India-US Trade War: अगले 24 घंटे में भारत पर बढ़ सकता है टैरिफ, ट्रंप ने दी कड़ी चेतावनी
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत पर टैरिफ बढ़ाने की संभावना जताई है. उनका कहना है कि भारत ने भारी मात्रा में रूसी तेल खरीदा है और उसे उच्च कीमत पर बेचा जा रहा है. इस कदम से भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक तनाव बढ़ सकता है. वहीं, भारत ने अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए यह कदम उठाया है और इसे अपना संप्रभु अधिकार माना है.अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मीडिया को दिए एक साक्षात्कार में कहा है कि वह अगले 24 घंटों में भारत पर टैरिफ में 'काफी' वृद्धि कर सकते हैं.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मीडिया से बातचीत में कहा है कि वे अगले 24 घंटों के भीतर भारत पर टैरिफ में 'काफी' वृद्धि कर सकते हैं. उन्होंने यह कदम भारत द्वारा बड़ी मात्रा में रूसी तेल खरीदने को लेकर उठाने की बात कही है. ट्रम्प ने यह भी जताया कि भारत द्वारा खरीदा गया तेल बाद में खुले बाजार में अधिक कीमतों पर बेचा जा रहा है.
अमेरिका को खटक रहा तेल खरीदना
आपको बता दें कि भारत द्वारा रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीदना अमेरिका को खटक रहा है. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार इस मुद्दे को उठाते हुए भारत पर दबाव बना रहे हैं. हाल ही में ट्रंप ने बयान दिया कि भारत को रूसी तेल और हथियारों की खरीद जारी रखने पर भारी जुर्माना झेलना पड़ेगा. उन्होंने भारत पर 25 फीसदी का आयात शुल्क (टैरिफ) लगाने की बात कही, जिसे भारत सरकार ने सिरे से खारिज कर दिया है.
🇺🇸❗🇮🇳 President Trump says he will raise tariffs on India "substantially" over the next 24 hours. pic.twitter.com/6nGF9H7Zou
— Molo44 🇮🇹🇺🇦 (@MoloWarMonitor) August 5, 2025
25% टैरिफ सिर्फ शुरुआत है
हालांकि, डोनाल्ड ट्रंप यहीं नहीं रुके. उन्होंने चेतावनी दी कि 25% टैरिफ सिर्फ शुरुआत है और आने वाले समय में इससे भी ज्यादा सख्त कदम उठाए जा सकते हैं. उनका दावा है कि अगर भारत रूस से तेल खरीदता रहा, तो अमेरिका 50%, 75% या यहां तक कि 100% तक का टैरिफ लगा सकता है. उनका मकसद रूस पर आर्थिक दबाव बनाना है, लेकिन इसकी सीधी मार भारत जैसे देशों पर पड़ेगी जो अपनी ऊर्जा ज़रूरतों के लिए रूस पर निर्भर हैं.
ट्रंप को आर्थिक दबाव की नीति पसंद
वहीं, ऊर्जा क्षेत्र के जाने-माने विशेषज्ञ और रैपिडान एनर्जी ग्रुप के चेयरमैन बॉब मैकनेली ने ट्रंप की रणनीति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि ट्रंप को टैरिफ और आर्थिक दबाव की नीति काफी पसंद है. उन्होंने यह भी बताया कि ट्रंप प्रशासन भारत और अन्य देशों पर सेकंडरी सैंक्शन लगाने की योजना बना रहा है. इससे भारत पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ सकता है. मैकनेली ने यह भी याद दिलाया कि कुछ साल पहले अमेरिका ने खुद भारत से अनुरोध किया था कि वह रूस से तेल खरीदे ताकि वैश्विक बाज़ार में स्थिरता बनी रहे.
US के कहने पर खरीदा था तेल
ट्रंप की धमकियों के बीच अमेरिका के पूर्व भारत में राजदूत एरिक गार्सेटी का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है. इस वीडियो में गार्सेटी साफ कह रहे हैं कि भारत ने रूसी तेल की खरीद अमेरिका की रणनीति के तहत की थी. उन्होंने कहा कि यह कोई गलत कदम नहीं था, बल्कि अमेरिका की यही नीति थी कि भारत तय कीमत पर रूस से तेल खरीदे ताकि तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें न बढ़ें और बाज़ार में संतुलन बना रहे. भारत ने वही भूमिका निभाई जो अमेरिका को उस समय चाहिए थी.
जो हमें रोक रहे, वो खुद रूस से व्यापार कर रहे
भारत ने अमेरिका और यूरोपीय संघ की आलोचना पर सख्त प्रतिक्रिया दी है. विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत की आलोचना करना न केवल अनुचित है बल्कि उन देशों की दोहरी नीति को भी उजागर करता है जो खुद रूस से व्यापार कर रहे हैं. मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने साफ कहा कि भारत को रूस से अधिक तेल आयात करना पड़ा क्योंकि यूक्रेन युद्ध के बाद पारंपरिक तेल आपूर्तिकर्ता देशों ने अपनी सप्लाई यूरोप की ओर मोड़ दी थी. उस समय अमेरिका ने ही भारत को रूसी तेल खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया था ताकि वैश्विक बाज़ार अस्थिर न हो.
आलोचना करने वाले खुद कर रहे व्यापार
भारत ने यह भी कहा कि जो देश आज भारत पर उंगलियां उठा रहे हैं, वे खुद भी रूस से व्यापार कर रहे हैं, जबकि उनके लिए ऐसा करना कोई ज़रूरी या अनिवार्य नहीं है. इसके विपरीत, भारत की स्थिति अलग है– भारत को अपनी ऊर्जा ज़रूरतें पूरी करने के लिए किफायती और भरोसेमंद स्रोतों की ज़रूरत है, और रूस इस समय भारत के लिए एक अहम ऊर्जा भागीदार है.
भारत दबाव में नहीं, बल्कि नीति पर कायम
भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी दबाव में आकर अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेगा. अमेरिका की वर्तमान धमकियों के पीछे की राजनीति को भारत ने पहचान लिया है और अंतरराष्ट्रीय मंच पर वह मजबूती से अपने पक्ष को रख रहा है. ट्रंप की धमकियां एकतरफा हैं और अंतरराष्ट्रीय नीतियों के उलट हैं. भारत का रूख यह है कि वह अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को देखते हुए सोच-समझकर फैसले लेता है, और इन फैसलों में किसी बाहरी दबाव की कोई जगह नहीं है.


