आतंकी हमले में पति खोया, अब ट्रोल्स ने हिमांशी के चरित्र पर किया हमला
पहलगाम आतंकी हमले में पति को खोने के बाद हिमांशी नरवाल इस भयावह त्रासदी का प्रतीक बन गईं. लेकिन जब उन्होंने शांति की अपील की, तो जल्द ही उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग और नफरत का सामना करना पड़ा. उनके खिलाफ हुए ये हमले न केवल लैंगिक पूर्वाग्रह से भरे थे, बल्कि यह भी दिखाते हैं कि जब कोई महिला संवेदनशील मुद्दों पर अपनी राय रखती है तो उसे चुप कराने के लिए समाज किस हद तक जा सकता है.

22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भयावह आतंकी हमले में 26 निर्दोष लोगों की जान गई. इस हमले की सबसे मार्मिक छवि सोशल मीडिया पर वायरल हुई, जिसमें नौसेना अधिकारी कैप्टन विनय नरवाल की पत्नी हिमांशी नरवाल उनके शव के पास घुटनों के बल बैठी हैं. यह तस्वीर देशभर में दुःख, आक्रोश और संवेदना का प्रतीक बन गई. इस नवविवाहित जोड़े की शादी को महज एक सप्ताह ही बीता था कि पाकिस्तानी आतंकियों ने उन्हें नजदीक से गोली मार दी.
ऑनलाइन ट्रोलिंग और नफरत का शिकार
हालांकि, जहां एक ओर हिमांशी की इस तस्वीर ने देश को झकझोर दिया. वहीं, जल्द ही वह ऑनलाइन ट्रोलिंग और नफरत का शिकार बन गईं. हिमांशी ने सार्वजनिक रूप से शांति की अपील करते हुए कहा था कि इस हमले के लिए पूरे मुस्लिम समुदाय या कश्मीरियों को दोषी ठहराना गलत है. लेकिन उनके इस बयान ने ट्रोल्स को भड़का दिया और उन्होंने हिमांशी पर निजी हमले शुरू कर दिए.
ऑनलाइन हमलों की शुरुआत उनके बयान के बाद हुई, न कि उनके शोक या अंतिम संस्कार के समय. ट्रोल्स ने उनके अतीत को खंगालना शुरू किया. जेएनयू में उनकी पढ़ाई को विवादित बना दिया और उनके चरित्र पर सवाल उठाए. उनके शोक में डूबी स्थिति को भी संदेह की दृष्टि से देखा गया, यहां तक कि यह तक कहा गया कि उन्हें अपने पति की मौत का कोई गम नहीं है.
जहरीली टिप्पणियां
उनके खिलाफ जहरीली टिप्पणियों में यह तक कहा गया कि क्या उन्हें सरकारी पेंशन मिलनी चाहिए और क्या उन्हें “सच्ची विधवा” कहा जा सकता है. इस हमले में अपने पिता को खोने वाली आरती मेनन भी ऑनलाइन नफरत की शिकार बनीं, जब उन्होंने उन लोगों का जिक्र किया जो संकट की घड़ी में उनके लिए भाई जैसे बन गए थे.
इन दोनों महिलाओं के खिलाफ ट्रोलिंग ने यह उजागर किया कि किस तरह इंटरनेट पर औरतें विशेष रूप से लक्षित की जाती हैं. खासकर जब वे प्रचलित कथानक से अलग कोई विचार प्रकट करती हैं. पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस घृणा की लहर की आलोचना की और कहा कि आतंकवादियों का उद्देश्य ही यही था, भारतीय समाज को बांटना.
राष्ट्रीय महिला आयोग का संज्ञान
राष्ट्रीय महिला आयोग ने इस पर संज्ञान लेते हुए स्पष्ट कहा कि किसी महिला को उसके विचारों या व्यक्तिगत जीवन के लिए निशाना बनाना अस्वीकार्य है. खोजी पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी ने कहा कि जिस तरह पाकिस्तानी आतंकियों ने विनय को मारा, उसी तरह ऑनलाइन ट्रोल्स ने हिमांशी के चरित्र की हत्या की.
हिमांशी के समर्थन में उठीं आवाज़ें
यह मामला केवल हिमांशी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि भारत में किस प्रकार महिलाओं को शोक और संघर्ष के समय भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से वंचित करने की कोशिश की जाती है. फिर भी, हिमांशी के समर्थन में भी कई आवाज़ें उठीं, जिन्होंने उन्हें साहसी और शांतिदूत बताया. यह बहस केवल एक महिला की कहानी नहीं है. यह समाज की उस सच्चाई को दिखाती है जहां पीड़ित से सहानुभूति के बजाय सवाल किए जाते हैं.