Explainer : CAA क्या है? जिसे मोदी सरकार लोकसभा चुनाव से पहले देश में लागू करना चाहती है

What is CAA : नागरिकता संशोधन कानून के चर्चा में आने के बाद इसको लेकर विवाद भी शुरू हो गया है. इस बिल का उद्येश्य पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आये 6 समुदायों (हिन्दू, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध तथा पारसी) शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देना है.

Pankaj Soni
Pankaj Soni

देश में लोकसभा चुनावों के पहले एक बार फिर से नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को  लागू करने की चर्चा तेज हो गई है. नागरिकता संशोधन कानून के चर्चा में आने के बाद इसको लेकर विवाद भी शुरू हो गया है. इस बिल का उद्येश्य पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आये 6 समुदायों (हिन्दू, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध तथा पारसी) शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देना है. इस बिल में मुस्लिम समुदाय को शामिल नहीं करने पर कई राजनीतिक पार्टियां विरोध कर रही हैं. नागरिकता (संशोधन) कानून को केंद्र सरकार ने साल 2019 में संसद में पास करा लिया था. आज हम CAA यानी नागरिक संशोधन कानून क्या है और इसके खूबियों-खामियों के बारे में बात करेंगे.  

सवाल – नागरिकता संशोधन कानून क्या है?

जवाब– यह कानून किसी को भी नागरिकता से वंचित नहीं करता न ही यह किसी को नागरिकता देता है. यह केवल उन लोगों की श्रेणी को संशोधित करता है, जो (नागरिकता के लिए) आवेदन कर सकते हैं. यह आवेदन करने वालों को “अवैध प्रवासी” की परिभाषा से छूट देने का काम करता है. इसके अनुसार, 'कोई भी व्यक्ति जो कि हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदाय से संबंधित है और अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से है, जो कि भारत में 31 दिसंबर, 2014 को या इससे पहले आ चुका है. जिसे केंद्र सरकार के द्वारा या पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 की धारा 3 की उपधारा (2) के खंड (स) या विदेशी अधिनियम, 1946 के प्रावधानों के आवेदन या उसके अंतर्गत किसी नियम या आदेश के तहत छूट दी गई हो. इस छूट के लिए कानूनी ढांचा 2015 में गृह मंत्रालय द्वारा जारी दो अधिसूचनाओं में पाया जाता है. (4) यह अधिसूचना केवल उन्हीं लोगों को छूट देती है जो हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई हैं, अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से हैं और अगर वे भारत में 31 दिसंबर, 2014 से पहले धार्मिक उत्पीड़न की आशंका से भारत में प्रवेश कर गए थे.

सवाल – नागरिकता कानून से क्या मिलेगा?

जवाब– यह कानून प्रवासी लोगों को नागरिकता नहीं देता बल्कि इसके आवेदन के उन्हें योग्य बनाता है. उन्हें ये दिखाना होगा कि वो भारत में पांच साल रह चुके हैं. यह साबित करना होगा कि वो भारत में 31 दिसंबर 2014 से पहले आए हैं. साथ ही यह साबित करना होगा कि वो अपने देशों से धार्मिक उत्पीड़न के कारण भागकर भारत आए हैं. वो उन भाषाओं को बोलते हैं जो संविधान की आठवीं अनुसूची में हैं और नागरिक कानून 1955 की तीसरी सूची की अनिवार्यताओं को पूरा करते हैं. इसी के आधार पर वह आवेदन के पात्र होंगे. इसके बाद भारत सरकार तय करेगी कि उनको नागरिकता देनी है या नहीं.

सवाल – भारत शरणार्थियों को वीजा कैसे देता है?
जवाब– भारत की हमेशा की नीति गैर समावेश की थी. कुछ देश खास तौर पर संवैधानिक तौर पर इस्लामी राष्ट्र हैं. वहां का आधिकारिक धर्म इस्लाम है. जबकि कुछ मुस्लिम भागकर भारत आते हैं. वो अपने देशों में जुल्म और अत्याचार के हालात के चलते वहां से भागकर यहां आते हैं. इस बात का कोई मतलब नहीं बनता कि उन्हें नीति दृष्टिकोण के अनुसार न्यूट्रीलाइज किया जाए.

सवाल – गैर मुस्लिम शरणार्थियों के लिए क्या दिक्कतें हैं?
जवाब– गैर मुस्लिमों के लिए पड़ोसी देशों में संवैधानिक तौर पर कई तरह की परेशानियां हैं. उन्हें लेकर एक ऐसा माना जाता है कि उनके साथ इतना अत्याचार होता है कि वह देश उनके रहने लायक ही नहीं है. इसलिए गैर मुस्लिमों के लिए एमनेस्टी का मतलब बनता है. जबकि मुस्लिमों को अलग-अलग केस के तौर पर लिया जाता है (जैसा हमने सीरिया, अफगानिस्तान आदि देशों से आने वाले मुस्लिमों के लिए किया है.

सवाल – रोहिंग्या के मामले को सरकार किस तरह देखती है?
जवाब– बर्मा की स्थिति ऐसी है कि रोहिंग्या वास्तविक तौर पर अविभाजित भारत के समय भारत आए थे, तब जबकि ब्रिटेन ने बर्मा पर कब्जा कर लिया. इसलिए बर्मा उन्हें अपने जातीय ग्रुप और योग्य नागरिकता में नहीं रखते. भारत इस विवाद में फंसा है. अगर भारत रोहिंग्या को भारत में न्यूट्राइज का अधिकार देता है, तो ये बर्मा के साथ हमारे नाजुक विवाद को अपसेट करेगा. भारत में रोहिंग्या को शरणार्थी प्रोटेक्शन और लॉन्ग टर्म वीज़ा मिला हुआ है, लेकिन वो नागरिकता के योग्य नहीं होंगे.

सवाल – क्या ये कानून मुस्लिमों के खिलाफ है?
जवाब– सरकार का पक्ष है कि ये कानून मुस्लिमों के खिलाफ नहीं है. जो भी शख्स भारत में है क्योंकि वो अत्याचार के चलते आया है उसे वापस उसी जगह भेजा जाएगा. इसका मतलब ये नहीं है कि वो कभी यहां नागरिकता के योग्य होंगे. वो लोग जिनके अत्याचार स्थायी हैं, उन्हें सुरक्षा दी जाएगी. अलबत्ता अगर चीजें अगले 50 सालों में शरणार्थियों के लिए बेहतर नहीं होंती तो हमें अतिरिक्त तदर्थ संविधान के कानून की तरह उनकी सुरक्षा को बढाने की जरूरत होगी. लेकिन फिलहाल ये इस सरकार की नीति नहीं है.

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04 January 2024, 01:06 PM IST

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