न्याय की लड़ाई अदालत में लड़ी जाए, सड़कों पर नहीं...उन्नाव रेप मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया ट्रायल पर की सख्त टिप्पणी
उन्नाव बलात्कार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया ट्रायल और सार्वजनिक दबाव पर नाराज़गी जताई, सेंगर को जमानत वाले दिल्ली हाईकोर्ट आदेश पर रोक लगाई, न्यायपालिका को धमकाने आलोचना और कहा कि न्याय की लड़ाई अदालत में लड़ी जाए ही.

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उन्नाव बलात्कार मामले को लेकर सार्वजनिक दबाव और कथित ‘मीडिया ट्रायल’ पर गहरी नाराज़गी जताई. यह मामला दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश से जुड़ा है, जिसमें पूर्व भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को दी गई आजीवन कारावास की सजा को निलंबित कर उन्हें जमानत देने का फैसला किया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि न्याय की लड़ाई अदालतों में लड़ी जानी चाहिए, न कि सड़कों पर या सोशल मीडिया अभियानों के जरिए.
सीबीआई की याचिका पर सुनवाई
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है. सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि इस संवेदनशील मामले में राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिशें की जा रही हैं और न्यायपालिका को सार्वजनिक रूप से डराने या बदनाम करने के प्रयास गंभीर चिंता का विषय हैं.
न्यायाधीशों को निशाना बनाए जाने पर कड़ी प्रतिक्रिया
सुनवाई के दौरान एक वकील ने अदालत को बताया कि दिल्ली हाईकोर्ट के जिन न्यायाधीशों ने सेंगर की सजा निलंबित करने का आदेश दिया था, उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा की जा रही हैं. इन तस्वीरों के साथ लोगों से इन न्यायाधीशों की पहचान करने जैसे संदेश दिए जा रहे हैं. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए इसे बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा कि ऐसे कदम न्यायिक व्यवस्था को धमकाने जैसे हैं.
न्याय की लड़ाई अदालत में लड़ी जाए
पीठ ने साफ शब्दों में कहा कि वह किसी भी तरह की संकीर्ण सोच या दबाव में आने वाली नहीं है. अदालत ने चेतावनी दी कि न्यायपालिका को सार्वजनिक मंचों पर घेरने की कोशिश स्वीकार्य नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा कि आप इस मामले को सड़कों पर नहीं ला सकते. अगर तर्क देने हैं तो अदालत के अंदर दें, बाहर नहीं.
कानून के अहम सवालों पर सुप्रीम कोर्ट की चिंता
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगाते हुए लोक सेवक शब्द की व्याख्या को लेकर गंभीर सवाल उठाए. अदालत ने कहा कि यदि हाईकोर्ट की व्याख्या को मान लिया जाए, तो एक कांस्टेबल या पटवारी तो लोक सेवक माना जाएगा, लेकिन विधायक या सांसद इस परिभाषा से बाहर हो सकते हैं और छूट का दावा कर सकते हैं. अदालत के अनुसार, यह कानून की भावना के विपरीत है और इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं.
हाईकोर्ट के आदेश पर रोक
अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आम तौर पर किसी दोषी या विचाराधीन कैदी की रिहाई पर रोक नहीं लगाई जाती, लेकिन इस मामले की विशेष परिस्थितियों को देखते हुए यह जरूरी है. कोर्ट ने ध्यान दिलाया कि कुलदीप सिंह सेंगर पहले ही अन्य मामलों में दोषी ठहराए जा चुके हैं. इसलिए दिल्ली हाईकोर्ट के 23 दिसंबर के आदेश पर रोक लगाई जाती है और सेंगर को फिलहाल रिहा नहीं किया जाएगा.
सेंगर पर गंभीर आरोप
दिल्ली हाईकोर्ट ने सेंगर की अपील पर सुनवाई करते हुए निचली अदालत द्वारा दी गई आजीवन कारावास की सजा को निलंबित कर उन्हें जमानत दी थी. हाईकोर्ट का तर्क था कि मौजूदा विधायक होने के कारण सेंगर को आईपीसी और पॉक्सो कानून के तहत “लोक सेवक” की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता. हालांकि, सेंगर उन्नाव बलात्कार कांड की पीड़िता के पिता की हिरासत में मौत, गवाहों को प्रभावित करने और अन्य गंभीर मामलों में भी दोषी ठहराए जा चुके हैं.


