भारत के एकीकरण की अनकही गाथा, वी.पी. मेनन ने बताया सरदार पटेल का अद्वितीय योगदान
भारत की राजसी रियासतों से पहले की तस्वीर जब नक्शा छोटे-छोटे टुकड़ों में बंटा था. सरदार पटेल ने लौह इरादे से इन्हें एक सूत्र में पिरोया और यही वो जादू था जिसने आधुनिक भारत को जन्म दिया.

नई दिल्ली: भारत की आजादी के बाद देश को एक सूत्र में पिरोने का जो विशाल कार्य हुआ, उसकी कहानी केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता के निर्माण की गाथा है. स्वतंत्र भारत की नींव रखने वाले इस अभियान में सरदार वल्लभभाई पटेल ने जो भूमिका निभाई, उसे 'लौह पुरुष' की उपाधि ने सदा के लिए अमर कर दिया. इस महान कार्य के प्रत्यक्ष साक्षी और सहयोगी वी.पी. मेनन ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ The Story of the Integration of Indian States (1955) में इस प्रक्रिया को विस्तार से वर्णित किया.
मेनन ने अपनी पुस्तक को पटेल को समर्पित करते हुए लिखा - 'आज हम राज्यों के एकीकरण को केवल देश की एकता के दृष्टिकोण से देखते हैं, लेकिन बहुत कम लोग यह सोचते हैं कि इस विशाल कार्य को संपन्न करने में कितनी कठिनाइयों और चिंताओं से गुजरना पड़ा, जब तक कि एक संयुक्त भारत का स्वरूप संविधान में स्थापित नहीं हुआ.'
भारत में 562 रियासतों से बनी थी स्वतंत्रता-पूर्व स्थिति
वी.पी. मेनन के अनुसार, स्वतंत्रता और विभाजन से पहले भारत में 562 स्वतंत्र रियासतें थीं. कुछ बड़ी, कुछ छोटी. यह आंकड़ा 1927 में गठित बटलर समिति की रिपोर्ट से लिया गया था, जो ब्रिटिश शासन और रियासतों के संबंधों को स्पष्ट करने के लिए बनाई गई थी.
सरदार पटेल ने जब राज्यों के एकीकरण का बीड़ा उठाया, तब यह कार्य असंभव प्रतीत होता था. लेकिन उनकी कुशल नेतृत्व क्षमता और मेनन की रणनीतिक समझ ने इस चुनौती को ऐतिहासिक उपलब्धि में बदल दिया.
एकीकरण की प्रक्रिया
मेनन ने अपनी पुस्तक में लिखा, '554 राज्यों में से हैदराबाद और मैसूर को छोड़कर बाकी सभी राज्यों का क्षेत्रीय ढांचा बदला गया. 216 राज्यों को उनके समीपवर्ती प्रांतों में मिला दिया गया. पांच राज्यों को केंद्र सरकार के प्रत्यक्ष नियंत्रण में मुख्य आयुक्त प्रांत के रूप में लिया गया, जिनमें 21 पंजाब की पहाड़ी रियासतें हिमाचल प्रदेश का हिस्सा बनीं. 310 राज्यों को मिलाकर छह संघ बनाए गए, जिनमें से विंध्य प्रदेश बाद में मुख्य आयुक्त प्रांत में परिवर्तित हुआ. इस प्रकार 554 रियासतों के स्थान पर 14 प्रशासनिक इकाइयां अस्तित्व में आईं.'
राजाओं का सबसे बड़ी कूटनीतिक चुनौती
एकीकृत भारत की दिशा में सबसे कठिन कार्य था. रियासतों के राजाओं को लोकतांत्रिक व्यवस्था स्वीकार करने के लिए तैयार करना. 5 जुलाई 1947 को जब राज्य मंत्रालय की स्थापना हुई, उसी दिन सरदार पटेल ने रियासतों के प्रति सद्भावना का भाव प्रकट किया. उन्होंने कहा कि मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि कांग्रेस की यह इच्छा नहीं है कि वह किसी भी रूप में रियासतों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करे.
लेकिन 16 दिसंबर 1947 को दिए गए अपने वक्तव्य में पटेल का स्वर दृढ़ और स्पष्ट था. उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि उनके (राजाओं के) उत्तराधिकार और इतिहास ने उन्हें जनता पर कुछ अधिकार दिए हैं, जिन्हें जनता को सम्मान देना चाहिए. उनकी गरिमा, विशेषाधिकार और यथोचित जीवन स्तर की व्यवस्था सुनिश्चित रहनी चाहिए. मेरा सदैव यह विश्वास रहा है कि राजाओं का भविष्य उनके लोगों और देश की सेवा में निहित है, न कि उनकी निरंकुश सत्ता के बने रहने में.
पटेल और मेनन की साझी दृष्टि
मेनन ने अपने संस्मरण में लिखा कि भारत का यह एकीकरण केवल एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं था, बल्कि एक सहयोगात्मक प्रयास था. यह एक संयुक्त प्रयास था जिसमें सरदार हमारे प्रेरणास्रोत और मार्गदर्शक से लेकर हर छोटे-बड़े कर्मचारी तक ने अपना योगदान दिया. हर व्यक्ति में एक ही उद्देश्य की भावना थी.
भारत का यह एकीकरण न केवल राजनीतिक सीमाओं को जोड़ने का कार्य था, बल्कि यह आत्मा से एक भारत के निर्माण की दिशा में सबसे बड़ा कदम था एक ऐसा भारत, जो आज भी सरदार पटेल की दूरदृष्टि और मेनन की नीति-कुशलता का जीवंत प्रतीक है.


