चुपचाप पहुंचे थरूर, कांग्रेस को मिला बड़ा संकेत-जरूरत पड़ी तो फिर होंगे सत्ता संतुलन के केंद्र
कांग्रेस की अहम बैठक में शशि थरूर की मौजूदगी ने साफ कर दिया कि पार्टी में उनकी भूमिका खत्म नहीं हुई है बल्कि जरूरत पड़ने पर वह फिर से केंद्र में आ सकते हैं।

कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक में शशि थरूर का पहुंचना एक सामान्य घटना नहीं थी। लंबे समय से वह ऐसी बैठकों से दूर थे। इससे यह धारणा बन गई थी कि उन्हें साइडलाइन कर दिया गया है। लेकिन बैठक में उनकी मौजूदगी ने इस सोच को तोड़ दिया। उन्होंने न कोई बयान दिया। न कोई सफाई दी। सिर्फ मौजूद रहकर अपना संदेश दे दिया। यह संदेश साफ था कि वह अभी भी पार्टी के भीतर प्रासंगिक हैं।
क्या हाशिए की राजनीति खत्म हो रही है?
राजनीति में हाशिए पर होना मतलब फैसलों से दूर होना होता है। थरूर के मामले में ऐसा नहीं दिखा। उनकी मौजूदगी ने बताया कि पार्टी उन्हें पूरी तरह नजरअंदाज नहीं कर सकती। वह चर्चा के केंद्र में भले न हों। लेकिन जरूरत पड़ने पर उनकी भूमिका अहम हो सकती है। कांग्रेस के भीतर यह संकेत गया कि थरूर को खत्म मानना जल्दबाजी होगी। यही इस बैठक का असली संदेश था।
क्या नेतृत्व ने मजबूरी में जगह दी?
इस बैठक में मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी भी मौजूद थे। ऐसे मंच पर थरूर की एंट्री बिना सहमति के संभव नहीं। यह भी माना जा रहा है कि नेतृत्व समझ चुका है कि थरूर को अलग रखना नुकसानदेह हो सकता है। उनकी लोकप्रियता और अंतरराष्ट्रीय पहचान पार्टी के लिए उपयोगी है। इसलिए उन्हें पूरी तरह बाहर रखना आसान नहीं है।
क्या थरूर का कद फिर बढ़ रहा है?
थरूर सिर्फ सांसद नहीं हैं। वह लेखक हैं। वक्ता हैं। और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचाने जाते हैं। पार्टी में ऐसे चेहरे बहुत कम हैं। यही वजह है कि वह बार बार चर्चा में रहते हैं। बैठक में उनकी मौजूदगी ने यह दिखाया कि पार्टी को उनकी जरूरत पड़ सकती है। खासकर तब जब कांग्रेस को वैचारिक और बौद्धिक चेहरों की तलाश है।
क्या यह भविष्य की भूमिका का संकेत है?
इस वापसी को कई नेता भविष्य की तैयारी मान रहे हैं। थरूर ने कोई मांग नहीं रखी। कोई शिकायत नहीं की। उन्होंने सिर्फ यह दिखाया कि वह उपलब्ध हैं। जरूरत पड़ी तो जिम्मेदारी संभाल सकते हैं। यह तरीका अनुभवी नेताओं का होता है। जो वक्त का इंतजार करते हैं। और सही मौके पर सामने आते हैं।
क्या कांग्रेस में नया संतुलन बनेगा?
कांग्रेस के भीतर अब संतुलन की राजनीति चल रही है। पुराने और नए चेहरों के बीच तालमेल जरूरी है। थरूर की मौजूदगी इसी संतुलन का हिस्सा लगती है। वह न विद्रोह में हैं। न पूरी तरह खामोश। यह स्थिति उन्हें केंद्र में लाने की जमीन तैयार कर सकती है। आने वाले समय में उनकी भूमिका बढ़े या न बढ़े। लेकिन यह तय है कि वह अब हाशिए पर नहीं हैं।


