर है और जल्दबाजी में लागू की गई है, जबकि चुनावों में कुछ ही महीने शेष हैं. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि बिहार में विधानसभा चुनाव मौजूदा वोटर लिस्ट के आधार पर कराए जाएं.
महुआ मोइत्रा ने भी दी चुनौती
तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने भी इस आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी है. दोनों नेताओं का तर्क है कि आयोग की इस प्रक्रिया में गरीब, अशिक्षित और दस्तावेज़ों से वंचित लोगों को बाहर किया जा रहा है, जिससे लोकतंत्र को कमजोर किया जा रहा है.
11 दस्तावेजों की बाध्यता पर सवाल
याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग ने नागरिकता प्रमाणित करने के लिए जिन 11 दस्तावेजों की सूची जारी की है, वे दस्तावेज राज्य की गरीब और ग्रामीण जनता के पास नहीं हैं. इनमें आधार कार्ड, मनरेगा जॉब कार्ड और राशन कार्ड को मान्यता नहीं दी गई है, जबकि राज्य में 90% से अधिक लोगों के पास सिर्फ आधार कार्ड ही उपलब्ध है.
चुनाव आयोग द्वारा मांगे गए दस्तावेजों में पासपोर्ट, जन्म प्रमाण पत्र, 10वीं की मार्कशीट, सरकारी नौकरी या पेंशन प्रमाणपत्र, जाति प्रमाण पत्र, वन अधिकार पत्र, भूमि या घर आवंटन प्रमाणपत्र आदि शामिल हैं. लेकिन सर्वे बताते हैं कि बिहार की आबादी का एक बड़ा हिस्सा ऐसे दस्तावेज रखने में असमर्थ है.
वोटर लिस्ट से बाहर होंगे करोड़ों?
वर्तमान वोटर लिस्ट में 7.9 करोड़ मतदाता हैं, जिनमें से 4.74 करोड़ को नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज़ देने होंगे. ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि करोड़ों लोग दस्तावेज़ों के अभाव में मताधिकार से वंचित हो सकते हैं. यह लोकतांत्रिक अधिकारों का सीधा उल्लंघन होगा.


