वक्फ अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, केंद्र को नोटिस जारी – क्या सच में है ये कानून भेदभावपूर्ण?
सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ अधिनियम 1995 को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र को नोटिस भेजा. याचिका में कहा गया कि ये कानून सिर्फ मुसलमानों को धार्मिक संपत्तियां संभालने का अधिकार देता है जो संविधान के खिलाफ है. कोर्ट ने मामले की देरी पर सवाल उठाए और केंद्र से जवाब मांगा. अब देखना है कि कोर्ट इस पर क्या फैसला करता है.

New Delhi: भारत में हर धर्म के अनुयायियों को अपने धार्मिक स्थलों और संपत्तियों की देखरेख का अधिकार है. लेकिन क्या वाकई ऐसा है? क्या सभी धर्मों को एक जैसी सुविधाएं और कानूनी अधिकार मिले हैं? इसी सवाल पर अब देश की सबसे बड़ी अदालत ने गंभीर रुख अपनाया है. मामला है वक्फ अधिनियम 1995 और उसके बाद हुए संशोधनों का जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस भेजा है.
क्या है मामला?
सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम 1995 के कुछ प्रावधानों की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाने वाली एक याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. यह याचिका निखिल उपाध्याय की ओर से दाखिल की गई है, जिनकी तरफ से वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने अदालत में पक्ष रखा.
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने इस याचिका को वक्फ अधिनियम 1995 को चुनौती देने वाली पहले से लंबित अन्य याचिकाओं के साथ जोड़ दिया है. इसके साथ ही, अदालत ने पूछा कि इतने सालों बाद अब इस कानून को चुनौती क्यों दी जा रही है.
सुप्रीम कोर्ट ने देरी पर उठाए सवाल
सुनवाई के दौरान सीजेआई ने याचिकाकर्ता से पूछा कि आखिर 1995 के अधिनियम को अब, यानी इतने वर्षों बाद, क्यों चुनौती दी जा रही है. वकील अश्विनी उपाध्याय ने जवाब में कहा कि हम केवल 1995 के अधिनियम को नहीं, बल्कि इसके 2013 और 2025 के संशोधनों को भी चुनौती दे रहे हैं. इस पर कोर्ट ने कहा कि 2013 के संशोधन को भी 12 साल हो चुके हैं, ऐसे में देरी को लेकर याचिका खारिज की जा सकती है.
कौन-कौन से तर्क दिए गए?
याचिकाकर्ता का तर्क है कि वक्फ अधिनियम 1995 और इसके संशोधन संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 15 (धार्मिक भेदभाव पर रोक), 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार), 25-28 (धार्मिक स्वतंत्रता) के खिलाफ हैं.
उन्होंने ये भी कहा कि वक्फ कानून केवल मुसलमानों की धार्मिक संपत्तियों के लिए है, जबकि हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध और ईसाइयों के पास अपनी धार्मिक संपत्तियों के लिए ऐसा कोई विशेष कानून नहीं है. इससे साफ है कि यह कानून अन्य धर्मों के साथ भेदभाव करता है.
क्यों है यह मामला अहम?
भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में अगर किसी एक समुदाय को विशेष कानूनी सुविधा दी जाती है और बाकी धर्मों को उससे वंचित रखा जाता है, तो ये सवाल उठना लाजमी है कि क्या ये संविधान की मूल भावना के खिलाफ नहीं है?
अब आगे क्या होगा?
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को अन्य लंबित मामलों के साथ जोड़ दिया है और केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. अब देखने वाली बात ये होगी कि क्या कोर्ट इस कानून की समीक्षा करेगा या याचिका को देरी के कारण खारिज कर देगा.
वक्फ अधिनियम को लेकर चल रहा यह कानूनी विवाद अब धार्मिक समानता और संवैधानिक मूल्यों की कसौटी पर खड़ा हो गया है. सुप्रीम कोर्ट का रुख यह साफ करता है कि इस बार मामले की गहराई से जांच होगी और अगर किसी एक धर्म को विशेष लाभ दिया गया है, तो उसपर सवाल उठेंगे ही.


