कभी गोली, कभी जहर तो कभी ट्रेन... 7 IAS-IPS अफसरों की आत्महत्या का दर्दनाक सच, जो सिस्टम की खामियों को करती हैं उजागर
IAS-IPS Suicides News : हरियाणा कैडर के 2001 बैच के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी वाई पूरन कुमार ने चंडीगढ़ स्थित अपने घर में सर्विस रिवॉल्वर से आत्महत्या कर ली. मौके से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है, लेकिन मानसिक दबाव, प्रशासनिक उपेक्षा और पदोन्नति में देरी को संभावित कारण माना जा रहा है. यह घटना देशभर में प्रशासनिक सेवा में बढ़ती मानसिक चुनौतियों को उजागर करती है.

IAS-IPS Suicides News : हरियाणा कैडर के 2001 बैच के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी वाई पूरन कुमार की आत्महत्या ने देश के पुलिस और प्रशासनिक महकमे में गहराते मानसिक स्वास्थ्य संकट की गंभीरता को उजागर कर दिया है. उन्होंने चंडीगढ़ स्थित अपने सरकारी आवास पर खुद की सर्विस रिवॉल्वर से गोली मारकर आत्महत्या की. यह घटना केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं, बल्कि पूरे तंत्र की खामियों का आईना है, जिसमें अधिकारियों को लगातार तनाव और अपेक्षाओं के बोझ तले जीना पड़ता है.
आत्महत्या के पीछे की संभावित वजहें
कई IAS और IPS अधिकारियों ने की आत्महत्या
पिछले कुछ वर्षों में कई IAS और IPS अधिकारियों ने इसी तरह आत्महत्या की है. यूपी के आईपीएस सुरेंद्र कुमार दास, एटीएस चीफ हिमांशु राय, आईएएस मुकेश पांडेय और संजीव दुबे जैसे नाम इस त्रासदी की फेहरिस्त में शामिल हैं. इन मामलों में ज्यादातर कारण व्यक्तिगत अवसाद, पारिवारिक कलह, बीमारियां या पेशेवर दबाव रहे हैं. लेकिन हर बार प्रशासनिक सेवा में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर केवल मौखिक सहानुभूति ही देखने को मिली है, कोई स्थायी समाधान नहीं.
प्रशासनिक सेवा में मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी
भारत में प्रशासनिक सेवा को अत्यधिक प्रतिष्ठा का पद माना जाता है, लेकिन इसके साथ जो मानसिक बोझ जुड़ा होता है, उस पर कोई बात नहीं करता. अधिकारियों से 24x7 उपलब्ध रहने की अपेक्षा की जाती है. किसी भी त्रुटि पर आलोचना या निलंबन का डर, राजनीतिक हस्तक्षेप और जनता के अनियंत्रित दबाव के बीच अधिकारियों का मानसिक संतुलन बिगड़ना स्वाभाविक है.
वरिष्ठ अधिकारी पर आत्महत्या का रास्ता क्यों ?
पूरन कुमार की आत्महत्या एक गंभीर संकेत है कि प्रशासनिक व्यवस्था में मानसिक स्वास्थ्य के लिए कोई समुचित ढांचा नहीं है. अधिकारियों के पास न तो पर्याप्त परामर्शदाता होते हैं, न ही कोई गोपनीय सहायता प्रणाली, जिससे वे अपने तनाव या अवसाद के बारे में खुलकर बात कर सकें. जब इतना वरिष्ठ और अनुभवी अधिकारी आत्महत्या का रास्ता चुनता है, तो यह सवाल खड़ा करता है कि बाकी अधिकारी किस मानसिक स्थिति में काम कर रहे होंगे?
क्या चाहिए एक ठोस सुधार
सरकार को अब मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता पर रखते हुए प्रशासनिक सेवा में कार्यरत अधिकारियों के लिए विशेष मनोवैज्ञानिक परामर्श तंत्र, गोपनीय हेल्पलाइन, तनाव प्रबंधन वर्कशॉप और नियमित मानसिक स्वास्थ्य मूल्यांकन जैसी पहल शुरू करनी चाहिए. इसके अलावा, वरिष्ठ अधिकारियों को “मानव” समझना ज़रूरी है, न कि सिर्फ आदेश पालन करने वाली मशीन.


