मॉब लिंचिंग और गौ-हत्या को लेकर SC का बड़ा फैसला, कहा- हर घटना की निगरानी नहीं कर सकते...
सुप्रीम कोर्ट ने गौरक्षकों की भीड़ हिंसा पर दायर जनहित याचिका को खारिज करते हुए कहा कि ऐसे मामलों की निगरानी करना और गौ-संरक्षण कानूनों की वैधता की जांच करना उसका कार्य नहीं है. अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि किसी को इन कानूनों पर आपत्ति है, तो वह संबंधित राज्य के हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने उस जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया, जिसमें गौरक्षकों द्वारा की जाने वाली भीड़ हिंसा (Mob Lynching) पर चिंता जताई गई थी. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों की निगरानी करना और राज्यों के गौ-संरक्षण कानूनों की वैधता की जांच करना उसका कार्य नहीं है. अदालत ने कहा कि अगर किसी को इन कानूनों पर आपत्ति है, तो वह संबंधित राज्य के हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है.
पूरे देश के घटनाक्रम की निगरानी नहीं कर सकते- SC
सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन शामिल थे, उन्होंने कहा कि देश के कई हिस्सों में भीड़ हिंसा के कारण अलग-अलग हो सकते हैं. इसलिए, दिल्ली में बैठकर न्यायाधीशों के लिए इन मामलों की निगरानी (Micromanagement) करना व्यावहारिक नहीं होगा. कोर्ट ने कहा कि हम पूरे देश के घटनाक्रम की निगरानी नहीं कर सकते. यदि किसी को कोई समस्या है, तो उसे संबंधित राज्य की अदालत में अपनी शिकायत दर्ज करानी चाहिए.
गौ-संरक्षण कानूनों की वैधता पर नहीं होगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह कई राज्यों में लागू गौ-संरक्षण कानूनों की वैधता की समीक्षा नहीं करेगा. अदालत ने कहा कि किसी एक सामान्य याचिका के आधार पर ये उचित नहीं होगा कि हम 13 राज्यों के कानूनों की जांच करें. यह मामला संबंधित राज्यों के हाईकोर्ट द्वारा सुना जाना चाहिए.
पहले से ही मौजूद हैं भीड़ हिंसा रोकने के दिशा-निर्देश
रिपोर्ट के अनुसार, कोर्ट ने यह भी याद दिलाया कि उसने पहले ही तहसीन पूनावाला केस में विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए थे, जो कि सभी प्रशासनिक अधिकारियों के लिए बाध्यकारी हैं. कोर्ट ने कहा कि यदि किसी व्यक्ति को लगता है कि इन दिशा-निर्देशों का पालन नहीं हो रहा है, तो वह कानूनी सहायता ले सकता है.
याचिकाकर्ता का तर्क: कानूनों का हो रहा दुरुपयोग
इस जनहित याचिका को नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन (NFIW) ने दायर किया था. याचिकाकर्ता के वकील निजामुद्दीन पाशा ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया कि कोर्ट द्वारा पहले जारी किए गए निर्देशों का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है. विशेष रूप से उन राज्यों में, जहां हाल ही में गौ-संरक्षण कानून लागू किए गए हैं.


