बाढ़ में टूटी सड़कें नहीं, सरकार ने बचाई गांवों की रीढ़, 24 घंटे डटे विभाग ने लाखों पशुओं को दी जिंदगी
भीषण बाढ़ के बीच पंजाब में सरकार की असली परीक्षा हुई, जब पशुधन को बचाने के लिए विभाग ने दिन रात मोर्चा संभाला और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को टूटने से बचा लिया।

पंजाब में आई बाढ़ सिर्फ सड़कों और घरों की परीक्षा नहीं थी, बल्कि गांवों की रीढ़ माने जाने वाले पशुधन की भी चुनौती थी। राज्य सरकार के पशुपालन विभाग ने इसे सामान्य आपदा नहीं माना। हालात बिगड़ते ही विभाग पूरी ताकत के साथ मैदान में उतर गया। बाढ़ प्रभावित इलाकों में पशुओं को बचाना सबसे बड़ी प्राथमिकता बनाई गई। यह समझा गया कि अगर पशुधन बचा, तभी गांव बचे रहेंगे। इसी सोच ने पूरे ऑपरेशन की दिशा तय की।
किन जिलों में कितना बड़ा ऑपरेशन चला?
पशुपालन, डेयरी विकास एवं मत्स्य पालन मंत्री गुरमीत सिंह खुड्डियां ने बताया कि राज्य के 12 बाढ़ प्रभावित जिलों में त्वरित कार्रवाई की गई। कुल 713 प्रभावित गांवों को चिन्हित किया गया। इन गांवों में 492 रैपिड रिस्पॉन्स वेटरनरी टीमें तैनात की गईं। इसके साथ ही 24 घंटे काम करने वाला इमरजेंसी ग्रिड बनाया गया। इस ऑपरेशन में एक भी घंटा जाया नहीं होने दिया गया।
कितने पशुओं को सीधे राहत मिली?
बाढ़ राहत के दौरान 3.19 लाख से अधिक पशुओं को मुफ्त इलाज उपलब्ध कराया गया। इलाज के साथ साथ बीमारी फैलने से रोकने पर भी फोकस रखा गया। गलघोटू जैसी घातक बीमारियों से बचाव के लिए 2.53 लाख पशुओं को मुफ्त बूस्टर डोज दी गई। विभाग की टीमों ने गांव गांव जाकर हालात का जायजा लिया। हर पशुपालक तक पहुंचने की कोशिश की गई। यही वजह रही कि बड़े स्तर पर बीमारी नहीं फैली।
चारे और दवाओं की व्यवस्था कैसे हुई?
सिर्फ इलाज ही नहीं, बल्कि पशुओं के लिए भोजन भी बड़ी चुनौती था। विभाग ने जिला प्रशासन और गैर सरकारी संगठनों के साथ तालमेल बनाया। 20,000 क्विंटल से ज्यादा फीड और 16,000 क्विंटल से ज्यादा साइलेज बांटा गया। इसके अलावा हजारों क्विंटल हरा चारा और भूसा दिया गया। 234 क्विंटल मिनरल मिक्सचर, 68 हजार डीवर्मर डोज और 194 किलो पोटैशियम परमैंगनेट भी उपलब्ध कराया गया।
पशुपालकों को जागरूक कैसे किया गया?
बाढ़ के दौरान भ्रम और डर सबसे बड़ी समस्या बनते हैं। इसे देखते हुए विभाग ने 1,619 जागरूकता कैंप लगाए। इन कैंपों में पशुपालकों को आपदा के समय सही कदम उठाने की जानकारी दी गई। बीमारियों के लक्षण और प्राथमिक इलाज समझाया गया। साफ पानी और स्वच्छता पर जोर दिया गया। इससे पशुपालकों में भरोसा पैदा हुआ। वे खुद भी पशुओं की देखभाल में भागीदार बने।
बाढ़ के बाद विभाग ने क्या सुधार किए?
संकट के साथ भविष्य की तैयारी भी की गई। राज्य के पॉलीक्लीनिकों के लिए 22 आधुनिक पशु लिफ्टर खरीदे गए। गुरदासपुर, पटियाला, लुधियाना, संगरूर, श्री मुक्तसर साहिब और अमृतसर के छह पॉलीक्लीनिकों को नए आईपीडी से अपग्रेड किया गया। इससे पशुओं को बेहतर इलाज मिलना शुरू हुआ। यह कदम आपदा के बाद स्थायी सुधार की दिशा में अहम माना जा रहा है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को कैसे मिली मजबूती?
पशुपालन विभाग ने बीमारी रोकथाम के लिए व्यापक टीकाकरण अभियान चलाया। लंपी स्किन के खिलाफ 24.27 लाख, मुंहखुर के लिए 126.22 लाख और गलघोटू के लिए 68.88 लाख खुराकें दी गईं। पटियाला पॉलीक्लीनिक में डिजिटल रेडियोग्राफी सिस्टम लगाया गया। डेयरी और मत्स्य पालन में भी सब्सिडी और ट्रेनिंग दी गई। यह सब मिलकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को दोबारा खड़ा करने की मजबूत नींव बना।


