अब जज बनने के लिए जरूरी होगी 3 साल की वकालत, सुप्रीम कोर्ट ने बहाल की पुरानी शर्त, कहा- अनुभव का कोई विकल्प नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि अब सिविल जज (जूनियर डिवीजन) बनने के लिए कम से कम 3 साल की वकालत अनिवार्य होगी. कोर्ट ने कहा कि व्यावहारिक अनुभव के बिना न्यायिक कार्य की समझ संभव नहीं. 2002 में यह शर्त हटाई गई थी, लेकिन अब अनुभव की अहमियत को देखते हुए इसे दोबारा लागू किया गया है.

सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक सेवा में बड़ी सख्ती करते हुए मंगलवार (20 मई) को एक अहम फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि अब सिविल जज (जूनियर डिवीजन) बनने के लिए कम से कम 3 साल की कानून प्रैक्टिस अनिवार्य होगी. 2002 में यह शर्त हटाई गई थी ताकि युवा प्रतिभाओं को आकर्षित किया जा सके, लेकिन पिछले 20 वर्षों के अनुभव ने यह दिखाया है कि यह प्रयोग सफल नहीं रहा.
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की गैर-मौजूदगी में CJI भूषण आर. गवई, न्यायमूर्ति एजी मसीह और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि “न्यायिक व्यवस्था और अदालती कामकाज की समझ केवल अदालतों में व्यावहारिक अनुभव से ही आती है, और उसका कोई विकल्प नहीं है.”
हाईकोर्ट के अनुभव से सामने आई सच्चाई
पीठ ने कहा कि 2002 के बाद जिन राज्यों ने सीधे कानून स्नातकों को जज के रूप में नियुक्त किया, वहां कई समस्याएं उत्पन्न हुईं. कोर्ट ने टिप्पणी की नए स्नातक, जो सीधे नियुक्त हुए, उन्हें न अदालती प्रक्रियाओं का ज्ञान था और न ही मुकदमेबाज़ी का अनुभव. इससे न्याय में देरी और जमीनी समझ की कमी देखी गई.
अनुभवी वकीलों से न्यायपालिका को मिलेगा लाभ
कोर्ट ने कहा कि अगर उन वकीलों को मौका दिया जाए जो मुकदमेबाज़ी की प्रक्रिया से परिचित हैं, तो यह न्यायपालिका के लिए एक लाभदायक कदम होगा. ऐसे वकील जो अदालतों में प्रैक्टिस कर चुके हैं, उन्हें इंसानी समस्याओं की संवेदनशीलता और बार का व्यावहारिक अनुभव होता है, जो न्यायिक सेवा में बेहद जरूरी है.”
राज्यों और हाईकोर्ट को 3 महीने में बदलने होंगे नियम
यह फैसला ऑल इंडिया जजेस एसोसिएशन की याचिका पर आया, जिसमें मांग की गई थी कि तीन साल की न्यूनतम वकालत की शर्त को दोबारा लागू किया जाए. कोर्ट ने निर्देश दिया कि सभी राज्य सरकारें और हाईकोर्ट अगले 3 महीने में इस फैसले के अनुसार अपने भर्ती नियमों में संशोधन करें.
मौजूदा भर्तियों पर नहीं होगा असर
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह आदेश उन राज्यों पर लागू नहीं होगा जहां सिविल जजों की भर्ती पहले ही शुरू हो चुकी है या नोटिफिकेशन जारी हो चुका है. यह नियम केवल आगामी भर्तियों से लागू होगा. यह निर्णय अगले भर्ती चक्र से प्रभावी होगा. वर्तमान में जारी भर्ती प्रक्रियाओं पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.”
अनुभव की गणना कैसे होगी?
कोर्ट ने कहा कि वकील के अनुभव की गणना प्रोविजनल रजिस्ट्रेशन की तारीख से की जाएगी, जो ऑल इंडिया बार परीक्षा पास करने के बाद मिलता है. इसके अलावा उम्मीदवारों को 10 वर्षों के अनुभव वाले वकील से प्रमाण-पत्र लेना होगा, जिसे प्रमुख न्यायिक अधिकारी द्वारा सत्यापित किया जाना चाहिए. हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वकीलों को जज द्वारा सत्यापित अनुभव प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करना होगा.
2002 में क्यों हटाई गई थी यह शर्त?
1993 के ऑल इंडिया जजेस एसोसिएशन केस में सुप्रीम कोर्ट ने 3 साल की न्यूनतम प्रैक्टिस की शर्त लागू की थी. बाद में शेट्टी आयोग की 1996 में आई सिफारिशों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में इस शर्त को हटा दिया. तब कोर्ट ने माना था कि 3 साल तक वकालत करने के बाद भी न्यायिक सेवा युवा प्रतिभाओं को आकर्षित नहीं कर पा रही थी, इसलिए इसे हटाकर सीधे स्नातकों को मौका देने की बात कही गई. हालांकि अब कोर्ट ने माना कि यह निर्णय व्यावहारिक नहीं था और अनुभवहीन जजों से न्यायपालिका को नुकसान हुआ.