एक पिता के 50 बेटे? 'वोट चोरी' का आरोप लगाने वाली कांग्रेस पर भड़क गए साधु-संत, जानें क्या है पूरा मामला
वाराणसी में मतदाता सूची विवाद पर राम जानकी मठ के संतों ने साफ किया कि ये वोटर फ्रॉड नहीं, बल्कि सदियों पुरानी गुरु-शिष्य परंपरा है, जिसे कानूनी मान्यता भी प्राप्त है.

Varanasi Voter List: वाराणसी में मतदाता सूची में गड़बड़ी के आरोपों ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है. यूपी कांग्रेस ने सोशल मीडिया पर वाराणसी नगर निगम 2023 चुनाव की मतदाता सूची का एक अंश शेयर करते हुए आरोप लगाया कि कश्मीरिगंज वार्ड-51 में 'रामकमल दास' के 50 से ज्यादा पुत्र दर्ज हैं. कांग्रेस ने इसे मतदाता चोरी का उदाहरण बताते हुए चुनाव आयोग से सख्त कार्रवाई की मांग की थी.
हालांकि, राम जानकी मठ के संतों ने इस विवाद पर स्पष्ट कहा है कि ये मामला वोटर फ्रॉड का नहीं बल्कि धार्मिक परंपरा का हिस्सा है. मठ के प्रबंधक रामभरत शास्त्री ने बताया कि मतदाता सूची में दर्ज पता B 24/19 कोई साधारण मकान नहीं बल्कि राम जानकी मठ मंदिर है, जिसकी स्थापना आचार्य रामकमल दास ने की थी.
गुरु को पिता मानने की परंपरा
रामभरत शास्त्री ने कहा कि हमारे आश्रम में संन्यास लेने वाले शिष्य अपने गुरु को ही पिता मानते हैं. सांसारिक जीवन छोड़ने के बाद उनके आधिकारिक दस्तावेजों में पिता के नाम की जगह गुरु का नाम दर्ज किया जाता है. वरिष्ठ शिष्य अभिराम ने इस परंपरा की कानूनी मान्यता की पुष्टि करते हुए कहा कि 2016 में भारत सरकार ने साधु-संन्यासियों को ये अधिकार दिया कि वे अपने दस्तावेजों में जैविक पिता की जगह गुरु का नाम लिख सकें. ये ना तो धोखाधड़ी है और ना ही असंवैधानिक.
राजनीतिक आरोपों को सनातन परंपरा पर हमला बताया
अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कांग्रेस के आरोपों को सनातन परंपरा को बदनाम करने की साजिश करार दिया. उन्होंने कहा कि गुरुकुल के विद्यार्थियों, ब्रह्मचारियों और साधुओं के आधार व वोटर आईडी में पिता की जगह गुरु का नाम दर्ज होता है. बिना समझे राजनीतिक दल बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं. संतों ने इस गलतफहमी को दूर करने के लिए 'बुद्धि शुद्धि पूजन' भी किया और सभी से अपील की कि इस मामले को राजनीतिक रंग ना दिया जाए.
संतों का कहना है कि ये परंपरा सदियों पुरानी है और सनातन संस्कृति की पहचान है. उन्होंने अपील की है कि ऐसे मामलों को राजनीतिक चश्मे से देखने के बजाय धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक विरासत के सम्मान की दृष्टि से समझा जाए.


