रेवंत रेड्डी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से झटका, ओबीसी आरक्षण मामले में दायर याचिका खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें ओबीसी आरक्षण सीमा 50% से अधिक करने पर हाईकोर्ट की रोक को चुनौती दी गई थी. कोर्ट ने ‘ट्रिपल टेस्ट’ के उल्लंघन का हवाला देते हुए आदेशों पर अंतरिम रोक को उचित ठहराया और अंतिम निर्णय तक रोक जारी रखी.

Telangana reservation case: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को तेलंगाना सरकार को बड़ा झटका देते हुए उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें राज्य ने अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए आरक्षण सीमा को 50 प्रतिशत से अधिक करने पर उच्च न्यायालय द्वारा लगाई गई अंतरिम रोक को चुनौती दी थी. यह सीमा 1992 के सुप्रसिद्ध इंद्रा साहनी केस (मंडल कमीशन मामला) में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्धारित की थी.
तेलंगाना सरकार का पक्ष
तेलंगाना सरकार ने अपने पक्ष में तर्क दिया कि स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी को 42 प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय एक नीतिगत फैसला है. इस बढ़े हुए आरक्षण के बाद कुल आरक्षण प्रतिशत 67 प्रतिशत हो जाता, जिसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी शामिल होते.
राज्य की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि यह फैसला विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित हुआ था और उच्च न्यायालय ने बिना पर्याप्त तर्क दिए उस पर रोक लगा दी, जो विधायी अधिकार का उल्लंघन है. सिंघवी ने पूछा, “जब सभी दल इस नीति के पक्ष में हैं, तो अदालत इसमें हस्तक्षेप कैसे कर सकती है?”
‘50% की सीमा कठोर नहीं
सिंघवी ने कहा कि यह मानना कि इंद्रा साहनी केस में 50% की सख्त सीमा तय की गई थी, एक भ्रम है. उन्होंने तर्क दिया कि इंद्रा साहनी निर्णय में यह भी कहा गया था कि असाधारण परिस्थितियों में यह सीमा पार की जा सकती है.
संविधान का उल्लंघन
सरकार के तर्कों का विरोध करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व निर्णयों का हवाला दिया, जिसमें 50% की अधिकतम सीमा को बरकरार रखा गया है. उन्होंने विशेष रूप से 2010 के के. कृष्णमूर्ति बनाम भारत सरकार मामले का हवाला दिया, जिसमें संविधान पीठ ने आरक्षण की अधिकतम सीमा पर मुहर लगाई थी.
हाईकोर्ट का आदेश
तेलंगाना हाईकोर्ट ने पिछले महीने तीन सरकारी आदेशों पर अंतरिम रोक लगाई थी. इसमें 42 प्रतिशत आरक्षण की अधिसूचना और उससे संबंधित दो अन्य निर्देश शामिल थे. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यह आरक्षण वृद्धि 50% सीमा का उल्लंघन करती प्रतीत होती है. साथ ही अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के ‘ट्रिपल टेस्ट’ का उल्लेख किया, जिसमें:
1. ओबीसी जनसंख्या के लिए एक स्वतंत्र आयोग से अनुभवजन्य अध्ययन कराना
2. उस अध्ययन के आधार पर आरक्षण का प्रतिशत निर्धारित करना
3. यह सुनिश्चित करना कि आरक्षण कुल 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक न हो.
अंतिम निर्णय तक रोक जारी रहेगी
हाईकोर्ट ने पाया कि सरकार द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया इन तीनों कसौटियों पर खरी नहीं उतरती है. इसलिए जब तक मामले की वैधता पर अंतिम निर्णय नहीं हो जाता, तब तक के लिए इन आदेशों पर अंतरिम रोक बरकरार रहेगी.


