IAF के एयरक्राफ्ट C-130 से लद्दाख पहुंचे धर्मगुरू दलाई लामा, भारत के इस कदम से चीन को लग सकती है मिर्ची
दलाई लामा एक महीने के धार्मिक प्रवास पर लद्दाख पहुंचे, जहां उन्हें Z+ सुरक्षा दी गई है. यह यात्रा चीन के लिए कूटनीतिक चुनौती बन गई है, क्योंकि दलाई लामा के उत्तराधिकारी चयन को लेकर विवाद पहले से ही जारी है. उनके कार्यालय ने स्पष्ट किया कि उत्तराधिकारी तय करने का अधिकार सिर्फ धार्मिक परंपराओं को है.

धर्मगुरु दलाई लामा शनिवार को हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला से लद्दाख पहुंचे, जहां वे एक महीने तक प्रवास करेंगे. उनका आगमन भारतीय वायुसेना के विशेष विमान C-130 से हुआ. जैसे ही वे लेह एयरपोर्ट पर पहुंचे, उन्हें कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच बाहर लाया गया. CRPF के कमांडोज़ और लद्दाख पुलिस की टीम ने उनकी सुरक्षा में कोई कसर नहीं छोड़ी.
भारत सरकार ने दलाई लामा को Z+ श्रेणी की सुरक्षा दी है, जो दर्शाता है कि उनके इस दौरे को कितना अहम माना जा रहा है. लद्दाख प्रशासन ने उनकी सुरक्षा को लेकर विशेष प्लान तैयार किया है, क्योंकि उनके कार्यक्रमों में बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होने की संभावना है.
एक महीने का लद्दाख दौरा
दलाई लामा की यह यात्रा एक धार्मिक प्रवास है, लेकिन इसके राजनीतिक निहितार्थ भी गहरे हैं. वे इस एक महीने के दौरान विभिन्न जनसभाओं, धार्मिक आयोजनों और प्रवचनों में भाग ले सकते हैं. उनकी उपस्थिति न केवल स्थानीय तिब्बती बौद्ध समुदाय के लिए प्रेरणा का स्रोत है, बल्कि इससे भारत-चीन के बीच चल रहे तनावों में एक नया आयाम भी जुड़ गया है.
बढ़ सकता है कूटनीतिक तनाव
चीन पहले से ही दलाई लामा के उत्तराधिकारी चयन को लेकर भारत और तिब्बती समुदाय से नाराज़ है. ऐसे में उनका भारत के रणनीतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र लद्दाख आना चीन को सीधी चुनौती देने जैसा माना जा रहा है. यह वही क्षेत्र है जहां चीन लगातार सीमा विवाद को लेकर आक्रामक रुख अपनाता रहा है.
दलाई लामा की पिछली लद्दाख यात्रा 2023 में हुई थी, जबकि जुलाई 2024 की उनकी नियोजित यात्रा घुटने की सर्जरी के कारण रद्द कर दी गई थी. इस बार की यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब उनके उत्तराधिकारी को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहस तेज हो चुकी है.
चीन को नसीहत
दलाई लामा के कार्यालय की ओर से हाल ही में एक सख्त बयान जारी किया गया, जिसमें स्पष्ट किया गया कि "उत्तराधिकारी तय करने का अधिकार केवल धार्मिक परंपराओं और दलाई लामा के संस्थान को है, किसी और को नहीं." यह बयान सीधे तौर पर चीन की उस नीति के खिलाफ है, जिसमें वह खुद को अगला दलाई लामा चुनने का अधिकार प्राप्त मानता है.


